होम नॉलेज अकबर से औरंगजेब तक, भारत में मुगलों ने कितने दोस्त बनाए, कितनों के साथ किया विश्वासघात?

अकबर से औरंगजेब तक, भारत में मुगलों ने कितने दोस्त बनाए, कितनों के साथ किया विश्वासघात?

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हर साल अगस्‍त के पहले रविवार को फ्रेंडशिप डे मनाया जाता है.

भारत का इतिहास अनेक राजवंशों, साम्राज्यों और शासकों की कहानियों से भरा पड़ा है. इनमें मुगल साम्राज्य (साल 1526 से 1857) का स्थान सबसे महत्वपूर्ण है. मुगलों ने न केवल भारत की राजनीति, संस्कृति और समाज को गहराई से प्रभावित किया, बल्कि अपनी सत्ता को मजबूत करने के लिए कई बार दोस्ती और धोखे की नीति भी अपनाई.

फ्रैंडशिप डे के बहाने आइए इस मुद्दे को थोड़ा विस्तार देते हैं. समझते हैं कि मुगल शासकों ने किस तरह भारतीय राजाओं-महाराजाओं से पहले दोस्ती की, फिर समय आने पर उन्हें धोखा दिया, और इसका भारतीय इतिहास पर क्या प्रभाव पड़ा.

मुगलों की भारत में आमद और शुरुआती रणनीति

मुगल साम्राज्य की नींव बाबर ने 1526 में पानीपत की पहली लड़ाई में इब्राहीम लोदी को हराकर रखी. बाबर के बाद हुमायूं, अकबर, जहांगीर, शाहजहां और औरंगजेब जैसे शासकों ने भारत पर राज किया. मुगलों की सबसे बड़ी ताकत उनकी सैन्य शक्ति और रणनीतिक चतुराई थी, लेकिन वे जानते थे कि विशाल भारत को केवल तलवार के बल पर नहीं जीता जा सकता, इसलिए उन्होंने राजनीतिक दोस्ती और संधि की नीति अपनाई.

अकबर की संधि और विवाह नीति

अकबर (साल 1556 से 1605) को मुगल साम्राज्य का सबसे चतुर और दूरदर्शी शासक माना जाता है. उसने राजपूतों के साथ दोस्ती की नीति अपनाई. कई राजपूत राजाओं से वैवाहिक संबंध बनाए. आमेर के राजा भारमल की बेटी जोधा बाई से विवाह किया. अकबर ने राजपूतों को उच्च पद दिए, उनकी सेना में शामिल किया और उन्हें सम्मानित किया. लेकिन यह दोस्ती हमेशा स्थायी नहीं रही.

Akbar

अकबर को मुगल साम्राज्य का सबसे चतुर और दूरदर्शी शासक माना जाता है.

धोखे की मिसालें

अकबर ने मेवाड़ के महाराणा प्रताप को कई बार संधि के लिए बुलाया, लेकिन जब महाराणा प्रताप ने झुकने से इनकार किया, तो हल्दीघाटी का युद्ध हुआ. अकबर ने मेवाड़ के अन्य राजाओं को तोड़कर अपने पक्ष में कर लिया, लेकिन प्रताप को कभी नहीं जीत सका. इसी तरह, अकबर ने गुजरात, बंगाल, कश्मीर आदि के शासकों से पहले दोस्ती की, फिर जब वे कमजोर पड़े, तो उन पर हमला कर दिया.

जहांगीर और शाहजहां की चालाकी

जहांगीर (साल 1605 से 1627 तक) और शाहजहां (साल 1628 से 1658 तक) ने भी अपने पूर्वजों की नीति को आगे बढ़ाया. जहांगीर ने मेवाड़ के अमर सिंह से संधि की, लेकिन शर्तें ऐसी रखीं कि मेवाड़ की स्वतंत्रता लगभग खत्म हो गई. शाहजहां ने दक्षिण भारत के बीजापुर, गोलकुंडा और अहमदनगर के सुल्तानों से पहले दोस्ती की, फिर समय आने पर उन पर हमला कर दिया.

औरंगजेब ने दोस्ती का मुखौटा लगाकर दिया धोखा

औरंगजेब (साल 1658 से 1707 तक) के समय मुगल साम्राज्य सबसे बड़ा था, लेकिन उसकी नीति सबसे कठोर और धोखेबाज मानी जाती है. उसने अपने पिता शाहजहां को कैद किया, भाइयों को मरवा दिया. दक्षिण भारत के मराठा शासक शिवाजी से पहले दोस्ती का हाथ बढ़ाया, फिर आगरा किले में कैद कर लिया. शिवाजी किसी तरह भाग निकले, लेकिन यह घटना मुगलों की दोस्ती और धोखे की नीति का बड़ा उदाहरण है.

