भारत और अमेरिका इस महीने के अंत तक एक प्रारंभिक ट्रेड डील समझौता करने की तैयारी में हैं। इस पर तेजी से बातचीत चल रही है। बताया जा रहा है कि यह समझौता इस साल 29 मार्च को तय किए गए तय नियमों और शर्तों के तहत ही होगा। पेश है राजीव जायसवाल की रिपोर्ट…
राजीव जायसवाल
भारत और अमेरिका इस महीने के अंत तक एक प्रारंभिक ट्रेड डील समझौता करने की तैयारी में हैं। इस पर तेजी से बातचीत चल रही है। बताया जा रहा है कि यह समझौता इस साल 29 मार्च को तय किए गए तय नियमों और शर्तों के तहत ही होगा। इस पर किसी तीसरे देश से संबंध या राजनीतिक बयानबाजी का कोई असर नहीं होगा।
मामले से जुड़े सूत्रों के मुताबिक, इस समझौते में दोनों देश कुछ जरूरी चीजों- जैसे ऊर्जा, कृषि और छोटे उद्योगों से जुड़े व्यापार पर एक-दूसरे के साथ सहयोग बढ़ाने पर चर्चा कर रहे हैं। इसमें ऊर्जा (तेल और गैस) का आयात-निर्यात भी शामिल हो सकता है, लेकिन समझौता किसी भी पक्ष को किसी तीसरे देश से तेल या गैस खरीदने से नहीं रोकेगा। यानी भारत चाहे तो रूस या किसी अन्य देश से ऊर्जा खरीद सकता है। सूत्रों के अनुसार, “हम अभी ऑनलाइन बातचीत कर रहे हैं और इस महीने छठी अहम बैठक में बाकी मतभेद सुलझा सकते हैं। अमेरिकी दल 24 अगस्त को दिल्ली आएगा। अगस्त के अंत तक इस बैठक के बाद कुछ ठोस नतीजे सामने आ सकते हैं।
मार्च में तय हुईं थी शर्तें
गौरतलब है कि इसी साल 29 मार्च को भारत और अमेरिका के अधिकारियों ने पहली बैठक की थी, जिसमें व्यापार समझौते के नियम और दायरे तय किए गए थे। 22 अप्रैल को अमेरिका के उपराष्ट्रपति जेडी वेंस ने भारत आकर इसकी आधिकारिक घोषणा की थी और कहा था कि यह दोनों देशों के रिश्तों में एक अहम कदम है। इसके बाद अब तक पांच बैठकें हो चुकी हैं। हालांकि, कृषि मामले में वार्ता अटकने से अब तक अंतरिम व्यापार समझौते पर सहमति नहीं बन पाई है।
ट्रंप के बयान का असर नहीं होगा
हाल ही में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत के खिलाफ कड़े बयान दिए हैं। 30 जुलाई को उन्होंने भारत से निर्यात होने वाले सामानों पर 25% शुल्क लगाने और रूस से तेल खरीद पर अतिरिक्त शुल्क लगाने की घोषणा की थी। इसके अलावा उन्होंने भारत और रूस की अर्थव्यवस्थाओं को ‘मृत‘ भी बताया था। ट्रंप ने यह भी आरोप लगाया था कि भारत द्वारा रूस से कच्चा तेल खरीदे जाने के चलते यूक्रेन युद्ध रुक नहीं रहा है।
तेल कहां से खरीदना है, भारत खुद तय करेगा
इस मामले में भारत ने साफ तौर पर कहा है कि तेल कहां से खरीदना है, ये वह खुद तय करेगा। हमें सस्ती और भरोसेमंद ऊर्जा चाहिए। रूस से मिलने वाला छूट वाला कच्चा तेल इस जरूरत को पूरा करता है। हम 39 देशों से तेल खरीदते हैं और अमेरिका से भी हमारी खरीद बढ़ी है, लेकिन रूस से खरीद बंद नहीं होगी। भारत यह भी कह रहा है कि वह किसी एक देश के दबाव में नहीं आएगा।
कितनी तेल खरीद
भारत ऊर्जा का दुनिया में तीसरा सबसे बड़ा आयातक है और अपने कुल जरूरत का 87% से अधिक कच्चा तेल आयात करता है। रूस फिलहाल भारत का सबसे बड़ा तेल सप्लायर है। आंकड़ों के अनुसार 2023 में भारत ने रूस से अपनी कुल तेल जरूरत का 39% हिस्सा खरीदा। इसके बाद इराक (19%), सऊदी अरब (16%), यूएई (5%) और अमेरिका (4%) से आयात किया गया।
निर्यातकों को राहत देने की तैयारी
केंद्र सरकार कपड़ा और रसायन जैसे क्षेत्रों के निर्यातकों को अमेरिकी शुल्क के प्रभाव से बचाने के लिए कुछ समर्थन उपायों पर काम कर रही है। एक अधिकारी ने सोमवार को यह जानकारी दी। अधिकारी ने बताया कि वाणिज्य मंत्रालय ने इस्पात, खाद्य प्रसंस्करण, इंजीनियरिंग, समुद्री और कृषि सहित कई क्षेत्रों के निर्यातकों के साथ बैठकें की हैं ताकि उच्च शुल्क के कारण उन्हें होने वाली समस्याओं को समझा जा सके।
विभिन्न क्षेत्रों के भारतीय निर्यातकों ने 25 प्रतिशत शुल्क से निपटने के लिए सरकार से वित्तीय सहायता और किफायती ऋण का अनुरोध किया है। अधिकारी ने बताया कि मंत्रालय इन मांगों पर विचार कर रहा है। मंत्रालय निर्यातकों को समर्थन देने के लिए राज्यों के साथ भी बातचीत करेगा। अमेरिका के उच्च शुल्क से प्रभावित होने वाले क्षेत्रों में वस्त्र/परिधान, रत्न एवं आभूषण, झींगा, चमड़ा एवं जूते, रसायन तथा विद्युत एवं यांत्रिक मशीनरी शामिल हैं।
मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर की संभावनाएं कम होंगी: मूडीज
मूडीज रेटिंग्स ने सोमवार को कहा कि अमेरिकी बाजार तक सीमित पहुंच से भारत के मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर में वृद्धि की संभावनाएं कम होंगी। रेटिंग एजेंसी ने साथ ही कहा कि देश की घरेलू मांग इन बाहरी दबावों के प्रति मजबूत बनी रहेगी।
मूडीज रेटिंग्स के वरिष्ठ उपाध्यक्ष क्रिश्चियन डी गुजमैन ने कहा कि भारतीय वस्तुओं पर निर्धारित संशोधित शुल्क दर एशिया-प्रशांत क्षेत्र के अन्य प्रमुख निर्यातकों की तुलना में काफी अधिक है। इनमें से कई देशों की शुल्क दरें 15 प्रतिशत से 20 प्रतिशत के बीच हैं उन्होंने कहा, विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था तक सीमित पहुंच से भारत के मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर, विशेष रूप से इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे उच्च मूल्यवर्धित क्षेत्रों, के लिए बढ़ने की संभावना कम होगी।
उन्होंने कहा कि अन्य देशों की तुलना में उच्च शुल्क ने भारत को नुकसान पहुंचाया है। गौरतलब है कि भारत, चीन से व्यापार और निवेश अपने यहां लाने के लिए प्रतिस्पर्धा कर रहा है।