धनकटी आंदोलन के समय शिबू सोरेन को ढूंढते हुए पुलिस उनके गांव पहुंच गई। गांव की महिलाओं ने शिबू सोरेन के लिए मोर्चा खोल दिया और पुलिस को वहां से भागना पड़ गया।
आदिवासियों के मसीहा, दिशोम गुरु के नाम से प्रसिद्ध झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन का 81 साल की उम्र में निधन हो गया है। वह लंबे समय से बीमार चल रहे थे। शिबू सोरेन का राजनीतिक सफर 68 साल लंबा था क्योंकि 13 साल की उम्र में ही वह धनकटी आंदोलन में सक्रिय हो गए थे। यह आंदोलन उस समय के महाजनों के खिलाफ था। धनकटी आंदोलन से सियासी सफर शुरू करने वाले शिबू सोरेने जीवन के अंतिम पड़ाव तक रुके नहीं। वह झारखंड के तीन बार मुख्यमंत्री बने और केंद्र में मंत्री भी रहे।
बिहार के रामगढ़ में जन्मे शिबू सोरेन के पिता शोबरन सोरेन एक शिक्षक थे। उस समय सूदखोरों और महाजनों ने गरीबों का जीना हराम कर दिया था। वहीं शिबू सोरेन के पिता जागरूक और पढ़े लिखे थे। ऐसे में उन्होंने महाजनों का विरोध करना शुरू कर दिया। शोबरन के बढ़ते समर्थन की वजह से महाजनों और सूदखोरों में डर समा गया था। महाजनों ने उनको रास्ते से हटाने के लिए हत्या का प्लान बना डाला और एक दिन जब वह बेटे के हॉस्टल जा रहे थे, तभी रास्ते में उन्हें मार डाला गया।
पिता की हत्या के बाद शिबू सोरेन पूरे आक्रोश के साथ आंदोलन में कूद पड़े। उनकी अगुआई में महाजनी आंदोलन भी चला। शिबू सोरने के लिए क्या महिला और क्या पुरुष, सब हाथ में हसिया और तीर कमान लेकर निकल पड़ते थे। महिलाएं जमीदारों के खेत काट डालती थीं और पुरुष तीर-कमान लेकर उनकी रक्षा करते रहते थे। जमीदारों की शिकायत पर गांवों में पुलिस के छापे पड़ने लगे। ऐसे में शिबू सोरेन अंडरग्राउंड हो गए। जंगलों में छिपकर ही उन्होंने आंदोलन जारी रखा। पुलिस को चकमा देने में वह माहिर थे।
शिबू सोरेने से ही उनका पता पूछने लगी पुलिस
धनकटी आंदोलन के समय पुलिस शिबू सोरेने को ढूंढते हुए उनके गांव पहुंची। संयोग से शिबू सोरेन खुद ही पुलिस को सबसे आगे मिल गए। पुलिस ने उनसे पूछा, शिबू सोरेन को जानते हो? शिबू ने कहा, चलिए मैं आपको उनके पास लेकर चलता हूं। शिबू सोरेन के साथ पुलिस को आता देख महिलाओं ने मोर्चा खोल दिया। महिलाएं डंडे लाठी लेकर पुलिस की ओर दौड़ पड़ीं। हाल यह हुआ कि पुलिस को वहां से जान बचाकर भागना पड़ा। तब से ही पुलिस के अधिकारियों को शिबू सोरेन की तस्वीर थमा दी गई।
धनकटी आंदोलन की वजह से बिहार की सरकार भी बैकफुट पर आ गई थी र इसके बाद महाजनी को लेकर सख्त कानून बनाया गया। वहीं शिबू सोरेन यहीं से आदिवासियों के मसीहा हो गए। वहीं से उन्हें ‘दिशोम गुरु’ का नाम दे दिया गया जिसका मतलब होता है जमीन का नेता। 1977 में शिबू सोरेन ने पहली बार दुमका सीट से चुनाव लड़ा था। हालांकि उन्हें भारतीय लोकदल के बटेश्वर हेंब्रम से हार का सामना करना पड़ा। 1980 में वह दुमका से जीते और संसद पहुंचे। इसके बाद चार बार लगातार उन्होंने लोकसभा चुनाव में जीत हासिल की। एक ब्रेक के बाद 2004, 2009 और 2014 में वह फिर से दुमका से लोकसभा का चुनाव जीते। वह नरसिम्हा राव और मनमोहन सिंह की सरकार में केंद्रीय मंत्री बने। शिबू सोरेन तीन बार झारखंड के मुख्यमंत्री बने लेकिन कभी अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए।