होम नॉलेज कारतूस में गाय-सुअर की चर्बी, वो घटना जिसके लिए मंगल पांडेय ने विद्रोह किया था

कारतूस में गाय-सुअर की चर्बी, वो घटना जिसके लिए मंगल पांडेय ने विद्रोह किया था

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22 साल की उम्र में मंगल पांडेय का चयन ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना के लिए हो गया.

यूपी और बिहार की सीमा पर बसा बलिया जिला इन दोनों ही राज्यों की सीमा में फैला है. इसे एक और नाम से जाना जाता है, बागी बलिया. असल में इसका यह नाम काफी सही भी लगता है क्योंकि यहीं पर भारतीयों के मन में सबसे पहले आजादी की अलग जगाने वाले मंगल पांडेय का जन्म हुआ था.

अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ बगावत की पहली चिंगारी उन्होंने ही फूंकी थी. इसके बाद ही 1857 में पहले स्वाधीनता संग्राम का आगाज हुआ था. उन्हीं मंगल पांडेय की जयंती पर आइए जान लेते हैं किस्से. उत्तर प्रदेश के बलिया जिले में स्थित नगवा गांव में मंगल पांडेय का जन्म 19 जुलाई 1827 को एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था. उनके पिता का नाम दिवाकर पांडेय है.

22 साल की उम्र में ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना में भर्ती

केवल 22 साल की उम्र में मंगल पांडेय का चयन ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना के लिए हो गया. वह बंगाल नेटिव इंफेंटरी की 34वीं बटालियन में नियुक्त किए गए थे, जिसमें जबसे ज्यादा संख्या में ब्राह्मणों की ही भर्ती होती थी और इसी वजह से मंगल पांडेय का भी चयन हुआ था. सिपाही के रूप में सेना में भर्ती हुए मंगल पांडेय को नंबर मिला 1446 और तैनाती मिली कलकत्ता (अब कोलकाता) के पास बैरकपुर छावनी में.

कारतूस में गाय-सुअर की चर्बी

जब भी 1857 की क्रांति की कहानी कही जाती है तो इसकी शुरुआत बैरकपुर छावनी से ही होती है. इस विद्रोह का कारण बनी थी बंदूक की एक गोली, जिसने देशवासियों में राष्ट्रभक्ति की भावना जगाई और अंतत: देश आजाद हुआ. दरअसल, अंग्रेजों ने बैरकपुर में तैनात मंगल पांडेय की बटालियन को एक नई इनफील्ड राइफल दी थी. इस राइफल का निशाना अचूक माना जाता था. हालांकि, इसमें गोली भरने से पहले कारतूस को दांतों से खोलना पड़ता था. इसी बीच यह खबर फैल गई कि इनफील्ड राइफल में जिस कारतूस का इस्तेमाल किया जाता है. उसमें सुअर और गाय के चर्बी मिली हुई है. बस इसी बात को लेकर बटालियन के सिपाहियों में असंतोष पनपने लगा. देखते ही देखते इसने विद्रोह का स्वरूप धारण करना शुरू कर दिया, जिसके अगुवा बने मंगल पांडेय.

नंगे पैर बंदूक लेकर साथियों को ललकारा

असंतोष की इस लहर के बीच बैरकपुर छावनी के सिपाहियों ने विद्रोह का फैसला कर लिया. वह दो फरवरी 1857 की शाम थी. बैरकपुर में परेड के दौरान भारतीय सिपाहियों ने नए कारतूस इस्तेमाल करने पर अंग्रेजों के सामने अपनी असहमति प्रकट कर दी. इसके बाद वह दिन आया, जिसने भारतीय इतिहास में नया अध्याय जोड़ दिया. तारीख थी 29 मार्च 1857. मंगल पांडेय ने 29 मार्च की शाम को बैरकपुर छावनी में हलचल पैदा कर दी.

जाने-माने इतिहासकार रुद्रांशु मुखर्जी ने अपनी किताब डेटलाइन 1857 रिवोल्ट अगेंस्ट द राज में लिखा है कि मंगल पांडेय ने रेजिमेंट की कोट के साथ धोती पहनी और नंगे पैर ही भरी बंदूक लेकर सैनिकों के पास पहुंचे और उनको गालियां देने लगे. उन्होंने कहा कि तुम सब विरोध के लिए तैयार क्यों नहीं हो रहे हो? इस कारतूस को दांत से काटने से हमारा धर्मभ्रष्ट हो जाएगा.

अंग्रेजों ने पकड़ कर सुनाई फांसी की सजा

इस विरोध की सूचना मिलने पर पहुंचे अंग्रेजों पर मंगल पांडेय ने हमला कर दिया पर उन्हीं के एक गद्दार साथ शेख पलटू ने मंगल पांडेय को पकड़ लिया. अंग्रेजों के धमकी देने पर दूसरे सिपाही भी मंगल पांडेय की ओर बढ़ने लगे. इस पर उन्होंने अपनी ही बंदूक को सीने से सटा कर गोली मार ली. हालांकि, गोली पसली में लगी और फिसल गई. घायल मंगल पांडेय को अंग्रेजों ने पकड़ लिया और छह अप्रैल को उनको फांसी की सजा सुना दी गई. इसके लिए 18 अप्रैल 1857 की तारीख तय की गई. पर अंग्रेजों को आशंका थी कि मंगल पांडेय की फांसी में देरी से विद्रोह हो सकता है. इसलिए सात अप्रैल को ही उनको फांसी देने की योजना बना डाली.

फंदे पर लटकाने के लिए कलकत्ता से बुलाने पड़े जल्लाद

तब दो जल्लादों को बैरकपुर छावनी में तड़के मंगल पांडेय को फांसी पर लटकाने के लिए बुलाया गया. जब उनको पता चला कि किसे फांसी देनी है तो मना कर दिया. इसके बाद अंंग्रेजों ने कलकत्ता से जल्लाद बुलवाकर छावनी के परेड ग्राउंड में आठ अप्रैल की सुबह उनको फांसी दे दी. 22 साल की उम्र में सिपाही बने और 30 साल की उम्र में फांसी के फंदे पर झूल गए मंगल पांडेय देशवासियों के मन में एक नई अलख जगा गए. लोगों को विश्वास हो गया कि अंग्रेजों के खिलाफ भी विद्रोह किया जा सकता है. एक ओर अंग्रेज देश भर में अपने पांव जमा रहे थे तो दूसरे और विद्रोह की चिनगारी भी फैलती जा रही थी. देखते ही देखते देश भर में स्वाधीनता के लिए संघर्ष शुरू हो गया. भले ही अंग्रेजों ने 1857 की क्रांति को कुचल दिया पर भारतीयों के लिए क्रांति की नई राह भी इसी के जरिए खुल गई.

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