होम विदेश न समय-न पैसा- न पहचान… पाकिस्तान में भटक रहे 4.5 करोड़ ‘भूत’

न समय-न पैसा- न पहचान… पाकिस्तान में भटक रहे 4.5 करोड़ ‘भूत’

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पाकिस्तान में 4.5 करोड़ लोगों के पास पहचान पत्र ही नहीं हैं.

पाकिस्तान की कहानी अजब-गजब है, कभी ये अपने ही पाले आतंकियों से परेशान होता है, तो कभी अफगानों को देश से बाहर निकालने की ठान लेता है. मगर जो बेसिक समस्या है उस पर ध्यान देने की न तो पाक सरकार को फुरसत है और न ही मंशा. इसीलिए तो आज भी पाकिस्तान में 4.5 करोड़ ‘भूत’ भटक रहे हैं. ‘भूत’के नाम पर चौंकिए मत, असल में तो भूत होते ही नहीं, लेकिन कई बार लोग भुतहा जीवन जीने को मजबूर हो जाते हैं, हम ऐसे ही लोगों की बात कर रहे हैं. ये वो लोग हैं जिनके पास न पैसा है, न समय है और न ही पहचान. इस वजह से ये दर-दर भटकने को मजबूर हैं.

इसकी बानगी अहमद रजा की कहानी है, जो पाकिस्तान में न तो पढ़ाई कर सकते हैं और न ही कोई काम, ये उन 4.5 करोड़ लोगों में शामिल हैं जिन्हें पाक सरकार पहचानती ही नहीं. दरअसल 240 मिलियन से अधिक आबादी वाले इस देश में हर बच्चे के जन्म के पांच वर्ष के भीतर उसका पहचान पत्र बनवाया जाना अनिवार्य है, मगर ऐसा हो नहीं रहा. AFP ने इसे लेकर एक रिपोर्ट प्रकाशित की है, जिसमें ऐसे लोगों का दर्द और उनकी परेशानी को बयां किया गया है.

क्या है रजा की कहानी?

रजा की उम्र 19 साल है, वह कहीं काम की तलाश में जाते हैं तो उनसे पहचान पत्र मांगा जाता है, जो कभी बना ही नहीं. दरअसल रजा प्राथमिक स्कूल तक तो पढ़े मगर जब मिडिल स्कूल में पढ़ाई के लिए तो उनसे पहचान पत्र मांगा गया. आखिरकर उनकी मां ने रजा को स्कूल से निकाल लिया. वह बताते हैं कि उन्हें दो बार पहचान पत्र न पेश कर पाने की वजह से गिरफ्तार भी किया जा चुका है. वह बताते हैं कि उनकी मां और वह खुद पहचान पत्र का महत्व नहीं समझते थे. न ही ये जानते थे कि इससे उन्हें कितनी कठिनाई होने वाली है.

पाकिस्तान में 2000 में शुरू हुई थी बायोमेट्रिक पहचान

राष्ट्रीय डेटाबेस और पंजीकरण प्राधिकरण के मुताबिक पाक में 2021 में लगभग 4.5 करोड़ लोगों का पहचान पत्र नहीं था. हालांकि वर्तमान में क्या स्थिति है, इस बारे में जानकारी नहीं दी गई. रजा की मां के मुताबिक पाकिस्तान में सन् 2000 में बायोमेट्रिक पहचान पत्र बनाने का काम शुरू हुआ था. पंजीकरण के लिए रजा को अपनी मां या चाचा के दस्तावेजों की आवश्यकता है, लेकिन उनके पास भी पहचान पत्र नहीं है. इसके अलावा कागजी कार्रवाई में 165 डॉलर का खर्च आता है, जो उनकी डेढ़ माह की आय के बराबर है. स्थानीय लोगों के मुताबिक पाकिस्तान में पंजीकरण के लिए अक्सर रिश्वत देनी पड़ती है, जो देने के लिए उनके पास पैसे नहीं है.

यूनिसेफ कर रहा प्रयास

यूनिसेफ ऐसे लोगों को पहचान दिलाने का प्रयास कर रहा है, जिन्हें पाक सरकार पहचानती ही नहीं. यूनिसेफ के मुताबिक पाक में 45 प्रतिशत लोग गरीबी में रहते हैं. ऐसे में यूनिसेफ घर घर जाकर पंजीकरण अभियान चलाता है. वह लोगों को जागरूक करता है कि अगर पहचान पत्र नहीं होगा तो उनके बच्चों से बाल श्रम कराया जा सकता है, या फिर जबरन बाल विवाह का शिकार बनाया जा सकता है. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक पाकिस्तान में पांच वर्ष तक के तकरीबन 58 प्रतिशत बच्चों के पास जन्म प्रमाण पत्र नहीं है. यूनिसेफ के अनुसार, गांव में चलाए गए अभियानों के परिणामस्वरूप जन्म पंजीकरण दर 2018 में 6.1 प्रतिशत से बढ़कर 2024 में 17.7 प्रतिशत हो गई है.

पाक सरकार से नहीं मिलती कोई मदद

जिन लोगों का पहचान पत्र नहीं है, उन्हें सरकार पहचानती ही नहीं, न ही उन्हें कोई मदद दी जाती है. जिस बच्चे का जन्म प्रमाण पत्र नहीं बना, उसके अस्तित्व को सरकार मान्यता ही नहीं देती, लोग ये बात जानते हैं, मगर फीस, समय और अपनी पहचान न होने के चलते ऐसा करने से बचते हैं, रिपोर्ट में मुहम्मद हारिस और उनके भाइयों का भी जिक्र है जो खैबर पख्तूनख्वा में रहते हैं, उनके आठ बच्चे हैं मगर किसी का भी पंजीकरण नहीं कराया गया.

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