दरअसल, उन्होंने इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक न्यायाधीश की आपराधिक मामलों में उनकी क्षमता पर कठोर टिप्पणी करते हुए उनके पूरे कार्यकाल के दौरान आपराधिक मामलों की सुनवाई पर रोक लगा दी थी।
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस जमशेद बुर्जोर पारदीवाला फिर एकबार सुर्खियों में हैं। वह इससे पहले भी कई मौके पर अपने फैसले या ऑर्डर को लेकर सुर्खियों में रहे हैं। फरवरी 2011 में गुजरात हाईकोर्ट के जज बने पारदीवाला को मई 2022 में सीधे सुप्रीम कोर्ट तक तेजी से प्रमोट किया गया था। लेकिन 4 अगस्त 2024 को दिए गए एक आदेश में उन्होंने ऐसा कदम उठा लिया जिसने उन्हें फिर से पुराने विवादों की याद दिला दी।
दरअसल, उन्होंने इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक न्यायाधीश की आपराधिक मामलों में उनकी क्षमता पर कठोर टिप्पणी करते हुए उनके पूरे कार्यकाल के दौरान आपराधिक मामलों की सुनवाई पर रोक लगा दी थी। सुप्रीम कोर्ट के लिए यह टिप्पणी असंगत और विषय से भटकने वाली मानी गई। मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई के हस्तक्षेप और जस्टिस पारदीवाला व जस्टिस आर महादेवन की सहमति से इन टिप्पणियों को आदेश से हटा दिया गया। इससे संबंधित हाईकोर्ट जज की गरिमा कुछ हद तक बच पाई। हालांकि, कानूनी हलकों का मानना है कि ऐसी टिप्पणी का बोझ उनके कार्यकाल के दौरान यादों में बना रहेगा।
आरक्षण पर भी की थी सख्त टिप्पणी
यह पहली बार नहीं है जब जस्टिस पारदीवाला विवादित टिप्पणियों के कारण चर्चा में आए हों। दिसंबर 2015 में, गुजरात हाईकोर्ट के जज रहते हुए उन्होंने पाटीदार अनामत आंदोलन समिति के संयोजक हार्दिक पटेल के खिलाफ देशद्रोह मामले में आरक्षण व्यवस्था पर तीखी टिप्पणी कर दी थी। अपने फैसले में उन्होंने लिखा था, “यदि कोई मुझसे पूछे कि दो चीजें कौन सी हैं जिन्होंने इस देश को बर्बाद किया है, या सही दिशा में आगे नहीं बढ़ने दिया है तो वे हैं आरक्षण और भ्रष्टाचार। 65 साल की आजादी के बाद भी आरक्षण मांगना किसी भी नागरिक के लिए शर्मनाक है। जब संविधान बना तब यह समझा गया था कि आरक्षण केवल 10 वर्षों के लिए रहेगा, लेकिन दुर्भाग्य से यह 65 साल बाद भी जारी है।”
उन्होंने यह भी कहा था कि आरक्षण ने सामाजिक विभाजन को बढ़ाया है। उन्होंने व्यंग्य करते हुए टिप्पणी की थी कि “भारत शायद दुनिया का इकलौता देश है जहां कुछ नागरिक स्वयं को ‘पिछड़ा’ कहलवाने के लिए लालायित रहते हैं।”
इन टिप्पणियों से राजनीतिक हलकों में भारी विरोध हुआ और राज्यसभा के 58 सांसदों ने उनके खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव का नोटिस दिया। प्रस्ताव दायर होने के कुछ ही घंटों में गुजरात सरकार ने जस्टिस पारदीवाला के समक्ष एक आवेदन देकर ‘आपत्तिजनक’ टिप्पणियां हटाने का अनुरोध किया। उन्होंने तुरंत कार्रवाई करते हुए फैसले के विवादास्पद पैराग्राफ 62 को पूरी तरह हटा दिया और हाईकोर्ट रजिस्ट्री को निर्देश दिया कि नई प्रमाणित प्रति बिना उस पैराग्राफ के जारी की जाए।