बयान का सियासी संदर्भ
दरअसल, अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार जाने के बाद वर्ष 2004 में यूपीए-1 की सरकार बनी थी जिसमें राजद एक प्रमुख सहयोगी थी. लालू यादव उस समय रेल मंत्री थे और अपने बयानों से चर्चा में रहते थे. यूपीए में कांग्रेस के नेतृत्व में कई क्षेत्रीय दल शामिल थे और गठबंधन को एकजुट रखने के लिए सोनिया गांधी की रणनीति की तारीफ और आलोचना दोनों होती थी. लालू का यादव का “टीटीएम” बयान दरअसल गठबंधन की सियासत पर एक हल्का-फुल्का तंज ही था जिसमें उन्होंने सोनिया की नेतृत्व शैली को “तेल मालिश” से जोड़ा. इसका अर्थ यह था कि गठबंधन के दलों को मनाने की कला में सोनिया गांधी काबिल थीं. लालू यादव का यह बयान विपक्ष के उस आरोप का जवाब था जिसमें कहा गया था कि सोनिया सहयोगियों पर दबाव बनाती हैं.
बयान का असर और विवाद
लालू यादव ने क्यों चुनी यह शैली?
लालू यादव की हाजिरजवाबी उनकी सियासी ताकत रही है. उन्होंने हमेशा देसी अंदाज में गंभीर मुद्दों को हल्के ढंग से पेश किया है. “टीटीएम” बयान उनकी इसी शैली का हिस्सा था जिसका मकसद सदन का माहौल हल्का करना और विपक्ष के हमलों को हास्य से जवाब देना था. लालू यादव ने बाद में सफाई दी कि उनका इरादा सोनिया गांधी का अपमान करना नहीं था, बल्कि यह एक मजाक था जो गठबंधन की मजबूती को बताने के लिए था. हालांकि, बीजेपी ने इसे “महिला विरोधी” बताकर हंगामा किया और लालू से माफी की मांग की. लालू यादव ने इसे “मजाक में लिया जाए” कहकर टाल दिया.
लालू यादव और सोनिया गांधी के रिश्ते हमेशा मधुर रहे हैं.
तब का वाकया और प्रासंगिकता
सोनिया-लालू यादव का रिश्ता
बता दें कि लालू यादव और सोनिया गांधी का सियासी रिश्ता हमेशा मजबूत रहा. 1990 के दशक में जब सोनिया पर “विदेशी मूल” का मुद्दा उठा तब लालू यादव उनके समर्थन में दीवार बनकर खड़े रहे. वर्ष 2004 में जब सोनिया ने मनमोहन सिंह को पीएम बनाया तब लालू यादव ने इसका स्वागत किया. लेकिन, लालू यादव इसके बावजूद अपनी अहमियत को भी कभी कम नहीं होने देना चाहते थे. और “टीटीएम” बयान से यह भी जाहिर हुआ कि वह एक बार फिर यही दिखाना चाहते थे. लालू यादव का यह बयान उस दौर में यूपीए की एकजुटता और लालू की बेबाकी का प्रतीक बन गया.