होम देश Mother Father and stepfather… why SC reverses own decision on child custody within year पिता-पुत्र का रिश्ता… बच्चे की कस्टडी पर साल भर के अंदर SC ने क्यों पलटा अपना ही फैसला, India News in Hindi

Mother Father and stepfather… why SC reverses own decision on child custody within year पिता-पुत्र का रिश्ता… बच्चे की कस्टडी पर साल भर के अंदर SC ने क्यों पलटा अपना ही फैसला, India News in Hindi

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अदालत ने कहा कि पिता-पुत्र का रिश्ता वर्षों तक धैर्यपूर्वक, निरंतर उपस्थिति और जिम्मेदारी निभाने वाले रवैये से, और असीम प्रेम, देखभाल और सहानुभूति के साथ पोषित होकर ही विकसित होता है। कोर्ट ने कहा कि रातों-रात ऐसी उम्मीद नहीं कर सकते।

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक वैवाहिक विवाद और बच्चे की कस्टडी से जुड़े मामले में अपने ही फैसले को सालभर के अंदर पलट दिया है। जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस प्रसन्ना बी वराले की पीठ ने कहा कि पिछले साल अग्सत में पिता को दिए गए कस्टडी के आदेश से बच्चे के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ा है, और बच्चा चिंता एवं अवसाद से ग्रस्त है। इसलिए, मां की पुनर्विचार याचिका को स्वीकार करते हुए बच्चे की कस्टडी अब मां को दी जाती है।

15 जुलाई को मामले की सुनवाई के दौरान अदालत ने माँ द्वारा अपने 12 वर्षीय बेटे की स्थायी अभिरक्षा के लिए दायर पुनर्विचार याचिका को स्वीकार कर लिया। इस याचिका में मां ने बेटे को उसके जैविक पिता को सौंपने के कोर्ट के पूर्व आदेश के खिलाफ अपील की थी। इस याचिका में अलगाव की संभावना से बच्चे को होने वाली परेशानियों और चिंता के नए मनोवैज्ञानिक साक्ष्यों का हवाला दिया गया था।

पिछले साल बरकरार रखा था HC का आदेश

इससे पहले पिछले साल शीर्ष अदालत ने पिता के पक्ष में केरल हाई कोर्ट के आदेश को बरकरार रखा था। उस समय मामले की सुनवाई करते हुए बच्चे को हुई गंभीर मनोवैज्ञानिक क्षति को ध्यान में नहीं रखा गया था। लिहाजा, उन परिस्थितियों पर विचार करते हुए शीर्ष अदालत ने अब बच्चे की कस्टडी मां को दे दी और जैविक पिता के बच्चे से मिलने के अधिकार में भी संशोधन किया। अपने पुराने फैसले को पलटते हुए पीठ ने कहा, वैवाहिक विवाद के मामलों में बच्चे की कस्टडी पर अदालती फैसले ‘कठोर’ और ‘अंतिम’ नहीं हो सकते। इसलिए अदालत नाबालिग के सर्वोत्तम हित में फैसले बदलने का हकदार हैं।

आघात को नजरअंदाज नहीं कर सकते

पीठ ने कहा, “हम उस आघात को नजरअंदाज नहीं कर सकते जो अदालतों द्वारा पिता को अभिरक्षा सौंपने के आदेशों के परिणामस्वरूप बच्चे को हो रहा है।” न्यायालय ने आगे कहा कि यद्यपि समीक्षा अधिकारिता का संयम से प्रयोग किया जाना चाहिए, लेकिन पूर्व के फैसले के कारण बच्चे का बिगड़ता मानसिक स्वास्थ्य न्यायिक हस्तक्षेप के लिए एक पर्याप्त और बाध्यकारी कारण है।

माता-पिता की शादी 2011 में हुई थी

फैसले के अनुसार बच्चे के माता-पिता की शादी 2011 में हुई थी। बच्चे का जन्म 2012 में हुआ था। इसके एक साल बाद ही पति-पतिनी अलग हो गए। उस समय बच्चे की कस्टडी मां को सौंप दी गई थी। उस मां ने 2016 में दूसरी शादी कर ली। उसके दूसरे पति से भी दो बच्चे थे और नई शादी से भी एक बच्चा है। पिता ने बताया कि 2019 तक उसे उसके बच्चे के ठिकाने के बारे में कोई जानकारी नहीं थी लेकिन जब उसकी मां ने कुछ कागजी कार्रवाई के लिए उससे संपर्क किया तो उसे पता चला। पिता ने आरोप लगाया कि मां ने बच्चे को हिन्दू से ईसाई में धर्मांतरण करवा दिया है।

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फैमिली कोर्ट ने पिता को दिया था झटका

इसके बाद उस पिता ने बच्चे की कस्टडी के लिए फैमिली कोर्ट का दरवाजा खटखटाया लेकिन वहां से उसे निराशा हाथ लगी और बच्चे की कस्टडी मां को दे दी गई। इसके बाद पिता ने केरल हाई कोर्ट में उसे चुनौती दी, जहां उसे बच्चे की हिरासत सौंप दी गई। इस आदेश के खिलाफ मां सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई, जहां पिछले साल अगस्त में उसे झटका लगा और हाई कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा गया। अब उसी आदेश को पलटते हुए सुप्रीम कोर्ट ने बच्चे की कस्टडी मां को सौंप दी है। मां ने बच्चे की मनोवैज्ञानिक स्थिति पर सीएमसी वेल्लौर की रिपोर्ट भी अदालत को सौंपी थी, जिस पर कोर्ट ने गौर किया कि बच्चे का मानसिक स्वास्थ्य बिगड़ रहा है।

पिता-पुत्र का रिश्ता अचानक नहीं विकसित होता…

कोर्ट ने इस बात पर भी गौर किया कि उसका सौतेला पिता उसे अपने बच्चों की ही तरह प्यार करता है और बच्चा भी अपने सौतेले बाप और सौतेले भाई-बहन से अपने भाई-बहन की ही तरह प्यार करता है। अदालत ने कहा कि पिता यह उम्मीद नहीं कर सकता कि इतने लंबे समय तक गायब रहने के बाद बच्चा उसके साथ अचानक से माता-पिता जैसा रिश्ता बना लेगा। अदालत ने कहा, “पिता-पुत्र का रिश्ता वर्षों तक धैर्यपूर्वक, निरंतर उपस्थिति और ज़िम्मेदारी निभाने वाले रवैये से, और असीम प्रेम, देखभाल और सहानुभूति के साथ पोषित होकर ही विकसित हो सकता है।”

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