शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने कहा कि अगर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गाय की आकृति उकेरा हुआ सेंगोल संसद भवन में ले जा सकते थे तो असली गाय क्यों नहीं ले गए?
ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने रविवार को कहा है कि सेंट्रल विस्टा में नए संसद भवन के उद्घाटन के समय उसमें आखिर गाय को क्यों नहीं ले जाया गया? उन्होंने कहा कि अगर गाय की मूर्ति को संसद भवन के अंदर ले जाया जा सकता है तो असली गाय को क्यों नहीं? दरअसल संसद भवन में प्रवेश करते समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हाथ में जो सेंगोल था उसपर गाय की आकृति बनी हुई थी। शंकराचार्य ने कहा कि उस समय पीएम मोदी को अपने साथ गाय भी ले जानी चाहिए थी।
उन्होंने कहा, ‘आशीर्वाद देने के लिए एक असली गाय को भी भवन में लाया जाना चाहिए था। अगर इसमें देरी होती है, तो हम पूरे देश से गायों को संसद भवन लाएंगे।’ अविमुक्तेश्वरानंद ने कहा कि इससे यह सुनिश्चित होगा कि प्रधानमंत्री और भवन को असली गाय का आशीर्वाद मिले। सेंगोल को लोकसभा में स्थापित किया गया है।
महाराष्ट्र सरकार से की गौ सम्मान क मांग
उन्होंने यह भी मांग की कि महाराष्ट्र सरकार गौ सम्मान पर तुरंत एक प्रोटोकॉल तैयार करे। उन्होंने कहा, “राज्य ने अब तक यह घोषित नहीं किया है कि गाय का सम्मान कैसे किया जाए। उसे एक प्रोटोकॉल को अंतिम रूप देना चाहिए ताकि लोग उसका पालन कर सकें और इसके उल्लंघन पर दंड भी तय करना चाहिए।” शंकराचार्य ने मांग की कि भारत के प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र में एक “रामधाम” हो – यानी 100 गायों की क्षमता वाली गौशाला हो।
शंकराचार्य ने कहा कि धर्म संसद ने होशंगाबाद के सांसद दर्शन सिंह चौधरी के समर्थन में एक बधाई प्रस्ताव पारित किया है, जिन्होंने मांग की है कि गाय को राष्ट्रमाता घोषित किया जाना चाहिए। भाषा विवाद पर उन्होंने कहा, “हिंदी को पहली बार प्रशासनिक उपयोग के लिए मान्यता दी गई थी। मराठी भाषी राज्य का गठन 1960 में हुआ था और मराठी को बाद में मान्यता दी गई। हिंदी कई बोलियों का प्रतिनिधित्व करती है – यही बात मराठी पर भी लागू होती है, जिसने अपनी ही बोलियों से भाषा उधार ली है।’ शंकराचार्य ने कहा कि किसी भी तरह की हिंसा को आपराधिक कृत्य माना जाना चाहिए। उन्होंने मालेगांव विस्फोट मामले में न्याय की मांग करते हुए कहा कि असली दोषियों को सजा मिलनी चाहिए।