मुगलों के दौर में अलग-अलग क्षेत्र के गुरु शहजादों को शिक्षा देते हैं.
Teachers Day 2025: आधुनिक समय में हर किसी को किताबी शिक्षा दी जाती है. इसके बाद जिस क्षेत्र में वह जाना चाहता है, उसकी विशेषज्ञता हासिल करता है. स्कूल, कॉलेज और विश्वविद्यालय से लेकर धर्म-अध्यात्म तक की शिक्षा लोग हासिल करते हैं. पर क्या आपने कभी सोचा है कि मुगल शहजादों को क्या पढ़ाया जाता था? उनके गुरु कौन होते थे? आइए जानने की कोशिश करते हैं.
मुगल शहजादों को वास्तव में हर तरह की शिक्षा दी जाती थी. इतिहासकारों की मानें तो उनके गुरु अलग-अलग क्षेत्र के विद्वान होते थे. कई बार मुगल दरबार में ही ऐसे विद्वान होते थे, जो शहजादों को विभिन्न विधाओं में पारंगत करते थे. इनमें धार्मिक गुरु और दरवेश से लेकर सैन्य प्रशिक्षण और सामान्य ज्ञान जैसे विषयों के जानकार होते थे. इन शहजादों को धर्म, साहित्य, दर्शन, सैन्य कौशल, सामान्य ज्ञान से लेकर इतिहास तक की शिक्षा दी जाती थी. धार्मिक शिक्षा के तहत उनको कुरान, हदीस और सूफीवाद की शिक्षा दी जाती थी. इसके अलावा अन्य धार्मिक ग्रंथों के साथ नैतिक मूल्य भी पढ़ाए जाते थे.
शहजादों को साहित्य में कविताओं और अन्य महत्वपूर्ण कृतियों की पढ़ाई कराई जाती थी. इतिहास और दर्शन का ज्ञान देने के लिए महत्वपूर्ण ऐतिहासिक घटनाओं और विभिन्न दार्शनिक विचारधाराओं से उनको परिचित कराया जाता था. गणित, भूगोल, खगोल विज्ञान और चिकित्सा विज्ञान जैसे विषय भी पढ़ाए जाते थे. भविष्य में शासन चलाने के लिए उनको युद्ध के लगभग सभी कौशल सिखाए जाते थे. इनमें उस वक्त तलवारबाजी और घुड़सवारी बेहद अहम थी. प्रशासनिक और शाही व्यवहार से खास तौर पर शिक्षित किया जाता था. समय-समय पर शहजादों को इनका प्रशिक्षण दिया जाता था.

मुगल बादशाह बाबर और बेटा हुमायूं.
पिता-पुत्र हुमायूं-अकबर दोनों के गुरु थे बैरम खान
मुगल शहजादों के गुरुओं की बात करें तो हुमायूं को प्रारंभिक शिक्षा अपने पिता बाबर से ही मिली थी. उसके धार्मिक गुरु शेख भुल या शेख बहलुल थे. वहीं, संरक्षक के रूप में बैरम खान ने हुमायूं को राजनीतिक ज्ञान, सैन्य प्रशिक्षण और व्यावहारिक ज्ञान दी. आगे चलकर हुमायूं के निधन के बाद बेहद कम उम्र में अकबर ने सत्ता संभाली तो उसके संरक्षक होने के साथ ही राजनीतिक, व्यावहारिक और सैन्य गुरु बैरम खान ही अनौपचारिक रूप से बने. इनके अलावा मुल्ला असामुद्दीन इब्राहिम ने अकबर को शिक्षा दी थी.
जैन गुरु हीराविजय सूरी से अकबर को जैन दर्शन का ज्ञान मिला थी और उन्होंने ही अकबर को शाकाहार के लिए प्रेरित किया था. अकबर के नवरत्नों में शुमार हुए अबुल फजल भी इतिहास, दर्शन और साहित्य के विद्वान थे. ऐसे ही एक और नवरत्न और अकबर के शिक्षा मंत्री फैजी को अकबर के बेटों को पढ़ाने के लिए ही नियुक्त किया गया था. वह ग्रीक और इस्लाम साहित्य के विद्वान थे. बाद में प्रतिभा को देखते हुए उनको दरबार के नवरत्नों में शामिल किया गया था.

