Story of Snehlata: जशपुर की रहने वाली स्नेहलता नेत्र प्रत्यारोपण करवाने के लिए रांची आयी थी. करीब 28-29 साल पहले. शनिवार को वह अचानक नेत्र प्रत्यारोपण करने वाली डॉक्टर से मिलीं और उन्हें चूम लिया. डॉक्टर हैरान रह गयी. स्नेहलता ने उन्हें याद दिलाया कि उनकी वजह से ही वह आज दुनिया को देख रही हैं. उन्होंने ही उनका (स्नेहलता का) कॉर्निया ट्रांसप्लांट किया था, तो डॉक्टर दंपती को भी वो बच्ची याद आ गयी. डॉक्टर से मुलाकात के दौरान स्नेहलता ने कहा कि वह किसकी आंखों से दुनिया देख रही हैं, किसने उनकी जिंदगी में रंग भरे हैं, वह नहीं जानतीं. लेकिन, नेत्रदान करने वाले उस इंसान को शत-शत नमन करतीं हैं.
Story of Snehlata: स्नेहलता ने सुनायी अपनी पूरी कहानी
स्नेहलता ने अपनी पूरी कहानी भी बतायी. कहा कि वह 10 साल की थीं. ट्यूबलाइट जलाकर पढ़ रहीं थीं. इसी दौान आंख में एक कीड़ा चला गया. उन्होंने हाथों से आंखों को मसल दिया. आंखें पूरी तरह से लाल हो गयीं. धीरे-धीरे आंखों की की लालिमा तो चली गयी, लेकिन आंख (कॉर्निया) सफेद हो गयीं. कई डॉक्टर को दिखाया, लेकिन आंख की पुतली की सफेदी नहीं गयी.
आंख की पुतली की वजह से नहीं हो रही थी शादी
स्नेहलता ने बताया कि जशपुर में ही किसी ने बताया कि वर्ष 1996 में रांची (तब संयुक्त बिहार का हिस्सा थी रांची) के कश्यप मेमोरियल आई हॉस्पिटल में डॉ बीपी कश्यप और डॉ भारती कश्यप ने सफल नेत्र प्रत्यारोपण (कॉर्निया ट्रांसप्लांट) किया है. इसके बाद मैं जशपुर (तब मध्यप्रदेश और अब छत्तीसगढ़) से रांची आयीं. इस उम्मीद में कि उनकी आंख की पुतली ठीक हो जायेगी. उन्होंने कहा कि आंख की पुतली की सफेदी की वजह से उनकी शादी नहीं हो पा रही थी. इसलिए इसका इलाज बेहद जरूरी हो गया था.
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कश्यप मेमोरियल आई बैंक में कराया कॉर्निया ट्रांसपलांट
रांची आकर उन्होंने कश्यप मेमोरियल आई बैंक में कॉर्निया ट्रांसप्लांट के लिए अपना पंजीकरण कराया. कुछ महीने बाद आई बैंक से फोन आया कि आंख की पुतली बदलवाने के लिए जल्द से जल्द रांची पहुंचें. जशपुर से रांची आने में साढ़े तीन घंटे से ज्यादा लगते थे. इस दूरी को हमने महज 2 घंटे में तय किया, क्योंकि उस समय 24 घंटे के अंदर कॉर्निया ट्रांसप्लांट करना होता था.

नेत्र प्रत्यारोपण ने जिंदगी में भर दिये रंग
उन्होंने कहा कि डॉ बीपी कश्यप और डॉ भारती कश्यप ने मेरी आंख की पुतली बदली और मेरी जिंदगी में रंग भर गये. स्नेहलता आगे बताती हैं कि अगर उनकी आंख की पुतली न बदली गयी होती, तो शायद उनकी शादी भी नहीं हो पाती. कई बार लोग देखने आते थे और आंख की वजह से शादी टल जाती थी. आंख की पुतली इतनी सफेद हो गयी थी कि फोटो में भी स्पष्ट दिखता था.
जशपुर में मायका, जयपुर में ससुराल
स्नेहलता ने कहा कि नेत्र प्रत्यारोपण के बाद मेरा फोटो अच्छा आने लगा. लड़के वाले देखने आये, तो उन्होंने पसंद भी कर लिया. शादी हुई और वह जयपुर चली गयीं. जयपुर में जब भी वह आंखों के डॉक्टर के पास जाती हैं, तो वे कहते हैं कि उनका नेत्र प्रत्यारोपण अच्छे से हुआ है. इसलिए जब वह 5 सितंबर को किसी काम से रांची आयीं, तो उन डॉक्टर्स से मिलना और उनको धन्यवाद कहना नहीं भूलीं, जिन्होंने उनकी जिंदगी किसी और की आंख से रोशन कर दी.
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