भारत की आजादी के बाद साल 1950-60 के दशक में सोवियत संघ के दौर में दोनों देशों में रक्षा सहयोग की शुरुआत हुई थी.
पूरी दुनिया आज फ्रेंडशिप डे मना रही है. ऐसे में भारत और रूस की दोस्ती एक मिसाल के रूप में कायम है. अमेरिका लाख आंखें तरेरे पर इन दोनों देशों की दोस्ती पर कोई आंच नहीं आती. सोवियत संघ के समय में शुरू हुई यह दोस्ती विघटन के बाद रूस के साथ भी जारी रही. यहां तक कि यूक्रेन के साथ युद्ध के समय जब पश्चिमी देशों ने रूस पर तमाम पाबंदियां लगा दीं, तब भी भारत ने रूस से कच्चे तेल का आयात जारी रखा.
आइए जान लेते हैं कि यह दोस्ती कितनी पुरानी और दोनों देशों के बीच संबंध कैसे मजबूत होते गए? रूस से भारत तेल खरीद रहा तो ट्रंप को दिक्कत क्यों हो रही?
सालों पहले शुरू हुआ रक्षा संबंध आज भी कायम
अमेरिका को भारत और रूस की दोस्ती कभी भी रास नहीं आई. इसके बावजूद दोनों देशों के बीच रक्षा सहयोग कई दशकों से दोनों देशों की रीढ़ की हड्डी बना हुआ है. हथियारों की खरीद-बिक्री से लेकर रणनीतिक साझेदारी और तकनीकी सहयोग के साथ ही एक-दूसरे पर भरोसेमंद स्थायी कायम है. भारत की आजादी के बाद साल 1950-60 के दशक में सोवियत संघ के दौर में दोनों देशों में रक्षा सहयोग की शुरुआत हुई थी. मिग-21 सौदे से शुरू हुआ यह संबंध आज भी कायम है और आईएनएस विक्रमादित्य, ब्रह्मोस मिसाइल होते हुए एस-400 एयर डिफेंस सिस्टम तक पहुंच गया है. रूस के साथ यह साझेदारी भारत की रक्षा शक्ति को बेजोड़ बनाए रखने में मदद करती है.

मिग-21.
मिग-21 से लेकर सुखोई-30एमकेआई तक
यह साल 1962-63 की बात है, जब भारत ने सोवियत संघ के साथ मिग-21 सुपरसोनिक फाइटर जेट के लिए सौदा किया था. इसके साथ ही इंडियन एयरफोर्स के लिए एक नया युग शुरू हुआ और इस फाइटर जेट ने साल 1965 और 1971 की लड़ाइयों में अग्रणी भूमिका निभाई ही, 1999 की कारगिल की लड़ाई में भी इसके भारत का साथ दिया. यही नहीं, रणनीतिक रूप से भी रूस हमेशा भारत के साथ खड़ा रहा और शीत युद्ध के समय शुरू हुई एकजुटता संयुक्त राष्ट्र में समर्थन और 1971 के बांग्लादेश मुक्ति संग्राम तक जारी रही. फिर 1970-80 के दशक में भारत को रूस से मिग-23, मिग-27 और मिग-29 जैसे फाइटर जेट मिले. 1996 में भारत-रूस के बीच सुखोई-30एमकेआई के लिए सौदा हुआ. इस फाइटर जेट को रूस ने भारत के लिए विशेष रूप से तैयार किया. आज इसका उत्पादन भारत में ही एचएएल के जरिए होता है.
ब्रह्मोस से लेकर एस-400 तक समझौते
साल 2001 से भारत ने रूस की मदद से ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल का निर्माण शुरू किया. आज इसकी गिनती दुनिया में सबसे तेज और सटीक मिसाइलों में होती है. साल 2004 में रूस से लिया गया विमानवाहक पोत आईएनएस विक्रमादित्य इंडियन नेवी में शामिल किया गया. इससे पहले सोवियत संघ में डिजाइन किया गया आईएनएस विक्रांत साल 1987 में इंडियन नेवी में शामिल किया गया था. अमेरिका की लाख पाबंदियों के बावजूद साल 2018 में रूस के साथ भारत ने 5.43 बिलियन डॉलर की लागत से एस-400 एयर डिफेंस सिस्टम के लिए सौदा किया और साल 2021 से इसकी डिलीवरी शुरू हो गई. यह सिस्टम 400 किमी दूर से ही दुश्मनों की मिसाइलों और फाइटर जेट की पहचान कर उनको नष्ट कर सकता है. हालिया ऑपरेशन सिंदूर के दौरान पाकिस्तान की ओर से की गई जवाबी कार्रवाई रोकने में इसने महत्वपूर्ण भूमिका अदा की.

