आरजेडी मोटे तौर पर MY समीकरण वाली पार्टी कही जाती है. लेकिन, नये बनाए गए चारो उपाध्यक्ष चार जातियों से आते हैं. माना जा रहा है कि विधानसभा चुनाव से पहले ‘ए टू जेड’ पॉलिटिक्स की झलक दिख रही है. दरअसल, तेजस्वी यादव ने पिछले चुनाव में आरजेडी को ‘ए टू जेड’ की पार्टी बताया था. इस बार भी चुनाव से पहले नये उपाध्यक्ष के चयन में इसकी झलक दिख रही है. राजनीति के जानकारों की नजर में बिहार विधानसभा चुनाव 2025 से पहले राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) ने अपनी राष्ट्रीय कार्यकारिणी में चार नए उपाध्यक्षों की नियुक्ति कर सामाजिक समीकरण साधने की रणनीति अपनाई है. राबड़ी देवी, जगदानंद सिंह, महबूब अली कैसर और उदय नारायण चौधरी को उपाध्यक्ष बनाकर पार्टी ने ‘ए टू जेड’ के विजन को मजबूत किया है. ऐसे में हर नाम के साथ कौन सा सियासी (जातीय) समीकरण साधने की रणनीति है. सवाल यह कि चुनाव में इससे कितना लाभ हो सकता है?
उदय नारायण चौधरी (दलित): दलित वोटों में सेंधमारी
उदय नारायण चौधरी के नाम पर दलित तो जगदानंद सिंह से सवर्ण वोटों को साधने की रणनीति.
जगदानंद सिंह (राजपूत): सवर्ण वोटों पर नजर
पूर्व प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह राजपूत समुदाय (लगभग 5% आबादी) से हैं जो परंपरागत रूप से भाजपा समर्थक रहे हैं. उनकी नियुक्ति से आरजेडी सवर्ण वोटरों को आकर्षित करने की कोशिश कर रही है. मिथिलांचल (दरभंगा, मधुबनी) और मगध क्षेत्रों में राजपूत मतदाता महत्वपूर्ण हैं. लेकिन, जगदानंद सिंह शाहाबाद क्षेत्र में अच्छी राजनीतक पैठ रखते हैं. जगदानंद सिंह की अनुभवी छवि और संगठनात्मक कौशल से पार्टी उन 20-25 सीटों पर लाभ ले सकती है जहां सवर्ण और पिछड़ा वर्ग संयुक्त रूप से प्रभावी हैं. हालांकि, सवर्णों का भाजपा से मोहभंग होना इस रणनीति की सफलता पर निर्भर करेगा.
महबूब अली कैसर : पसमांदा मुस्लिम को साधने की रणनीति

महबूब अली कैसर के जरिये पसमांदा मुस्लिम तो और राबड़ी देवी से कोर यादव वोटों को साधने का समीकरण.
राबड़ी देवी: कोर (यादव) वोटरों की एकजुटता
पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी यादव समुदाय से हैं जो बिहार में 14.3% आबादी का प्रतिनिधित्व करती हैं. उनकी नियुक्ति से आरजेडी अपने मूल वोट बैंक को मजबूत करना चाहती है. मध्य बिहार (पटना, वैशाली, नालंदा) में यादव मतदाता निर्णायक हैं. राबड़ी देवी की छवि और लालू प्रसाद के साथ उनकी नजदीकी कार्यकर्ताओं में जोश भरती है. यह नियुक्ति उन 50-60 सीटों पर फायदा दे सकती है जहां यादव वोटर प्रभावी हैं. हालांकि, अन्य दलों, खासकर जदयू और भाजपा की ओर से यादव वोटों को लुभाने की कोशिश चुनौती होगी. जबकि, राबड़ी की सक्रियता से आरजेडी कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ेगा. लेकिन, इसके साथ एक जोखिम भी है, क्योंकि ‘जंगल राज’ की छवि से निपटना जरूरी है.
राजद के लिए राजनीतिक लाभ और चुनौतियां
रणनीति है तो चुनौती भी!
आरजेडी ने 2025 बिहार चुनाव से पहले राबड़ी देवी, जगदानंद सिंह, महबूब अली कैसर और उदय नारायण चौधरी को राष्ट्रीय उपाध्यक्ष नियुक्त कर ‘ए टू जेड’ रणनीति अपनाई है. यह यादव, राजपूत, पसमांदा मुस्लिम और दलित वोटरों को साधने की कोशिश कही जा रही है. आरजेडी के नेताओं का मानना है कि यह रणनीति 50-60 सीटों पर लाभ दे सकती है, लेकिन सवर्ण-दलित वोटरों को लुभाना और गठबंधन के पेंच चुनौती हैं. तेजस्वी यादव की युवा अपील और मुद्दा-आधारित प्रचार से आरजेडी सत्ता की राह तलाश रही है.