होम देश Scheduled tribe woman has right to get share in father property says Supreme Court अनुसूचित जनजाति की महिला को पिता की संपत्ति में हिस्सा पाने का अधिकार: सुप्रीम कोर्ट, India News in Hindi

Scheduled tribe woman has right to get share in father property says Supreme Court अनुसूचित जनजाति की महिला को पिता की संपत्ति में हिस्सा पाने का अधिकार: सुप्रीम कोर्ट, India News in Hindi

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शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि यह संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है। न्यायालय ने आगे यह भी कहा कि संविधान के अनुच्छेद 15(1) में कहा गया है कि सरकार किसी भी व्यक्ति के साथ धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग या जन्मस्थान के आधार पर भेदभाव नहीं करेगा।

Madan Tiwari वार्ताThu, 17 July 2025 10:31 PM

सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कहा कि अनुसूचित जनजाति समुदाय की महिला को भी अपने भाइयों की तरह पैतृक संपत्ति में समान हिस्सा पाने का अधिकार है। न्यायमूर्ति संजय करोल और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ ने अनुसूचित जनजाति की महिला धैया के कानूनी उत्तराधिकारी राम चरण और अन्य द्वारा दायर दीवानी अपील स्वीकार करते हुए यह फैसला सुनाया।

पीठ ने कहा, ”जब तक कानून में अन्यथा निर्दिष्ट न हो, महिला उत्तराधिकारी को संपत्ति में अधिकार से वंचित करना केवल लैंगिक विभाजन और भेदभाव को बढ़ाता है, जिसे कानून को दूर करना चाहिए।” शीर्ष अदालत के 17 पृष्ठों के फैसले में कहा गया ऐसा प्रतीत होता है कि केवल पुरुषों को अपने पूर्वजों की संपत्ति पर उत्तराधिकार देने और महिलाओं को नहीं देने के लिए कोई तर्कसंगत संबंध या उचित वर्गीकरण नहीं है खासकर उस मामले में जहां कानून के अनुसार इस तरह का कोई निषेध प्रचलित नहीं दिखाया जा सकता है।”

शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि यह संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है। न्यायालय ने आगे यह भी कहा कि संविधान के अनुच्छेद 15(1) में कहा गया है कि सरकार किसी भी व्यक्ति के साथ धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग या जन्मस्थान के आधार पर भेदभाव नहीं करेगा। न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि अनुच्छेद 38 और 46 के साथ यह संविधान के सामूहिक चरित्र को दर्शाता है जो यह सुनिश्चित करता है कि महिलाओं के साथ कोई भेदभाव न हो। पीठ ने हिंदू उत्तराधिकार (संशोधन) अधिनियम, 2005 के माध्यम से हिंदू कानून के तहत उठाए गए ‘सबसे सराहनीय’ कदम को भी रेखांकित किया, जिसने बेटियों को संयुक्त परिवार की संपत्ति में सह-उत्तराधिकारी बनाया।

पीठ ने कहा कि यह सच है कि महिला उत्तराधिकार की ऐसी कोई प्रथा स्थापित नहीं की जा सकी लेकिन फिर भी यह भी उतना ही सच है कि इसके विपरीत कोई प्रथा ज़रा भी साबित नहीं की जा सकी है। ऐसे में जब प्रथा मौन है तो अपीलकर्ता (धैया के वारिसों) को उसके पिता की संपत्ति में हिस्सा देने से इनकार करना उसके भाइयों या उसके कानूनी उत्तराधिकारियों के अपने चचेरे भाई के साथ समानता के उसके अधिकार का उल्लंघन होगा। न्यायालय ने यह भी कहा कि रीति-रिवाजों की चर्चा में, निचली अदालतें इस गलत धारणा पर आगे बढ़ीं कि बेटियों को किसी भी प्रकार की विरासत की हकदार नहीं माना जाएगा और अपीलकर्ता-वादी से इसके विपरीत साबित करने की अपेक्षा की गई।

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