RBI Monetary Policy: RBI Monetary Policy: मौद्रिक नीति समिति (MPC) ने नीतिगत रेपो रेट 5.5% पर ही बरकरार रखने का फैसला किया है। आरबीआई गवर्नर ने बताया कि खाद्य और ईंधन को छोड़कर अन्य वस्तुओं की कीमतों में बढ़ोतरी (कोर इन्फ्लेशन) 4% पर स्थिर है, जो उनकी उम्मीदों के अनुरूप है।
RBI Monetary Policy: मौद्रिक नीति समिति (MPC) ने नीतिगत रेपो रेट 5.5% पर ही बरकरार रखने का फैसला किया है। इस बार रेपो रेट में कोई बदलाव नहीं हुआ है। आरबीआई गवर्नर ने बताया कि खाद्य और ईंधन को छोड़कर अन्य वस्तुओं की कीमतों में बढ़ोतरी (कोर इन्फ्लेशन) 4% पर स्थिर है, जो उनकी उम्मीदों के अनुरूप है। गवर्नर ने स्पष्ट किया कि पिछले समय में ब्याज दरों में की गई 1% की कमी का प्रभाव अभी पूरी तरह अर्थव्यवस्था पर नहीं दिखा है। इसका असर धीरे-धीरे सामने आ रहा है। उन्होंने इस साल मॉनसून अच्छा रहने की वजह से अर्थव्यवस्था में तेजी आने की उम्मीद है। कृषि उत्पादन बढ़ने से ग्रामीण मांग और खर्च में वृद्धि होगी। बता दें इस फैसले से होम लोन, कार लोन आदि की ईएमआई पर असर पड़ेगा।
क्या थे एक्सपर्ट्स के अनुमान
40% विशेषज्ञों का मानना था कि 0.25% (25 बेसिस पॉइंट) की कटौती हो सकती है, जबकि 60% इसे स्थिर रहने की उम्मीद करते हैं। पिछले 6 महीनों में तीन कटौतियां (फरवरी, अप्रैल, जून) हो चुकी हैं, जिससे रेपो रेट 5.50% पर पहुंच गया है। अमेरिका द्वारा भारतीय निर्यात पर 25% टैरिफ लगाने का फैसला (7 अगस्त से प्रभावी) आरबीआई को सतर्क बना रहा है। इससे GDP पर 0.2–0.3% का नकारात्मक असर हो सकता है।
महंगाई अनुमान घटा
आरबीआई ने वित्त वर्ष 2026 (FY26) के लिए महंगाई का अनुमान 3.1% रखा है, जो जून के पूर्वानुमान (3.7%) से कम है। इसकी वजह मॉनसून और फसल उत्पादन में सुधार है।
मॉनसून से तेजी का संकेत
सामान्य से अधिक बारिश और घटती महंगाई आर्थिक गतिविधियों को मजबूती दे रही हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में खर्च बढ़ने की उम्मीद है। हालांकि, औद्योगिक उत्पादन की विकास दर मंद और असमान बनी हुई है। कुछ उप-क्षेत्रों में ही सुधार दिख रहा है।
जीडीपी ग्रोथ पर क्या बोले आरबीआई गवर्नर
आरबीआई ने चालू वित्त वर्ष (2024-25) के लिए जीडीपी विकास दर 6.5% ही रखने का फैसला किया है। जोखिम “संतुलित” बताए गए हैं।
क्या है रेपो रेट
ध्यान रहे कि रेपो रेट वह दर है, जिस पर रिजर्व बैंक द्वारा वाणिज्यिक बैंकों को ऋण दिया जाता है। अगर रिजर्व बैंक द्वारा सस्ती दरों पर कॉमर्शियल बैंकों को धन मुहैया कराया जाता है तो उसका सीधे असर आम आदमी पर भी पड़ता है, क्योंकि आरबीआई द्वारा दरों में कमी किए जाने के बाद बैंक भी अपनी ब्याज दरों में गिरावट करते हैं।