होम विदेश 149 देशों का सीधा सपोर्ट फिर फिलिस्तीन को अलग मुल्क की मान्यता क्यों नहीं दे रहा यूएन?

149 देशों का सीधा सपोर्ट फिर फिलिस्तीन को अलग मुल्क की मान्यता क्यों नहीं दे रहा यूएन?

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संयुक्त राष्ट्र संघ.

फिलिस्तीन को अलग देश की मान्यता देने के समर्थन में दुनिया की बड़ी ताकतें आगे आ रही हैं, फ्रांस के बाद अब ब्रिटेन ने भी ऐलान कर दिया है कि अगर इजराइल गाजा में सीजफायर नहीं करता है तो सितंबर में यूके भी फिलिस्तीन को अलग देश मान लेगा. जहां बड़े देश आगे आ रहे हैं, वहीं संयुक्त राष्ट्र के हाथ बंधे हुए हैं, फिलिस्तीन के लगातार बढ़ते समर्थन के बावजूद संयुक्त राष्ट्र उसे आजाद देश के तौर पर मान्यता नहीं दे पा रहा. इसका कारण संयुक्त राष्ट्र की कुछ शर्तें बताई जा रही हैं.

फ्रांस और ब्रिटेन के बाद अब संयुक्त राष्ट्र में फिलिस्तीन को सीधा सपोर्ट करने वाले देशों की संख्या 149 हो गई है. इससे पहले मार्च माह में 147 देशों से फिलिस्तीन को सपोर्ट किया था. 193 सदस्य देशों वाले संयुक्त राष्ट्र में 149 देशों का बहुमत फिलिस्तीन के साथ है, मगर फिर भी संयुक्त राष्ट्र फिलिस्तीन को मान्यता नहीं दे पा रहा. दरअसल संयुक्त राष्ट्र की ओर से किसी भी देश को मान्यता तभी दी जा सकती है, जब नियम और शर्तें पूरी हों. सबसे खास बात ये है कि सभी 5 स्थायी सदस्य इस मुद्दे पर सहमत होने चाहिए, यानी इनमें से किसी का वीटो अगर लग गया तो संबंधित देश को मान्यता नहीं दी जा सकती.

किसी देश को कैसे मान्यता दे सकता है UN

संयुक्त राष्ट्र किसी भी देश को मान्यता तभी दे सकता है जब सुरक्षा परिषद ने इसकी अनुमति दे दी हो. अगर सुरक्षा परिषद के बिना यूएन ऐसा करता है तो संबंधित देश को मिली मान्यता प्रतीकात्मक ही रहती है. वह यूएन में कानूनी महत्व तभी प्राप्त कर सकता है जब उसे पूर्ण सदस्यता मिल जाए. इसके लिए सुरक्षा परिषद के कम से कम 9 मत संबंधित देश के पक्ष में होने चाहिए. इसके बाद दूसरा चरण महासभा में वोटिंग का होता है, इसमें मान्यता के लिए दो तिहाई सदस्यों का वोट जरूरी होता है. इसकी सबसे खास शर्त यही है कि संबंधित देश की मान्यता की प्रक्रिया के दौरान कोई भी सदस्य देश वीटो पावर का यूज न करे, ऐसा हुआ तो प्रक्रिया वहीं रुक जाती है.

फिलिस्तीन के पास है आंशिक सदस्यता

जब तक किसी देश को मान्यता न मिले तब तक संयुक्त राष्ट्र महासभा के पास इतनी ताकत होती है कि संबंधित देश को गैर सदस्य पर्यवेक्षक का दर्जा दे सकती है. 2012 में महासभा ने फिलिस्तीन को यह दर्जा दिया था. इससे देश को कानूनी महत्व तो नहीं मिलता, लेकिन यूएन की एजेंसियां और यूनिसेफ और यूनेस्को जैसी अन्य एजेंसियों में शामिल होने का मौका मिल जाता है.

फिलिस्तीन को आज तक क्यों नहीं मिल सकी मान्यता

फिलिस्तीन ने 1970 के दशक में ही संयुक्त राष्ट्र में स्वतंत्र देश की मान्यता के लिए आवेदन किया था. 1974 में महासभा ने प्रयास शुरू किए और फिलिस्तीन मुक्ति संगठन को फिलिस्तीनी लोगों के वैध प्रतिनिधि के तौर पर मान्यता दी और अपने देश के मुद्दे पर महासभा में विचार विमर्श का अधिकार दिया. एक माह बाद ही संगठन को पर्यवेक्षक बनाया गया और उसे यूएन के सभी सत्रों में हिस्सा लेने का मौका दिया गया. 1988 में फिलिस्तीनी राष्ट्र परिषद ने फिलिस्तीनी स्वतंत्रता का ऐलान किया और फिलिस्तीन मुक्ति संगठन का नाम फिलिस्तीन कर दिया गया और यूएन में पर्यवेक्षक के तौर पर भी वह बना रहा.

2011 में औपचारिक आवेदन

23 साल तक यही हालात रहे, 2023 में फिलिस्तीन मुक्त संगठन के अध्यक्ष ने यूएन महासचिव को एक पत्र लिखकर संयुक्त राष्ट्र की सदस्यता के लिए औपचारिक आवेदन किया. इस आवेदन पर तकरीबन दो माह तक चर्चा चली, मगर सदस्य आम सहमति पर नहीं पहुच पाए. कुछ सदस्यों ने आवेदन का समर्थन किया, जबकि कई सदस्यों ने मतदान में हिस्सा नहीं लिया. इसके बाद 2012 में महासभा ने फिलिस्तीन को गैर सदस्य पर्यवेक्षक का दर्जा दिया. इसके लिए 138 देशों ने पक्ष में मतदान किया था, 9 ने विरोध किया था. 41 न्यूट्रल रहे थे.

2024 में अमेरिका ने लगा दिया वीटो

सब कुछ सही चल रहा था. 2024 में अल्जीरिया ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में फिलिस्तीन के सदस्य के तौर पर शामिल होने की एक बार फिर सिफारिश की. मगर अमेरिका ने इस पर वीटो लगा दिया. उस समय 15 में से 12 सदस्यों ने इसका समर्थन किया था. दो सदस्य अनुपस्थित रहे थे. उस वक्त वाशिंगटन ने कहा था कि वह फिलिस्तीनी राज्य की स्थापना का विरोध नहीं करता, मगर वह चाहता है कि ऐसा इजराइल ओर फलिस्तीन के बीच बातचीत से तय हो.

अमेरिकी वीटो के दो सप्ताह बाद ही अरब लीग के तत्कालीन अध्यक्ष यूएई ने संयुक्त राष्ट्र में पूर्ण सदस्यता के लिए फिलिस्तीन के आवेदन का समर्थन किया. महासभा ने इस प्रस्ताव को सुरक्षा परिषद के पास पुनर्विचार के लिए भेजा, इसमें ये भी कहा गया कि सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्य अमेरिका के वीटो की वजह से परिषद के 12 सदस्यों द्वारा समर्थित प्रस्ताव को रोका गया. यही वजह है कि संयुक्त राष्ट्र 149 सदस्य देशों के समर्थन के बावजूद फिलिस्तीन को स्वतंत्र देश के तौर पर मान्यता नहीं दे पा रहा.

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