हुमायूं के बाद मुगल सत्ता की बागडोर संभालने वाले अकबर ने भी रक्षाबंधन मनाना जारी रखा.
Raksha Bandhan 2025: भाई-बहन के प्रेम के त्योहार रक्षाबंधन को महाभारत काल में श्रीकृष्ण-द्रौपदी और पौराणिक काल में माता लक्ष्मी और राजा बाली से भी जोड़ा जाता है. ऐसे में प्राचीन काल से मनाया जाने वाला यह त्योहार देश पर मुगलों का शासन शुरू होने के बाद कैसे मनता था, इसकी भी कहानी दिलचस्प है.
वैसे तो रक्षाबंधन पर बहनें सज-संवरकर अपने-अपने भाई की आरती उतारती हैं. टीका करती हैं और उनकी कलाई पर रक्षा सूत्र बांधकर उनके मंगल की कामना करती हैं. वहीं, भाई अपनी बहन को हमेशा रक्षा का वचन देता है. रक्षा के इसी वचन के सहारे मेवाड़ की रानी कर्णावती ने मुगल बादशाह से मदद मांगी थी. मुगल बादशाहों के रक्षाबंधन मनाने की परंपरा वहीं से शुरू होती है.
हुमायूं के समय में हुई मुगलों के रक्षाबंधन मनाने की शुरुआत
मेवाड़ के राणा सांगा पर गुजरात के शासक बहादुर शाह ने हमला कर दिया था. इस युद्ध में राणा सांगा शहीद हो गए. मेवाड़ के अस्तित्व पर खतरा मंडराते देख राणा सांगा की पत्नी महारानी कर्णावती ने मुगल बादशाह हुमायूं को पत्र भेजा. इसके साथ एक राखी भी थी. रानी ने हुमायूं से अपने बजाय मेवाड़ की रक्षा का आग्रह किया था.
यह पत्र और राखी हुमायूं तक पहुंचने के बाद उसने मेवाड़ की रक्षा का फैसला किया और अपनी सेना के साथ मेवाड़ पहुंचा. हालांकि, तब तक काफी देर हो चुकी थी. हुमायूं के मेवाड़ पहुंचने से पहले ही बहादुरशाह जफर ने मेवाड़ को जीत लिया था और रानी कर्णावती ने जौहर कर लिया था.
इतिहासकार मानते हैं कि इस घटना के बाद मुगल दरबार में भी राखी का त्योहार मनाया जाने लगा था. खासकर हिन्दू दरबारी इस त्योहार को अपनी परंपरा के हिसाब से मनाते थे. आम जनता तो अपनी तरह से अपना त्योहार मनाती ही थी.
अकबर ने दरबार में राखी बंधवानी शुरू की
हुमायूं के बाद मुगल सत्ता की बागडोर संभालने वाले अकबर ने भी रक्षाबंधन मनाना जारी रखा. इसका एक अहम कारण यह भी था कि अकबर ने रणनीतिक रूप से राजपूत घराने से संबंध स्थापित किए थे. उनके साथ शाही-ब्याह के रिश्ते भी बनाए. इसलिए उनकी परंपराओं का सम्मान भी करता था. फिर अकबर के दरबार में भी कई हिन्दू दरबारी थे.
प्रसिद्ध इतिहासकार इरफान हबीब की मानें तो अकबर ने खुद भी रक्षाबंधन पर मुगल दरबार में राखी बंधवाना शुरू किया था. मुगल बादशाह को राखी बांधने के लिए बड़ी संख्या में लोग पहुंचते थे. बादशाह को पूरे-पूरे दिन दरबार में बैठकर राखी बंधवानी पड़ती थी और अकबर ऐसा सहर्ष करता था.
जहांगीर ने भी जारी रखी रक्षाबंधन की परंपरा
अकबर के बाद मुगल शासन की बागडोर संभालने वाले जहांगीर को वैसे तो अय्याश बादशाह के रूप में देखा जाता है पर उसने अपने पिता की राखी बंधवाने की परंपरा को जारी रखा. इसमें उसने एक नया अध्याय भी जोड़ा.
अकबर अपने दरबार में बैठ कर जहां केवल दरबारियों के परिवार वालों से ही राखी बंधवाते थे. वहीं, जहांगीर ने इस परंपरा को आगे बढ़ाते हुए नई शुरुआत भी की. उसने दरबारियों के परिवार के लोगों के साथ ही साथ आम लोगों से भी राखी बंधवाना शुरू किया था. इस नई परंपरा के साथ ही शाही दरबार में हर आम-ओ-खास रक्षाबंधन मनाने लगा.

शाहजहां के समय में मुगल दरबार में रक्षाबंधन का त्योहार मनाने की परंपरा मंद पड़ी.
शाहजहां के समय में दम तोड़ने लगी थी परंपरा
जहांगीर के बाद मुगल बादशाह बने शाहजहां के समय में मुगल दरबार में रक्षाबंधन मनाने का कोई स्पष्ट विवरण नहीं मिलता है. ऐसे में इतिहासकार मानते हैं कि शाहजहां के समय में मुगल दरबार में रक्षाबंधन का त्योहार मनाने की परंपरा कम हो गई होगी.
औरंगजेब ने लगा दी थी सभी हिन्दू त्योहारों पर रोक
मुगल शासकों में सबसे कट्टर माने जाने वाले औरंगजेब ने हिन्दू रीति-रिवाजों, परंपराओं और त्योहारों पर काफी नकेल कसी. यहां तक कि जो जजिया कर अकबर ने हटाया था, उसे औरंगजेब ने फिर से लागू कर दिया था. इसके साथ ही उसने मुगल दरबार में हिन्दू त्योहार मनाने पर भी रोक लगा दी थी. इनमें रक्षाबंधन भी शामिल है.
औरंगजेब ने जारी किया था आदेश
औरंगजेब के शासनकाल में मुगल दरबार में रक्षाबंधन मनाने पर बाकायदा आदेश जारी कर पूरी तरह से रोक लगाई गई थी. औरंगजेब 1658 में बादशाह बना, तब तक मुगल दरबार में यह परंपरा लगभग दम तोड़ चुकी थी. इसके बावजूद 8 अप्रैल 1658 को उसने एक आदेश जारी कर सभी तरह के हिन्दू त्योहारों को मनाने पर रोक लगा दी थी.
औरंगजेब के दरबार से जुड़े रहे साकी मुस्तैद खान की मआसिर-ए-आलमगीरी में इस आदेश का जिक्र मिलता है. इसके अनुसार हिन्दू त्योहारों पर रोक का आदेश केवल मुगल दरबार नहीं, बल्कि औरंगजेब के शासन वाले तत्कालीन सभी 21 सूबों पर लागू किया गया था.
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