रॉबर्ट ओपेनहाइमर ने दुनिया के पहले परमाणु बम के टेस्ट का कोड नाम “ट्रिनिटी” रखा.
दुनिया के इतिहास में एक काली तारीख दर्ज है 6 अगस्त 1945. यह वही दिन है जब जापान के हिरोशिमा शहर पर अमेरिका ने परमाणु बम गिराया था. सुबह 8:15 बजे हुए इस अमेरिकी हमले में कुछ ही क्षणों में हिरोशिमा मलबे के ढेर में बदल गया और एक लाख 40 हजार लोगों की मौत हुई. बचे लोग रेडिएशन के कारण लंबे समय तक झेलते रहे. इस हमले ने परमाणु हथियारों के भीषण नतीजे से दुनिया को अवगत कराया. उस परमाणु बम की विभीषिका बताई, जिसका निर्माण रॉबर्ट ओपेनहाइमर ने किया था. आइए जान लेते हैं कि ओपेनहाइमर ने कैसे परमाणु बम बनाया था और क्यों उसे कोड नेम ट्रिनिटी दिया था.
यह दूसरे विश्व युद्ध के दौर की बात है. संयुक्त राज्य अमेरिका ने परमाणु बम बनाने के लिए एक सीक्रेट प्रोजेक्ट शुरू किया. ओपेनहाइमर को इस प्रोजेक्ट में वैज्ञानिक निदेशक के रूप में नियुक्त किया गया था. वह साल था 1942. ओपेनहाइमर मैनहट्टन प्रोजेक्ट से जुड़े और परमाणु बम विकसित करने की योजना पर काम शुरू किया.
इस बम को बनाने के लिए ओपेनहाइमर और अमेरिकी वैज्ञानिकों की टीम ने परमाणु विखंडन का उपयोग किया. इस प्रक्रिया में एक भारी परमाणु नाभिक (न्यूक्लियर न्यूक्लियस) को दो नाभिकों में बांटा जाता है. इससे अत्यधिक ऊर्जा निकलती है.
इसलिए बम का नाम रखा था ट्रिनिटी
न्यू मैक्सिको के लॉस अलामोस में स्थित प्रयोगशाला में बम बनाने के लिए ओपेनहाइमर और उनकी टीम ने यूरेनियम-235 और प्लूटोनियम-239 आदि तत्वों का इस्तेमाल किया. यहीं पर परमाणु बम का पूरा डिजाइन तैयार कर उसका विकास किया गया. यह साल 1944 की बात है. ओपेनहाइमर ने अपने पहले परमाणु परीक्षण की तैयारी कर ली थी. साल के मध्य में उन्होंने पहले परमाणु बम को नाम दिया ट्रिनिटी, जिसका परीक्षण किया जाना था.

ओपेनहाइमर को अमेरिका के सीक्रेट परमाणु बम प्रोजेक्ट का निदेशक नियुक्त किया गया था. फोटो: Getty Images
यह नाम उन्होंने अंग्रेजी के कवि जॉन डोने की एक कविता होली सॉनेट्स से प्रेरित होकर रखा था. इस कविता में ट्रिनिटी का मतलब एक भगवान यानी त्रिमूर्ति से है. ओपेनहाइमर ने इस नाम का इस्तेमाल इसलिए किया, जिससे एक रहस्यमय और शक्तिशाली प्रतीकात्मक अर्थ निकले. आगे चलकर ओपेनहाइमर ने खुद इस बात का खुलासा किया था कि इस नाम का चुनाव उन्होंने अपनी प्रेमिका जीन टैटलॉक के कारण किया था, क्योंकि उन्होंने ही 1930 के दशक में ओपेनहाइमर को डोने की इस कविता से परिचित कराया था.
16 जुलाई 1945 को हुई टेस्टिंग
बम की पूरी तैयारी हो गई और नाम भी रख दिया गया. इसके बाद आई वह तारीख जब इसका परीक्षण किया जाना था. 16 जुलाई 1945 की सुबह न्यू मेक्सिको के रेगिस्तान में इसका परीक्षण होने वाला था. तब तक मैनहट्टन प्रोजेक्ट की वैज्ञानिक ब्रांच प्रोजेक्ट बाय के परियोजना निदेशक ओपेनहाइमर का वजन काफी घाटी चुका था और वह केवल 52 किलो के रह गए थे. 5 फुट 10 इंच लंबे ओपेनहाइमर उस वक्त काफी नर्वस थे और सारी रात सो नहीं पाए थे.
