ओडिशा में बीते दिनों एक छात्रा ने कॉलेज प्रोफेसर पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाने के बाद कार्रवाई ना होने पर खुद की जान ले ली थी। मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि यह घटना शर्मिंदा करने वाली है।
सुप्रीम कोर्ट ने ओडिशा में 20 वर्षीय छात्रा द्वारा यौन उत्पीड़न की शिकायत पर कार्रवाई न होने पर खुद की जान ले लेने वाली घटना को शर्मनाक बताया है। उच्चतम न्यायालय ने इस दौरान कहा है कि यह बेहद दुखद है कि आज के समय में भी इस तरह की घटनाएं हो रही हैं। कोर्ट ने महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए किस तरह के उपाय किए जा सकते हैं इसे लेकर लोगों की राय भी मांगी है।
गौरतलब है कि ओडिशा के बालासोर में स्थित फकीर चंद कॉलेज की बी एड की छात्रा ने यौन उत्पीड़न की शिकायत पर कोई कार्रवाई ना होने पर खुद को प्रिंसिपल की ऑफिस के सामने आग को आग के हवाले कर दिया था। हादसे में 90 फीसदी झुलसी पीड़िता की अस्पताल में मौत हो गई थी। मामला सामने आने पर कॉलेज के प्रिंसिपल को कोई एक्शन ना लेने के आरोप में निलंबित कर दिया गया था। वहीं आरोपी प्रोफेसर को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है।
सुप्रीम कोर्ट महिलाओं, बच्चों और ट्रांसजेंडर समुदाय के लिए सुरक्षित वातावरण सुनिश्चित करने का आदेश देने की मांग करने वाली एक याचिका पर सुनवाई चल रही थी। इस दौरान, वरिष्ठ अधिवक्ता महालक्ष्मी पावनी ने दलील दी कि “चीजों को बदलने के लिए हमेशा इस तरह के हादसे की जरूरत होती है।” ओडिशा में छात्रा द्वारा के आत्मदाह मामले पर पावनी ने कहा कि पीड़िता ने हेल्पलाइन पर कॉल किया था, लेकिन उसे कोई मदद नहीं मिली।
सुनवाई के दौरान जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की पीठ ने कहा, “हम शर्मिंदा हैं। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि इस तरह की घटनाएं अभी भी हो रही हैं।” पीठ ने आगे कहा, “हमें सभी से सुझाव चाहिए कि स्कूली लड़कियों, गृहिणियों और ग्रामीण इलाकों के बच्चों को सशक्त बनाने के लिए क्या ठोस कदम उठाए जा सकते हैं। हमारे निर्देशों के कुछ स्पष्ट प्रभाव नजर आने चाहिए।”
वहीं सुनवाई के दौरान अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल विक्रमजीत बनर्जी ने कोर्ट को बताया कि यौन अपराधियों का एक राष्ट्रीय डेटाबेस तैयार किया गया है। हालांकि याचिकाकर्ताओं ने जोर देकर कहा कि जब उत्पीड़न की शिकार महिलाएं हेल्पलाइन पर कॉल करती हैं, तो उन्हें मोरल पुलिसिंग के उपदेश मिलते हैं। उन्होंने कहा, “यह इंस्टीट्यूशनल फेलियर है।”