पूर्व सांसद प्रज्वल रेवन्ना को नौकरानी से बलात्कार समेत कई अन्य गंभीर मामलों में आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई है.
पूर्व PM एचडी देवेगौड़ा के पौत्र प्रज्वल रेवन्ना को घरेलू नौकरानी से बलात्कार समेत कई अन्य गंभीर मामलों में अदालत ने कर्नाटक की अदालत ने आजीवन कारावास की सजा सुनाई है. उसे परप्पना अग्रहारा सेंट्रल जेल भेज दिया गया है. कर्नाटक के इस बेहद महत्वपूर्ण राजनीतिक परिवार का हिस्सा होने की वजह से प्रज्वल का मामला सुर्खियों में है. सजा पाया प्रज्वल खुद एमपी रहा है. उसके पिता एमएलए हैं. चाचा कुमार स्वामी केंद्र में मंत्री हैं. दादा पूर्व पीएम हैं. कुल मिलाकर कर्नाटक में यह परिवार रसूख रखता है लेकिन इस मामले ने पूरे परिवार की नजरें झुका दी हैं.
इसी के साथ के साथ सवाल यह उठने लगा है कि प्रज्वल को जेल में वीआईपी सुविधा मिल रही है. क्योंकि वह पूर्व एमपी है. घर के बड़े पीएम, सीएम रह चुके हैं. अभी भी घर के सदस्य देश एवं राज्य में कई महत्वपूर्ण पदों पर हैं.
आइए, इसी के बहाने जानते हैं कि भारत में कितनी तरह की जेल हैं, किस तरह के कैदी को कहां रखा जाता है, कैदी का नंबर कैसे तय होता है, क्या हाई-प्रोफाइल मामलों में कैदियों को विशेष सुविधाएं मिलती हैं, और इस पूरी व्यवस्था की चुनौतियां क्या हैं?
भारत में कितनी तरह की जेलें?
भारत में जेल व्यवस्था न केवल अपराधियों को दंडित करने, बल्कि उनके पुनर्वास और समाज में पुनः एकीकरण के उद्देश्य से भी संचालित होती है. भारत में एमपी-एमएलए को जेल में रखने के लिए कोई अलग या विशेष नियम नहीं हैं. उन्हें भी जेल मैनुअल और कानून के अनुसार ही रखा जाना चाहिए. राज्यवार जेल मैनुअल में छोटे-मोटे अंतर हो सकते हैं, लेकिन मूलभूत नियम और सुविधाएं लगभग समान हैं. सुप्रीम कोर्ट और संविधान के अनुसार, कानून के सामने सभी समान हैं] चाहे वह आम नागरिक हो या जनप्रतिनिधि.
- सेंट्रल जेल: ये सबसे बड़ी और उच्च सुरक्षा वाली जेलें होती हैं, जहां आमतौर पर वे कैदी रखे जाते हैं जिन्हें दो साल या उससे अधिक की सजा मिली हो. यहां कैदियों के लिए सुधारात्मक गतिविधियों, शिक्षा, और व्यावसायिक प्रशिक्षण की भी व्यवस्था होती है. ऐसी जेलों की संख्या कम है.
- जिला कारागार: नाम के अनुरूप जिला जेल लगभग हर जिले में स्थापित हैं. यहां विचाराधीन बंदी रखे जाते हैं लेकिन जरूरत पड़ने पर छोटी सजा पाए कैदियों को रख दिया जाता है.
- उप कारागार: ये छोटी जेलें होती हैं, जो तहसील स्तर पर बनाई गयी हैं. पर, इनकी संख्या अब बहुत कम है. क्योंकि अब जिले छोटे होने लगे हैं. अंग्रेजों के जमाने और उनके जाने के बाद भी तहसील स्तर पर कारागार होते थे. यहां भी आमतौर पर विचाराधीन बंदी रखे जाते हैं. लेकिन जरूरत पड़ने पर सजायाफ्ता को भी रखा जा सकता है.
- खुली जेल: यहां कम जोखिम वाले, अच्छे आचरण वाले कैदियों को रखा जाता है. इन्हें खेती, निर्माण आदि कार्यों में लगाया जाता है और ये अपेक्षाकृत खुली जगह होती हैं, जहां सुरक्षा का स्तर कम होता है.
- स्पेशल जेल: ये विशेष अपराधियों, जैसे आतंकवादी, संगठित अपराधी, या हाई-प्रोफाइल कैदियों के लिए होती हैं. यहां सुरक्षा के विशेष इंतजाम होते हैं. कई बार स्पेशल जेल कुछ दिन के लिए भी बनाई जाती है. मसलन, कोई बड़ा आंदोलन है. जेल में जगह नहीं है तो सरकार के पास अधिकार है कि वह किसी भी स्कूल, धर्मशाला को जेल में बदल दे. ऐसे ही किसी खास नेता आदि को कुछ घंटों के लिए गिरफ़्तारी के केस में किसी डाक बंगले आदि को भी स्पेशल जेल में कन्वर्ट करने की व्यवस्था है.
- बाल सुधार गृह: बाल सुधार गृह भी मूलतः जेल ही हैं लेकिन इन्हें सुधार गृह कहकर संबोधित करने से लिखने में इस्तेमाल किया जाता है क्योंकि यहां किशोर अपराधी रखे जाते हैं. जहां सुधारात्मक शिक्षा और प्रशिक्षण पर जोर दिया जाता है. बाल सुधार गृह में बंद कैदियों की पहचान और उनकी तस्वीर भी न छापने के निर्देश हैं. क्योंकि ऐसा माना जाता है कि किशोर उम्र में हुई गलती कई बार अनजाने में होती है, ऐसे में उसे सुधरने का पूरा मौका दिया जाना चाहिए.