बादशाह अकबर.
जहांगीर के गुरु थे अब्दुल रहीम खान-ए-खाना
अकबर के नवरत्नों में से एक और रक्षा मंत्री अब्दुल रहीम खान-ए-खाना शहजादे सलीम (जहांगीर) के गुरु थे. बैरम खां के पुत्र अब्दुल रहीम खान-ए-खाना ने अपने पिता की तरह बादशाह के बेटे को संरक्षण दिया. रहीम के दोहे तो आज तक पाठ्यक्रमों का हिस्सा हैं. वह ज्योतिष के भी जानकार थे और खेतकौतुकम और द्वात्रीमषद्योगावली नाम से ज्योति पर किताबें भी लिखीं.
शेख चिल्ली ने दिया दारा शिकोह को ज्ञान
शाहजहां के गुरु के रूप में इतिहासकार किसी एक व्यक्ति का नाम नहीं लेते हैं. हालांकि, शाही परंपरा के अनुसार वह हर विधा में निपुण था. वहीं, शाहजहां के बेटे दारा शिरोह के गुरु के रूप में शेख चिल्ली का नाम सामने आता है, जिन्हें आमतौर पर हंसोड़ चरित्र के रूप में चित्रित किया जाता है. शाहजहां भी शेख चिल्ली का अत्यंत सम्मान करता था. दारा शिकोह तो उनका प्रशंसक था.
महान दरवेश शेख चिल्ली से दारा शिकोह ने बहुत कुछ सीखा, जिन्हें अब्द उर्र रहीम, अलैस अब्द उइ करीम, अलैस अब्द उर्र रज्जाक आदि नामों से भी जाना जाता था. बलूचिस्तान के एक कबीले में जन्मे शेख चिल्ली अपनी दरवेश प्रवृत्ति के कारण ही भारत आए और अपनी विद्वता के बल पर शाहजहां की नजरों में इज्जत कमाई थी.

औरंगजेब का बड़ा भाई दारा शिकोह.
गुरु की कब्र की बगल में दफन हुआ औरंगजेब
औरंगजेब को आमतौर पर एक क्रूर मुगल शासक माना जाता है. यह सच भी है कि वह इस्लाम को लेकर कट्टर था पर इस्लामी विद्वानों, सूफी संतों और आध्यात्मिक मार्गदर्शकों से प्रभावित भी रहता था. उस पर सबसे अधिक प्रभाव डाला सूफी संत सैयद जैनुद्दीन शिराजी ने, जिनको वह अपना आध्यात्मिक गुरु मानता था.

औरंगजेब.
हजरत ख्वाजा सैयद जैनुद्दीन शिराजी साल 1302 ईस्वी में ईरान के शिराज शहर में पैदा हुए थे. उन्होंने हजरत मौलाना कमालुद्दीन से शिक्षा प्राप्त की और उन्हीं के साथ मक्का होते हुए दिल्ली और फिर दौलताबाद पहुंचे. दिल्ली के सूफी संत हजरत निजामुद्दीन औलिया के अनुयायी संत शिराजी ने इस्लामी शिक्षा के प्रचार-प्रसार में सारा जीवन लगा दिया.
अंत में वह महाराष्ट्र के खुल्दाबाद में रह कर अनुयायियों को उपदेश देने लगे. वहीं पर उनकी कब्र है. औरंगजेब उनसे इतना प्रभावित था कि अपने निधन के बाद उनकी कब्र के पास ही दफनाने की इच्छा जताई थी. इसलिए औरंगजेब की भी कब्र वहीं पर है.
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