रूस के पूर्व राष्ट्रपति दिमित्री मेदवेदेव
रूस और अमेरिका के बीच बढ़ते तनाव के बीच एक नाम अचानक सुर्खियों में आ गया है, दिमित्री मेदवेदेव. रूस के पूर्व राष्ट्रपति और मौजूदा सुरक्षा परिषद के उपाध्यक्ष मेदवेदेव ने हाल ही में ऐसा बयान दे दिया, जिसे अमेरिका ने सीधी परमाणु धमकी मान लिया.
नतीजा ये हुआ कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने रूस के पास दो परमाणु पनडुब्बियां तैनात करने का आदेश दे डाला. अब दुनिया सहमी हुई है, क्योंकि दोनों परमाणु ताकतें एक-दूसरे को खुली चेतावनी दे रही हैं.
आखिर ये तनाव कैसे बढ़ा
अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने बीते हफ्ते चेतावनी दी थी कि अगर रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन यूक्रेन में युद्धविराम के लिए सहमत नहीं होते, तो अमेरिका रूस पर और कड़े प्रतिबंध लगाएगा. ट्रंप ने इसे एक सीजफायर-या-सैंक्शन डेडलाइन करार दिया था. इसका जवाब देते हुए मेदवेदेव ने अमेरिका को रूस की कुख्यात परमाणु प्रणाली डेड हैंड की याद दिलाई एक ऐसा सिस्टम जो अगर रूस पर पहला हमला होता है, तो अपने-आप जवाबी परमाणु हमला कर देता है. ट्रंप ने इस बयान को गंभीर खतरा मानते हुए रूस के पास परमाणु पनडुब्बियां तैनात करने का आदेश दिया. उन्होंने मेदवेदेव को फेल्ड प्रेजिडेंट कहकर चेतावनी दी कि वो “खतरनाक जमीन” पर कदम रख रहे हैं.
कौन हैं दिमित्री मेदवेदेव?
2008 से 2012 तक रूस के राष्ट्रपति रहे. उस वक्त व्लादिमीर पुतिन संविधान के कारण राष्ट्रपति नहीं बन सकते थे, तो उन्होंने मेदवेदेव को सामने रखा. जन्म लेनिनग्राद (अब सेंट पीटर्सबर्ग) में हुआ. पेशे से वकील हैं. 1990 के दशक से ही पुतिन के करीबी रहे. राष्ट्रपति बनने से पहले गैज़प्रॉम के चेयरमैन, उप प्रधानमंत्री और चीफ ऑफ स्टाफ जैसे अहम पद संभाले. राष्ट्रपति रहते हुए New START परमाणु संधि और पुलिस सुधार जैसे शांतिपूर्ण कदम उठाए थे. 2020 तक रूस के प्रधानमंत्री रहे, अब राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद के उपाध्यक्ष हैं, पर असल ताकत सीमित मानी जाती है.
परमाणु धमकियों का नया पोस्टर बॉय
राष्ट्रपति रहते हुए मेदवेदेव को उदार और प्रगतिशील चेहरा माना जाता था, लेकिन 2022 में यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद उनका रूप पूरी तरह बदल चुका है.अब वे लगातार पश्चिमी देशों को परमाणु हमले की अप्रत्यक्ष धमकियां देते हैं, और सोशल मीडिया पर अमेरिकी और यूरोपीय नेताओं को तंज कसते हैं. जानकार मानते हैं कि ये बयानों का सिलसिला पुतिन और रूसी राष्ट्रवादियों के बीच अपनी पकड़ बनाए रखने की कोशिश है.