ब्रिटेन ने भारत को 12 दमनकारी देशों की सूची में रखा है.
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत पर 25 फीसदी टैरिफ और जुर्माना लगाया तो अब ब्रिटेन ने भी झटका दिया है. कभी दुनियाभर के देशों का दमन करने वाले ब्रिटेन की संयुक्त मानवाधिकार समिति ब्रिटेन ने अंतरराष्ट्रीय दमन रिपोर्ट (टीएनआर) जारी की है. इनमें 12 देशों की उस सूची में भारत को भी शामिल किया है, जिनको लेकर अंतरराष्ट्रीय दमन के सबूत मिले हैं. भारत के अलावा चीन, बहरीन, मिस्र, इरिट्रिया, पाकिस्तान, ईरान, रूस, खांडा, तुर्किए, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात इस सूची में शामिल हैं.
यह वही ब्रिटेन है, जिसने फ्रांस से प्रतियोगिता के चलते किसी जमाने में दुनिया भर पर राज किया और अपनी दमनकारी नीतियों से अनगिनत मौतों का कारण बना. आइए जानने की कोशिश करते हैं कि ब्रिटेन की नीतियां दुनिया में कितने देशों के लोगों की मौत की वजह बनीं और क्यों?
दुनिया के 90 फीसदी देशों पर किया हमला
यह 16वीं शताब्दी की बात है, जब फ्रांस से प्रतिद्वंद्विता में ग्रेट ब्रिटेन ने विदेशों में अपनी बस्तियां बसानी शुरू कीं. उत्तरी अमेरिका और वेस्ट इंडीज तक में अपनी बस्तियां बनाईं. जिस अमेरिका के इशारे पर आज ब्रिटेन नाचता है, वह खुद ब्रिटेन का गुलाम बना. एक-एक कर तत्कालीन 56 देशों पर ब्रिटेन ने कब्जा कर लिया. यहां तक कहा जाता है कि साम्राज्यवादी मानसिकता के पोषक ब्रिटेन ने संसार भर के लगभग 90 फीसदी देशों पर हमला किया था.
16वीं से 20वीं शताब्दी के बीच ब्रिटेन ने कनाडा, बरमूडा, बारबाडोस, त्रिनिदाद और टोबैगो, जमैका, बहामास, घाना, दक्षिण अफ्रीका, नाइजीरिया, केन्या, जिम्बाब्वे, सोमालिया, मिस्र और सूडान जैसे तमाम देशों पर राज किया.
ईरान, बहरीन, युगांडा, फिजी,साइप्रस, जॉर्डन, मालटा, ओमान, कतर भी उन देशों की सूची में शामिल हैं, जहां अंग्रेजों ने कहर बरपाया. एशियाई देशों में भारत (पाकिस्तान और बांग्लादेश समेत), मलेशिया, सिंगापुर और हांगकांग भी इसके गुलाम थे. ओशिनिया में ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और प्रशांत महासागर जैसे कई द्वीप अंग्रेजों ने अपने अधीन कर लिए. आज ब्रिटेन दमन की बात कर रहा है, जबकि कुछ देश अब भी उसके अधीन हैं.

अंग्रेजों ने अपने खिलाफ उठने वाली आवाजों को दबाने के लिए तमाम नरसंहार किए. फोटो: Getty Images
अंग्रेजों की नीतियों से कितनी मौतें?
दुनिया भर के इन देशों में अंग्रेजों की दमनकारी नीतियों के कारण इतनी बड़ी संख्या में लोग मारे गए कि उनकी सटीक संख्या नहीं बताई जा सकती. इसके बावजूद इतिहासकारों का अनुमान है कि ब्रिटिश उपनिवेशों में करोड़ों लोग मारे गए या फिर उनकी मौत की जिम्मेदार ब्रिटिश नीतियां रही हैं. पहले तो कई देशों पर कब्जा करने के लिए अंग्रेजों ने युद्ध किए, जिनमें बड़ी संख्या में लोग हताहत हुए. फिर जब इन पर राज शुरू किया तो स्थानीय लोगों के साथ भेदभाव, दुर्व्यवहार किए. अपने खिलाफ उठने वाली आवाजों को दबाने के लिए ब्रिटेन ने तमाम नरसंहार किए.
स्थानीय लोगों के हक पर डाका डाला और उन्हें उन्हीं के देश के संसाधनों से वंचित कर दिया. इससे कई देशों में तो अकाल के कारण ही लाखों लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी थी. केवल कुछ उदाहरणों से समझा जा सकता है कि अंग्रेजों की नीतियां कितनी दमनकारी थीं और कितने लोग इनके कारण मरे होंगे.
भारत में 1857 से 1947 तक जारी रही ब्रिटेन की दमनकारी नीति
केवल भारत की बात करें, तो अंग्रेजों की दमनकारी नीतियों के कारण यहां 10 करोड़ लोगों की जान जाने का अनुमान है. पहले पूरे देश पर अपनी सत्ता कायम करने के लिए लोगों की जानें लीं. फिर साल 1857 में कलकत्ता (अब कोलकाता) की बैरकपुर छावनी में सिपाही मंगल पांडेय के विद्रोह के बाद पहला स्वाधीनता संग्राम शुरू हुआ तो उसे दबाने के लिए ब्रिटिश सैनिकों ने लाखों भारतीयों को मौत के घाट उतार दिया. गांव के गांव जला दिए गए. क्रांतिकारियों को फांसी के फंदे पर लटकाया गया और यह सिलसिला साल 1947 में भारत की आजादी के पहले तक चलता रहा. इसका एक और उदाहरण पंजाब के अमृतसर में हुआ जलियांवाला बाग हत्याकांड है. शांतिपूर्वक बाग में इकट्ठा निहत्थे लोगों पर गोलियां चलवाने वाले जनरल डायर को लोग आज भी नहीं भूले हैं. इस नरसंहार को लेकर खुद ब्रिटेन के राजघराने ने सालों बाद माफी मांगी थी.

