होम विदेश मिडिल ईस्ट में कोई पिटे-कोई मरे… आखिर कभी क्यों नहीं बोलता ये मुस्लिम देश?

मिडिल ईस्ट में कोई पिटे-कोई मरे… आखिर कभी क्यों नहीं बोलता ये मुस्लिम देश?

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मिडिल ईस्ट में चाहे कहीं भी हमला हो, बहरीन हर बार मौन साधे रहता है.

मिडिल ईस्ट जल रहा है, ईरान के बाद अब इजराइल के सीधे निशाने पर सीरिया है. लेबनान और यमन भी इजराइल के हमले झेल रहे हैं. मध्य पूर्व के तकरीबन सभी देश कुछ न कुछ बोल रहे हैं, कोई इजराइल के हमले की निंदा कर रहा है, तो किसी का कहना है कि ये तनाव का माहौल कम होना चाहिए. इन सबके बीच एक मुस्लिम देश ऐसा भी है जो खुले तौर पर कुछ नहीं बोलता. यह देश है बहरीन जो न तो ईरान के पक्ष में बयान देता है और न ही इजराइल, सीरिया या लेबनान के बारे में कुछ कहता है.

बहरीन एक छोटा मगर रणनीतिक तौर पर मध्य पूर्व का अहम देश माना जाता है. यह सऊदी अरब और कतर के बीच में स्थित है और अरब दुनिया के सबसे छोटे देशों में शुमार है, यहां का शासन संवैधानिक राजतंत्र पर आधारित है, जिसके राजा हामद बिन ईसा अल खलीफा हैं, जबकि प्रधानमंत्री सलमान बिन हमद अल खलीफा हैं.यहां के शासक सुन्नी हैं, लेकिन आबादी शिया बहुल है, ऐसे में पहले देश में सामाजिक तनाव अक्सर बना रहता है. मिडिल ईस्ट के मामलों में ज्यादा टांग न अड़ाने का कारण भी यही है.

क्यों मौन रहता है बहरीन?

1- अब्राहम समझौता और इजराइल से दोस्ती

बहरीन अब्राहम समझौते में है. 2020 में जब इस समझौते पर हस्ताक्षर हुए तो डोनाल्ड ट्रंप ही अमेरिका के राष्ट्रपति थे. इसके बाद बहरीन और इजराइल ने द्विपक्षीय संबंध बढ़ाए और एक दूसरे के देशों में दूतावास भी खोले. इस समझौते के बाद से ही बहरीन इजराइल की खिलाफत नहीं करता है, फिलिस्तीन, सीरिया, ईरान, लेबनान या यमन कहीं भी इजराइल का हमला हो बहरीन कुछ नहीं बोलता, अगर कुछ कहता भी है तो बस इतना कि तनाव वाले देशों को बातचीत का रास्ता निकालना चाहिए.

2- सऊदी अरब का प्रभाव

बहरीन पर सऊदी अरब का प्रभाव है, वह सुरक्षा, इकॉनॉमी के लिए सऊदी पर ही निर्भर है, सऊदी की बात करें तो वह अप्रत्यक्ष तौर पर ईरान के खिलाफ रहता है. इसके विपरीत उसका रुख अमेरिका और इजराइल के बीच संतुलन का है, इसीलिए बहरीन पर इसी दिशा में चलता है. इसके अलावा यमन के हूती, लेबनान के हिजबुल्लाह और सीरिया के शिया संगठनों को सऊदी पसंद नहीं करता इसलिए बहरीन भी न्यूट्रल रहता है.

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3- ईरान से मतभेद

बहरीन का ईरान से मतभेद है, खासकर शिया और सुन्नी विवाद की वजह है. बेशक बहरीन शिया बहुल है, लेकिन इसकी सत्ता सुन्नी राजशाही के हाथ हैं. ऐसे में बहरीन को हमेशा डर रहता है कि कहीं ईरान देश में अस्थिरता पैदा न कर दे. इसीलिए ईरान या उसके समर्थित देशों या गुट पर हमला होता है तो बहरीन चुप्पी साधे रहता है. इसका एक कारण ईरान के विस्तारवाद को रोकने का प्रयास भी बताया जाता है.

4- जोखिम से बचाव

बहरीन एक छोड़ा खाड़ी देश है, उसके पास इतने संसाधन नहीं कि वह अपना बचाव खुद कर सके, ऐसे में उसे अन्य देशों पर निर्भर रहता पड़ता है, इसीलिए किसी भी मसले पर खुलकर बयान देना बहरीन अपने लिए जोखिम मानता है. वह न तो अमेरिका और इजराइल को नाराज करना चाहता है और न ही सऊदी से दूरी बनाना चाहता है. इसीलिए उसकी चुप्पी का कारण कूटनीतिक भी माना जाता है.

5- फाइनेंशियल हब के तौर पर पेश करना

बहरीन की अर्थव्यवस्था तेल और गैस पर निर्भर है. हालांकि यहां फाइनेंस और बैकिंग सेक्टर भी तेजी से विकसित हुआ है. ऐसे में बहरीन खाड़ी देशों में खुद को फाइनेंशियल हब के तौर पर पेश करता है. यह ईरान के बिल्कुल पास और सऊदी के नजदीक स्थित है, यहां अमेरिका का बड़ा नेवल बेस भी है, ऐसे में वह किसी भी तरह का खतरा मोल नहीं लेना चाहता.

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