फिलिस्तीन को मान्यता देने पर बंटे हैं यूरोप के देश
यूरोप में फिलिस्तीन को स्वतंत्र राष्ट्र का दर्जा देने की मांग जोर पकड़ रही है, लेकिन इस पर राय बंटी हुई है. फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने जब ये एलान किया कि वे सितंबर में संयुक्त राष्ट्र महासभा में फिलिस्तीन को मान्यता देंगे, तो यूरोपीय कूटनीति में हलचल मच गई.
जहां एक ओर मैक्रों के इस फैसले का फिलीस्तीन ने स्वागत किया, वहीं इजराइल और अमेरिका ने कड़ा विरोध जताया. अब इटली की प्रधानमंत्री जॉर्जिया मेलोनी ने भी इस पर नाराज़गी जताई है और मैक्रों के फैसले को गलत कहा है. जर्मनी ने भी संकेत दिए हैं कि फिलहाल वो ऐसा कोई कदम नहीं उठाएगा.
मेलोनी ने मैक्रों के फैसले को गलत बताया
इटली की प्रधानमंत्री जॉर्जिया मेलोनी ने शनिवार को एक साक्षात्कार में साफ शब्दों में कहा कि मैं फिलिस्तीन राज्या के विचार के समर्थन में हूं मगर उस चीज को मान्यता देने के खिलाफ हूं जो अभी अस्तित्व में ही नहीं है. उन्होंने इटली के दैनिक अख़बार ला रिपुब्लिका से कहा कि अगर हम कागज पर कुछ ऐसा मान लें जो जमीनी हकीकत में नहीं है, तो इससे यह भ्रम पैदा हो सकता है कि समस्या सुलझ गई है, जबकि ऐसा नहीं होगा.
जर्मनी भी फिलहाल नहीं देगा मान्यता
इटली की तरह जर्मनी ने भी फिलिस्तीन को तुरंत मान्यता देने से इनकार किया है. बर्लिन ने कहा है कि इस वक्त उसकी प्राथमिकता दो-राज्य समाधान है. जर्मनी का मानना है कि सिर्फ औपचारिक मान्यता से जमीन पर कोई बड़ा बदलाव नहीं होगा जब तक कि इजराइल और फिलिस्तीन के बीच स्पष्ट सीमाएं, सुरक्षा व्यवस्था और शासन के मसले हल नहीं हो जाते.
इतिहास: दो-राज्य समाधान की जड़ें 1947 में
संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 1947 में फिलिस्तीन को दो हिस्सों में बांटने का प्रस्ताव पारित किया था. एक यहूदी राज्य और एक अरब राज्य. 1948 में इज़रायल ने खुद को एक स्वतंत्र राष्ट्र घोषित किया. तब से लेकर अब तक दो-राज्य समाधान को व्यापक अंतरराष्ट्रीय समर्थन मिलता रहा है, लेकिन जमीनी सच्चाई ये है कि दशकों बाद भी फिलिस्तीन को संप्रभु राष्ट्र का दर्जा नहीं मिल पाया है.