इतिहासकार काई बर्ड और मार्टिन जे शेर्विन ने ओपेनहाइमर की जीवनी लिखी है. इसका नाम है अमेरिकन प्रोमेथियस. इसमें वे लिखते हैं कि बम के परीक्षण वाले दिन से पहले वाली रात में ओपेनहाइमर केवल चार घंटे सोए थे. अगले दिन होने वाले परीक्षण की चिंता में वह बेतहाशा सिगरेट पीते रहे. सुबह वह कंट्रोल बंकर में मौजूद थे, जहां से 10 किमी दूर बम का परीक्षण होना था.

16 जुलाई 1945 की सुबह न्यू मेक्सिको के रेगिस्तान में परमाणु बम का परीक्षण हुआ था. फोटो: Corbis via Getty Images
160 किमी दूर तक महसूस किया था ब्लास्ट का झटका
दोनों इतिहासकारों ने लिखा है कि जब बम ब्लास्ट होने वाला था, तब आखिरी मिनटों में अमेरिकी सेना के एक जनरल ने ओपेनहाइमर का मूड करीब से भांपा था. उस जनरल के मुताबिक ब्लास्ट का समय जैसे-जैसे पास आ रहा था, ओपेनहाइमर की टेंशन बढ़ती जा रही थी और ऐसे लग रहा था, जैसे वह बड़ी मुश्किल से सांस ले रहे हों. फिर वह घड़ी आई, जिसका ओपेनहाइमर को इंतजार था. पहले परमाणु बम में ब्लास्ट हुआ.
इसकी ताकत 21 किलोटन टीएनटी थी. यह मनुष्य द्वारा किया गया तब तक का सबसे बड़ा ब्लास्ट था, जिससे इतना तेज झटका लगा, जिसे 160 किमी की दूरी तक महसूस किया गया था. बम ब्लास्ट के बाद धूल का गुबार आकाश की ओर जैसे-जैसे बढ़ने लगा, ओपेनहाइमर की टेंशन घटने लगी. उनकी अकड़ बढ़ गई, जैसे वह सातवें आसमान पर पहुंच गए हों.
परीक्षण के महीने भर बाद ही हिरोशिमा पर परमाणु बम से हमला
अमेरिका के इस परीक्षण के महीने भर बाद ही हिरोशिमा की तबाही के लिए परमाणु बम गिराया गया था. हालांकि, ओपेनहाइमर के दोस्तों ने खुलासा किया था कि इस परीक्षण के बाद वह उदास रहते थे. वह हर वक्त कहीं खोए रहते थे. शायद उन्हें पता था कि क्या होने वाला है. ओपेनहाइमर के दोस्तों ने तो यहां तक दावा किया था कि एक दिन तो उन्होंने जापान के लोगों के भविष्य को लेकर चिंता भी जताई थी. हालांकि, जल्द ही वह इस स्थिति से निकल गए और सेना के साथ इस बात पर ध्यान केंद्रित करने लगे कि परमाणु बम को गिराने के लिए कैसी स्थिति ठीक रहेगी और अंतत: जापान को विनाशकारी हमले का सामना करना पड़ा.
गीता का श्लोक याद आया
यह 1960 के दशक की बात है. ओपेनहाइमर ने एक इंटरव्यू में दावा किया था कि परमाणु परीक्षण के दौरान उनको हिन्दू धर्म ग्रंथ गीता का एक श्लोक याद आया था. गीता के 11वें अध्याय के 32वें श्लोक में श्रीकृष्ण कहते हैं कि मैं लोकों यानी दुनिया का विनाश करने वाला बढ़ा हुआ काल हूं.
यह भी पढ़ें: नदी में लालटेन, कबूतर, सायरन…जापान में हिरोशिमा दिवस कैसे मनाते है?