ब्रह्मोस मिसाइल
टैंक से लेकर राइफल तक की ताकत
सोवियत संघ ने साल 1979 में भारत को टी-72 टैंक की पहली खेप मुहैया कराई थी. तब यह दुनिया के सबसे एडवांस मेन बैटल टैंकों में से एक था. भारत ने इनको नाम दिया अजेय. फिर साल 2001 में रूस के साथ समझौते के तहत भारत को टी-90 टैंकों की ताकत मिली. इनके अलावा साल 2019 में रूस के साथ हुए एक सौदे के तहत उत्तर प्रदेश के अमेठी स्थित फैक्टरी में रूस की मदद से एके-203 असॉल्ट राइफल का निर्माण शुरू किया गया है. यह अत्याधुनिक राइफल पुरानी पड़ रही इंसास राइफल का स्थान ले रही है.
ऊर्जा से लेकर सांस्कृतिक संबंध तक कायम
परमाणु ऊर्जा की दिशा में भी रूस ने भारत का सहयोग किया और कुडनकुलम परमाणु संयंत्र के जरिए रूस की मदद से भारत ने स्वच्छ ऊर्जा में सफलता हासिल की. इसके अलावा ऊर्जा के क्षेत्र में रूस से तेल और गैस आयात कर भारत अपनी अर्थव्यवस्था को गति देता है. यही नहीं, भारत ने जब अंतरिक्ष अभियान शुरू किए, तब भी रूस ने ही मदद की. इसके अलावा भारत-रूस एक साथ मिलकर बहुध्रुवीय विश्व के लिए प्रतिबद्ध रहे हैं. वहीं, अमेरिकी एकध्रुवीय विश्व बनाने की कोशिश करता रहता है. खासकर अमेरिका वैश्विक रूप से एकतरफावाद और पश्चिमी पाखंड बनाए रखना चाहता है, जबकि भारत और रूस ब्रिक्स और एससीओ आदि मंचों के जरू रणनीतिक स्वायत्तता और संतुलन बनाए रखने की कोशिश करते हैं.

प्रधानमंत्री मोदी और व्लादिमीर पुतिन
दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान भी काफी गहरा है. मास्को में राज कपूर की विरासत इसकी मिसाल है. रूसी विश्वविद्यालयों में भारतीय छात्रों की उपस्थिति इसका एक प्रमाण है. बॉलीवुड हो आयुर्वेद और योग या फिर साहित्य और भाषाएं, दोनों देशों के दिलों को जोड़ती रही हैं. फिर रूस के अंतरराष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारे में भारत की ओर से किया गया निवेश यूरेशियाई व्यापार को एक नया रूप दे रहा है.
भारत और रूस की दोस्ती अमेरिका को रास नहीं आती
भारत और रूस की दोस्ती अमेरिकी को कभी भी रास नहीं आती. एशिया में अपना दबदबा कायम रखने के लिए अमेरिका चाहता है कि रूस के साथ भारत के अच्छे संबंध न रहें. फिर चीन और रूस की दोस्ती भी जगजाहिर है. इसकी काट के रूप में अमेरिका पाकिस्तान को बढ़ावा देता है, जबकि चीन खुद पाकिस्तान को अपने कब्जे में किए हुए है. भारत को अमेरिका अपना एफ-35 फाइटर जेट बेचना चाहता था, जिससे भारत ने इनकार कर दिया.
ऐसे में अमेरिका को लगता है कि भारत के संबंध रूस के साथ अच्छे रहे और इसे तेल-हथियार आदि अपने इस दोस्त से मिलते रहे तो उसके हाथ से भारत जैसा एक बड़ा बाजार खिसक जाएगा. इसीलिए रूस से तेल की खरीद पर अमेरिका भारत को आंखें दिखाता है और डोनाल्ड ट्रंप ने टैरिफ और जुर्माने की घोषणा कर इस दोस्ती में दरार डालने की कोशिश जरूर की पर उसमें यह कामयाब नहीं हुए.
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