देश के दक्षिण में लंबे समय शासन करने वाले राजवंशों में से एक था चोल राजवंश.
तमिलनाडु के गंगईकोंडा चोलपुरम मंदिर में रविवार (27 जुलाई) को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आदि तिरुवथिरई महोत्सव को संबोधित किया. उन्होंने कहा कि चोल वंश के राजराजा और राजेंद्र चोल की विरासत भारतीय पहचान और गौरव का पर्याय है. चोल साम्राज्य की विरासत और इतिहास भारत की वास्तविक क्षमता का प्रतीक है.
उन्होंने जोर दिया कि यह विरासत वास्तव में एक विकसित भारत के निर्माण को प्रेरित करती है. उन्होंने चोल वंश के महान शासक राजेंद्र चोल को श्रद्धांजलि अर्पित की. आइए जान लेते हैं कि चोल वंश की स्थापना किसने और कब की और इसका पतन कैसे हुआ?
विजयालय ने की थी चोल साम्राज्य की स्थापना
देश के दक्षिण में लंबे समय शासन करने वाले राजवंशों में से एक था चोल राजवंश. इस राजवंश की स्थापना विजयालय ने की थी. नौवीं शताब्दी में तंजौर साम्राज्य पर विजयालय ने अधिकार किया और पल्लवों को हराकर चोल साम्राज्य की स्थापना की थी. विजयालय पहले पल्लवों के अधीन एक शासक था. पल्लव राजवंश की हार के साथ शुरू हुआ चोल राजवंश का शासन 13वीं शताब्दी तक चलता रहा.
विजयालय के बाद आदित्य प्रथम ने चोल राजवंश की सत्ता संभाली और पल्लव शासक अराजित को हराकर अपने साम्राज्य को और शक्तिशाली बनाया. इसके अलावा वदुम्बों और पांड्य राजाओं को भी हराकर पल्लवों की जगह चोल साम्राज्य का विस्तार किया.
आदित्य राज और पारंतक प्रथम जैसे चोल राजाओं ने मध्यकाल में चोल साम्राज्य का अत्यधिक विस्तार किया. इसके बाद राजराजा चोल और राजेंद्र चोल ने तमिल क्षेत्र में साम्राज्य का विस्तार किया. बाद में कलिंग पर अधिकार कर कुलोतुंग चोल ने अधिकार कर चोल साम्राज्य को और मजबूती प्रदान की. राजराजा चोल के उत्तराधिकारी राजेंद्र चोल एक शक्तिशाली राजा बनकर उभरे. चोल राजाओं में राजेंद्र प्रथम गंगा तट पर जाने वाले पहले राजा थे. उनको गंगा का विक्टर भी कहा जाता था. उनके शासनकाल को चोलों का स्वर्ण युग कहा गया.

तंजौर का बृहदेश्वर मंदिर जिसका निर्माण चोल राजवंश ने कराया था. फोटो: CR Shelare/Moment/Getty Images
राजराजा चोल प्रथम थे चोल वंश के महान शासक
चोल वंश के शासकों में राजराजा चोल प्रथम (985-1014 ई.) सबसे महान शासकों में से एक माने जाते हैं. चोल साम्राज्य का अभूतपूर्व विस्तार राजराजा के शासनकाल में ही हुआ और दक्षिण भारत में चोल साम्राज्य एक शक्तिशाली राज्य बन गया. राजराजा चोल ने अपने साम्राज्य का विस्तार दक्षिण भारत के कई राज्यों से लेकर श्रीलंका और मालदीव तक किया. राजराजा चोल को एक मजबूत नौसेना बनाई, जिससे हिंद महासागर में विजय के साथ ही व्यापार के विस्तार में भी मदद मिली. राजराजा चोल ने कुशल प्रशासनिक व्यवस्था की स्थापना कर साम्राज्य का सुचारु संचालन किया.
उपन्यास और फिल्म में राज्याभिषेक की घटना
चोल सम्राट राजराजा चोल प्रथम के राज्याभिषेक से जुड़ी सच्ची घटनाओं पर आधारित कल्कि कृष्णमूर्ति ने एक महान उपन्यास की रचना की. इसका नामकरण राजराजा चोल प्रथम की उपाधि पोन्नयिन सेलवन के नाम पर ही किया गया है.
दरअसल, राजराजा चोल से पहले आदित्य चोल राजवंश के उत्तराधिकारी थे. उन्होंने तेजी से अपने साम्राज्य का विस्तार किया पर एक अनाथ नंदिनी से प्रेम करते थे. साम्राज्य विस्तार के दौर में जब आदित्य चोल के सिंहासन संभालने की बारी आई तो उनकी हत्या कर दी गई. यह उपन्यास और बाद में इस पर बनी फिल्म इसी कहानी और राजराजा चोल के सिंहासन पर बैठने के आसपास घूमती है.

बृहदेश्वर मंदिर में शिव पूजा करते पीएम मोदी. फोटो: PTI
भगवान भोलेनाथ की होती थी पूजा
पल्लवों के अधीन चोल शासक विजयालय की राजधानी उरैयूर थी. फिर जब विजयालय ने पल्लवों को हराया तो अपनी राजधानी तंजौर (तंजावुर) बनाई. मध्ययुगीन चोल साम्राज्य में तंजावुर प्रमुखता से उभरा. राजेंद्र चोल प्रथम ने अपनी राजधानी गंगईकोंडचोलपुरम को भी बनाया था. चोलों के शासनकाल में भगवान भोलेनाथ की पूजा की जाती थी. इनके शासनकाल में 11वीं और 12वीं शताब्दी में तीन महान मंदिरों का निर्माण हुआ. इनमें तंजौर का बृहदेश्वर मंदिर, गंगैकोंडचोलीश्वरम का बृहदेश्वर मंदिर और दारासुरम का एरावतेश्वर मंदिर हैं.
तंजौर का बृहदेश्वर मंदिर दस्तावेजों में दक्षिणा मेरू के रूप में जाना जाता है. इसका शुभारंभ राजराज प्रथम ने किया था. संभावना जताई जाती है कि सन 1003 -1004 में इसका निर्माण शुरू हुआ और अपने शासनकाल के 25वें वर्ष में खुद ही उन्होंने इसका लोकार्पण भी किया था. राजेंद्र प्रथम ने गंगैकोंडचोलीश्वरम मंदिर का निर्माण कराया जो साल 1035 में पूरा हुआ था. दारासुरम का एरावतेश्वर मंदिर परिसर राजराज द्वितीय ने बनवाया था.
चोलों को हराकर पांड्यों ने शुरू किया अपना साम्राज्य
13वीं सदी में पांड्यों के उदय के साथ चोल कमजोर होने लगे और साल 1279 में चोल साम्राज्य का पतन होने लगा. इसके पतन के कई कारण थे. दरअसल, बाद के चोल शासक उत्तराधिकार के लिए लगातार संघर्ष और साजिश करने लगे. इसके कारण साम्राज्य कमजोर हुआ और बाहरी ताकतों ने फायदा उठाना शुरू कर दिया. इसी के कारण पांड्य राजाओं ने लगातार चोलों पर आक्रमण किए और 1215 में पहली बार चोलों को हराया. इसके बाद साल 1258 ई में राजा जटावर्मन सुंदर पांड्य प्रथम ने पूरी तरह से चोलों को बरा दिया. फिर धीरे-धीरे कर पूरे साम्राज्य पर कब्जा कर लिया और 13वीं शताब्दी के अंत तक चोल साम्राज्य का पूरी तरह से पतन हो गया और पांड्य साम्राज्य अस्तित्व में आ गया.
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