अंग्रेजों ने स्थानीय लोगों के हक पर डाका डाला और उन्हें उन्हीं के देश के संसाधनों से वंचित कर दिया. फोटो: Getty Images
ब्रिटिश प्रधानमंत्री चर्चिल के कारण बंगाल में गई 30 लाख लोगों की जान
अपनी महत्वाकांक्षा की पूर्ति के लिए अंग्रेजों ने भारतीय सिपाहियों को विश्व युद्धों में झोंक दिया, जबकि भारत का इस युद्ध से कोई लेना-देना नहीं था. इसमें मारे गए भारतीय सैनिकों का कोई स्पष्ट आंकड़ा उपलब्ध नहीं है. फिर दूसरे विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटेन के तत्कालीन प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल के कारण बंगाल में 30 लाख लोगों को अकाल ने लील लिया. यह साल 1943-44 की बात है. दूसरा विश्व युद्ध चल रहा था और बंगाल में भीषण अकाल पड़ गया. इसके बावजूद चर्चिल ने भारतीयों के हिस्से का अनाज विश्व युद्ध में लड़ रहे अपने सैनिकों को भेज दिया. भारत से भेजी गईं अंग्रेज अफसरों तक की रिपोर्ट को चर्चिल ने नजरअंदाज कर दिया.
आयरलैंड में अकाल के कारण गई 10 लाख लोगों की मौत
ब्रिटेन ने अपने दमनकारी साम्राज्यवाद की शुरुआत जिस देश से की थी, वह था आयरलैंड. उसी आयरलैंड में एक ऐसा अकाल पड़ा, जिसने 10 लाख से ज्यादा लोगों को मौत के घाट उतार दिया. इसके बावजूद ब्रिटेन के कानों पर जूं तक नहीं रेंगी और वह आयरलैंड से खाद्य पदार्थ बाहर भेजता रहा.
यह बात है साल 1845 से 1852 के बीच की. आयरलैंड में आलू की फसल एक कवक के कारण खराब हो गई. इसके कारण देश की एक तिहाई आबादी भुखमरी के कगार पर खड़ी हो गई और देखते ही देखते बीमारियों का शिकार होती गई, क्योंकि वहां के लोगों का तब भोजन का मुख्य स्रोत आलू ही था. तब आयरलैंड की ज्यादातर खेती की जमीनें अंग्रेजी जमींदारों के कब्जे में थीं और ब्रिटेन की सरकार ने आयरलैंड में अकाल के बावजूद वहां से अनाज और अन्य खाद्य पदार्थों का निर्यात बंद नहीं किया. इससे स्थिति और बिगड़ती ही गई और उस दौर में लाखों लोग काल के गाल में समा गए.
केन्या के माउ माउ विद्रोह को कुचलने में कसर नहीं छोड़ी
ब्रिटेन ने 1800 के उत्तरार्ध में केन्या पर अपनी नजरें गड़ाईं और उसे अपना उपनिवेश बना लिया. इसके बाद शुरू हुईं उसकी दमनकारी नीतियां, जिसके खिलाफ धीरे-धीरे केन्या के लोग खड़े होने लगे. साल 1952 में केन्या की किकुयू जाति के सैनिकों ने अंग्रेजों के खिलाफ खुला विद्रोह छेड़ दिया. इस विद्रोह की चिंगारी इतनी तेजी से फैली कि केन्या में अंग्रेजों ने आपातकाल की घोषणा कर दी.
इस दौरान हजारों केन्याई लोगों को खूब यातनाएं दी गईं. हजारों किकुयू लोगों को हिरासत में लेकर बर्बर तरीके से जेलों में ठूंस दिया. यातनाओं और बीमारियों के कारण हजारों लोगों की मौत होने लगी. इससे भी अंग्रेजों का मन नहीं भरा और 3 मार्च 1959 को ब्रिटिश वार्डनों ने होला शिविर में 11 माउ माउ बंदियों को लाठियों से पीटकर मार डाला. यह विद्रोह अगले एक दशक तक जारी रहा, जिसने केन्या की आजादी की राह खोली.
ये तो महज कुछ उदाहरण हैं. तत्कालीन 56 देशों पर शासन के दौरान ब्रिटेन ने हर जगह दमन की नीति अपनाई. विद्रोह कुचले और आजादी की बात करने वालों को मौत के घाट उतार दिया. स्थानीय अनाज, अन्य खाद्य पदार्थ, प्राकृतिक संसाधन, खनिज आदि भर-भर कर ब्रिटेन भेजा और उन देशों के मूल निवासियों को मरने के लिए उनके हाल पर छोड़ दिया. जितने लोग अंग्रेजों के अत्याचार से मिले, उससे कहीं ज्यादा उनकी नीतियों के कारण भूख और बीमारियों के कारण मौत के मुंह में चले गए.
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