कैप्टन बत्रा को मरणोपरांत भारत सरकार ने परमवीर चक्र से सम्मानित किया.
पापा हमने मिशन फतह कर लिया ये आखिरी शब्द थे विक्रम बत्रा के, जिनकी आवाज़ सुनने के लिए आज भी उनका परिवार तरस रहा है. वो विक्रम बत्रा, जिन्हें भारतीय सेना का शेरशाह कहा जाता है. जब पाकिस्तान ने साल 1999 में करगिल की चोटियों पर कब्ज़ा कर लिया, तब भारतीय सेना के ऑपरेशन विजय में कैप्टन विक्रम बत्रा ने बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. उनकी वीरता की कहानी आज भी देश के लिए एक प्रेरणा है.
कैप्टन विक्रम बत्रा के पिता गिरधारी लाल बत्रा कहते हैं, 26 साल बीत गए पर आज भी विक्रम के आखिरी शब्द जहन से नहीं निकले. वो आज भी हमारे लिए जिंदा है. हर साल 26 जुलाई की तारीख को कारगिल विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है. इस दिन खासतौर पर चंडीगढ़ के लोग विक्रम बत्रा की शहादत पर गर्व करते हैं.
भगत सिंह, वीर शिवाजी की कहानियां सुनाते थे
साल 1999 में लड़ा गया कारगिल युद्ध आज भी सबके जेहन में है. कैप्टन विक्रम बत्रा एक ऐसा नाम जो हमेशा के लिए अमर हो गया. बत्रा 7 जुलाई, 1999 में प्वाइंट 4875 के फतह के दौरान वीरता पूर्वक लड़ते हुए शहीद हो गए. उनके पिता बेटे की शहादत का किस्सा यादव करते हुए कहते हैं, वो 8 जुलाई का दिन था जब बेटे की शहादत की खबर मिली. उस दर्द, दुख और शहादत को शब्दों में बयां करना मुश्किल है. जब विक्रम का पार्थिव शरीर पालमपुर पहुंचा तो उसकी मां में बड़ी बहादुरी से हर दुखभरे पल को संभाला और परिवार को हौसला दिया.
वह कहते हैं, मां का दिल जितना बहादुर होता है बच्चों के लिए उतना ही विनम्र हो जाता है. साल 2024 में विक्रम की मां भी चल बसीं लेकिन जब तक रहीं इस दुनिया में विक्रम की यादों को हमारे परिवार में जिंदा रखा और हौसले के साथ परिवार को आगे बढाया.

अपने परिवार के साथ विक्रम बत्रा.
TV9 से बातचीत के दौरान उन्होंने बताया, विक्रम का भाई विशाल जो उनकी शहादत के बाद फौज में जाना चाहता था, पर ओवरऐज होने के चलते नहीं जा सका. विशाल को दो बच्चे हैं. वह कहते हैं, अगर वो फौज में जाना चाहेंगे तो हम बड़ी खुशी से भेजेंगे. मैं विक्रम से भगत सिंह, वीर शिवाजी का गुरू गोबिंदजी की कहानियां सुनता था. बचपन से ही उसमें देशभक्ति का जज्बा था.
आर्मी अफसरों से प्रभावित हुए
वह कहते हैं, केंद्रीय विद्यालय में पढ़ने के चलते वह आर्मी के अफसरों से काफी अधिक प्रभावित थे जिसके चलते उसने आर्मी में जाने का निश्चय किया था. मैं भी आर्मी में अफसर बनना चाहता था, लेकिन मेरा सिलेक्शन नहीं हो पाया था. पर विक्रम ने आर्मी अफसर बन कर मेरा सपना पूरा कर दिया.
विक्रम बत्रा के पिता गिरधारीलाल पालमपुर के सरकारी स्कूल में प्रिंसिपल थे और माता अध्यापिका. दो बेटियां होने के बाद दो जुड़वा बेटे हुए विक्रम और विशाल. घर में विक्रम को प्यार से लव और विशाल को ख़ुश कहा जाता था.
विक्रम बत्रा डीएवी काॉलेज से पढ़े. उनके जूनियर दिग्विजय कहते हैं, साल 2004 में 2 जून को पहली बार जब कालेज गए तो पता चला कि हम उस कॉलेज में पढ़ाई कर रहे हैं जहां उन्होंने पढ़ाई की. आज भी यहां का हर बच्चा उन्हें याद करता है.

विक्रम बत्रा की की सक्सेस का सिग्नेचर था, ये दिल मांगे मोर.
पिता ने सुनाया विक्रम के प्यार का किस्सा
विक्रम के पिता गिरधारी ने बताया, विक्रम जब पंजाब यूनिवर्सिटी पढ़ाई कर रहा था तो उसको चंडीगढ़ की रहने वाली डिंपल नाम की लड़की से प्यार हुआ था. दोनों का प्यार इतना अटूट था कि डिंपल ने आज तक शादी नहीं की. वह विक्रम के अतिंम संस्कार में पालमपुर पहुंची थीं. हालांकि हम दोनों परिवारों ने बहुत समझाया पर वह शादी के लिए नहीं मानी. आज भी वो हमारे घर आती है.
वह कहते हैं, बत्रा की सक्सेस का सिग्नेचर था, ये दिल मांगे मोर. उसे बहुत सम्मान मिले. मैं बहुत गर्व महसूस करता है कि वो मेरा बेटा है.
1984 से रमाकांत डीएवी कॉलेज में जूस की दुकान चला रहे हैं.वो नम आंखों से विक्रम को याद करते एक किस्सा सुनाते हैं. कहा, दोनों भाई जुड़वा थे. एक जूस पीता था तो दूसरा पैसे देता था. बहुत समय बाद पता चला कि दोनों जुड़वा हैं.विक्रम यहां हॉस्टल में रहता था और क्रिकेट में कमाल करता था. जब विक्रम के शहादत की खबर टीवी पर सुनी तो बस रोता रहा.
रिपोर्ट: अमनप्रीत कौर
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