किस तरह के कैदी को कहां रखा जाता है?
अब यह जान लेते हैं कि किस तरह के कैदी को किस जेल में रखा जा सकता है? यह कई चीजों पर निर्भर करता है. इनमें सजा की अवधि, अपराध करने वाले का पूर्व इतिहास, व्यवहार आदि से तय किया जाता है कि अमुक कैदी को किस जेल में रखा जाएगा.
- गंभीर अपराध (हत्या, बलात्कार, आतंकवाद) के दोषियों को सेंट्रल जेल में रखा जा सकता है.
- लंबी सजा वाले कैदी सेंट्रल जेल में, छोटी सजा या ट्रायल वाले कैदी डिस्ट्रिक्ट या सब-जेल में रखे जा सकते हैं.
- किशोर अपराधियों को बाल सुधार गृह में रखा जाएगा, चाहे उनसे कितना भी गंभीर जुर्म हुआ हो.
- अच्छे आचरण वाले कैदियों को ओपन जेल में स्थानांतरित किया जा सकता है. मतलब आजीवन सजा काट रहे कैदियों का व्यवहार अच्छा होने पर उन्हें यह सुविधा मिल सकती है.
- हाई-प्रोफाइल या खतरे वाले कैदियों को स्पेशल जेल या हाई-सिक्योरिटी वार्ड में रखा जाता है.
मतलब, किस अपराधी को किस जेल में रखना है, यह सब तय तो है लेकिन राज्य सरकारें मौके की नजाकत को देखते हुए भी कई बार फैसले लेती हैं.
कैदी के नम्बर का मतलब ऐसे समझें
जब कोई व्यक्ति जेल में दाखिल होता है, तो उसे एक यूनिक कैदी नंबर दिया जाता है. यह नंबर आमतौर पर निम्नलिखित आधार पर तय होता है.
- जेल का कोड: हर जेल का एक यूनिक कोड होता है.
- साल: जिस वर्ष कैदी दाखिल हुआ.
- क्रम संख्या: उस साल में दाखिल होने वाले कैदियों की क्रम संख्या.
उदाहरण के लिए, अगर किसी कैदी का नंबर DL/2025/123 है, तो इसका अर्थ है दिल्ली जेल, वर्ष 2025, और 123वां कैदी. हालाँकि, कैदी की वर्दी पर सामान्य दशा में केवल अंतिम नंबर ही दर्ज किया जाता है.
हाई-प्रोफाइल मामलों में कैदियों को क्या विशेष सुविधाएं मिलती हैं?
जेल मैनुअल के अनुसार, सभी कैदियों के साथ समान व्यवहार होना चाहिए. लेकिन व्यवहार में, हाई-प्रोफाइल या वीआईपी कैदियों को कुछ अतिरिक्त सुविधाएं मिल जाती हैं. इन्हें आम कैदियों से अलग रखा जाता है, ताकि उनकी जान को खतरा न हो. बेहतर मेडिकल सुविधाएं, निजी डॉक्टर की अनुमति भी दी जाती है. कभी-कभी विशेष भोजन की अनुमति, लेकिन यह जेल मैन्युअल के अनुसार ही देने का नियम है. परिवार या वकील से अधिक बार मिलने की अनुमति. अपेक्षाकृत साफ-सुथरी और कम भीड़ वाली बैरक जैसी सुविधाएं मिल जाती हैं.
हालांकि, सुप्रीम कोर्ट और विभिन्न हाईकोर्ट्स ने बार-बार यह स्पष्ट किया है कि जेल में किसी भी कैदी को कानून से ऊपर कोई सुविधा नहीं दी जा सकती. यदि ऐसा होता है, तो यह जेल प्रशासन की लापरवाही या भ्रष्टाचार का मामला माना जाएगा. बावजूद इसके जेल अधिकारी भांति-भांति के दबाव झेलते हुए खास कैदियों को खास सुविधा देते हुए पाए जाते हैं. इसके लिए उन्हें निलंबन, तबादलों से लेकर मुकदमे तक झेलने पड़े हैं. इन्हीं दबावों की आड़ में रिश्वतखोरी भी जन्म लेती है और जेल में अनेक गंभीर वारदातें भी होती रही हैं.

पूर्व सांसद प्रज्वल रेवन्ना
जेल व्यवस्था के सामने क्या हैं चुनौतियां?
भारत की जेल व्यवस्था कई चुनौतियों से जूझ रही है. अधिकतर जेलों में क्षमता से अधिक कैदी हैं, जिससे स्वास्थ्य और सुरक्षा संबंधी समस्याएं बढ़ जाती हैं. शिक्षा, व्यावसायिक प्रशिक्षण और काउंसलिंग जैसी सुविधाएं बेहद सीमित हैं. कई बार जेल प्रशासन की मिलीभगत से कैदियों को अवैध सुविधाएं मिल जाती हैं. कैदियों के साथ अमानवीय व्यवहार की खबरें अनेक बार आती हैं.
असल में भारत की जेल व्यवस्था का उद्देश्य केवल दंड देना नहीं, बल्कि अपराधियों का सुधार और पुनर्वास भी है. हालांकि, व्यावहारिक स्तर पर कई बार इसमें खामियां रह जाती हैं. हाई-प्रोफाइल मामलों में जेल प्रशासन पर अतिरिक्त दबाव होता है कि वे कानून के अनुसार निष्पक्षता बरतें. जेल में सुधार को देश के अलग-अलग राज्यों में समय-समय पर अनेक कमेटियां बनीं. सुधार की सिफारिशें हुईं. पर, ज्यादातर लागू नहीं हो पाई. इसकी वजह से जेल व्यवस्था अक्सर कठघरे में दिखाई देती है.
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