महागठबंधन पर असर: आरजेडी की मुश्किलें बढ़ेंगी?
कांग्रेस की यह रणनीति महागठबंधन, खासकर आरजेडी के लिए चुनौती बन सकती है. आरजेडी का पारंपरिक वोट बैंक मुस्लिम-यादव (MY) समीकरण पर टिका है. 2015 में महागठबंधन को 80% मुस्लिम वोट मिले थे, लेकिन 2020 में यह समीकरण कमजोर हुआ, जब AIMIM ने सीमांचल में पांच सीटें जीतकर RJD के वोट बैंक में सेंध लगाई. अगर कांग्रेस मुस्लिम वोटों को आकर्षित करने में कामयाब रही तो RJD का वोट आधार और कमजोर हो सकता है. तेजस्वी यादव के नेतृत्व वाली RJD पहले ही सीट बंटवारे और गठबंधन की रणनीति को लेकर दबाव में है.
कर्नाटक-तेलंगाना मॉडल की झलक?
असदुद्दीन ओवैसी की राजनीति को खतरा?
असदुद्दीन ओवैसी की AIMIM बिहार में मुस्लिम वोटों का एक विकल्प बनकर उभरी थी. 2020 में उसने पांच सीटें जीतीं, लेकिन हाल में महागठबंधन में शामिल होने की उसकी कोशिश नाकाम रही. कांग्रेस की सक्रियता से ओवैसी के लिए मुश्किलें बढ़ सकती हैं. अशोक कुमार शर्मा कहते हैं कि अगर कांग्रेस मुस्लिम वोटरों को अपने साथ जोड़ लेती है तो AIMIM का वोट शेयर सिकुड़ सकता है. हालांकि, ओवैसी 45 सीटों पर अकेले लड़ने की तैयारी में हैं जो महागठबंधन को अप्रत्यक्ष नुकसान पहुंचा सकता है. बावजूद इसके अगर कांग्रेस चुनाव मैदान में अधिक दम खम के साथ आती दिखी तो संभव है कि मुस्लिमों का भरोसा कांग्रेस पर अधिक हो.
कांग्रेस की रणनीति: अलग राह या इंतजार?
आने वाले समय की तस्वीर: कांग्रेस का उदय?
कांग्रेस की यह कवायद बिहार में उसकी खोई जमीन वापस पाने की कोशिश है. कभी लालू यादव के तंज का शिकार रही कांग्रेस अब “बी” नहीं, “ए” पार्टी बनने की राह पर आगे बढ़ती दिख रही है. कांग्रेस अपने पुराने आधार वोट को भी पुख्ता करने की कवायद कर रही है. वह दलित वोटों को लुभाने में लग गई है और मुस्लिम मतदाताओं के साथ ही ओबीसी समुदाय और सवर्णों को भी अपने पाले में करने में लग गई है. इस बीच अगर मुस्लिम वोटर कांग्रेस की ओर शिफ्ट हुए तो वह न केवल RJD पर दबाव बनाएगी, बल्कि बीजेपी-जेडीयू गठबंधन के लिए भी चुनौती पेश करेगी. हालांकि, यह रणनीति तभी कामयाब होगी जब कांग्रेस जमीन पर संगठन को मजबूत करे और गठबंधन के भीतर संतुलन बनाए रखे.