दक्षिण भारत के सुल्तानों के साथ धोखा

औरंगजेब ने बीजापुर और गोलकुंडा के सुल्तानों से पहले संधि की, फिर जब वे कमजोर पड़े, तो उन पर हमला कर दिया और उनके राज्य छीन लिए. इसी तरह, उसने राजपूतों के साथ भी पहले दोस्ती की, फिर जब वे उसकी धार्मिक नीति से असंतुष्ट हुए, तो उन पर हमला कर दिया.

Aurangzeb

औरंगजेब ने तो सत्ता के लिए भाइयों को भी रास्ते से हटा दिया था.

मुगलों की दोस्ती और धोखे की नीति के प्रमुख उदाहरण

  1. राजपूतों के साथ संबंध: अकबर ने राजपूतों को अपने पक्ष में करने के लिए वैवाहिक संबंध बनाए, लेकिन जब कोई राजा झुकने को तैयार नहीं हुआ, तो उस पर हमला कर दिया.
  2. शिवाजी के साथ धोखा: औरंगजेब ने शिवाजी को आगरा बुलाकर कैद कर लिया, जबकि पहले उन्हें सम्मान देने का वादा किया था.
  3. दक्षिण के सुल्तानों के साथ संधि और हमला: बीजापुर और गोलकुंडा के सुल्तानों से पहले दोस्ती, फिर राज्य हड़पना.
  4. यहां भी हमला: बंगाल, गुजरात, कश्मीर के नवाबों के साथ संधि, फिर आक्रमण: मुगलों ने पहले इन राज्यों के नवाबों से संधि की, फिर जब वे कमजोर पड़े, तो उन पर हमला कर दिया.

क्यों अपनाई मुगलों ने यह नीति?

मुगल शासकों को पता था कि भारत एक विशाल और विविधता भरा देश है. यहां के राजाओं-महाराजाओं को एक साथ हराना मुश्किल था. इसलिए उन्होंने फूट डालो और राज करो की नीति अपनाई. पहले दोस्ती, फिर धोखा, इससे वे एक-एक कर राज्यों को अपने अधीन करते गए. यह नीति उन्हें सत्ता में बनाए रखने में मददगार रही, लेकिन इससे भारतीय समाज में अविश्वास और अस्थिरता भी बढ़ी.

कुछ ने कर ली मुगलों से संधि, कुछ सीना ताने खड़े रहे

कुछ राजाओं ने मुगलों की दोस्ती स्वीकार कर ली, तो कुछ ने डटकर मुकाबला किया. महाराणा प्रताप, छत्रपति शिवाजी, गुरु गोविंद सिंह जैसे शूरवीरों ने कभी मुगलों के आगे सिर नहीं झुकाया. वहीं, कुछ राजाओं ने अपने स्वार्थ के लिए मुगलों से संधि कर ली, जिससे भारतीय एकता कमजोर हुई.

Mughal War History

मुगलों के दौर में तोपों को खींचने के लिए हाथियों का इस्तेमाल किया जाता था. फोटो: META

दोस्ती और धोखे की नीति का ऐतिहासिक प्रभाव

मुगलों की इस नीति का सबसे बड़ा नुकसान भारतीय एकता को हुआ. राजाओं के बीच आपसी अविश्वास बढ़ा, जिससे विदेशी आक्रमणकारियों को बार-बार भारत पर हमला करने का मौका मिला. मुगलों के बाद अंग्रेजों ने भी यही नीति अपनाई और भारत को गुलाम बना लिया.

मुगल शासकों की दोस्ती और धोखे की नीति ने भारतीय इतिहास की दिशा और दशा दोनों को बदल दिया. उन्होंने अपनी सत्ता को मजबूत करने के लिए राजाओं-महाराजाओं से पहले दोस्ती की, फिर समय आने पर धोखा दिया. इससे भारतीय समाज में अविश्वास, फूट और अस्थिरता बढ़ी, जिसका खामियाजा भारत को सदियों तक भुगतना पड़ा. आज भी इतिहास हमें यह सिखाता है कि सत्ता के लिए की गई दोस्ती हमेशा सच्ची नहीं होती, और समय आने पर वह धोखा भी बन सकती है.

मुगलों के इसी दोस्ती-धोखे के इतिहास को समेटते हुए अनेक इतिहासकारों ने किताबें लिख डाली हैं. इनमें आइन-ए-अकबरी, तारीख-ए-फरिश्ता, अकबरनामा, शिवाजी औरंगजेब संवाद जैसी ऐतिहासिक पुस्तकें शामिल हैं. ये किताबें और भी बहुत कुछ बताती-सिखाती हैं.

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