पटना. बिहार चुनाव से पहले राजनीतिक पार्टियां जहां अलग-अलग जातियों की रैली कर रही हैं, वहीं कुछ राजनीतिक पार्टियों में एक ही जाति के नेताओं की भी बैठकें शुरू हो गई हैं. खास जाति से जुड़े इन नेताओं की बैठकें इस बात को लेकर हो रही हैं कि अगर इस बार के चुनाव में आपस में ही लड़ेंगे तो दूसरी जातियां और पार्टियां फिर से बाजी मार लेंगी. बिहार की सियासत में जाति का समीकरण हमेशा से महत्वपूर्ण स्थान रहा है. खासकर भूमिहार समुदाय, जो राज्य की आबादी का लगभग 3-4% है, अपनी राजनीतिक ताकत के लिए जाना जाता है. 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में विभिन्न पार्टियों ने भूमिहार उम्मीदवारों को टिकट देकर इस समुदाय को साधने की कोशिश की. लेकिन देखा गया कि भूमिहार बहुल कई सीटों पर राजपूत उम्मीदवार जीत गए और भूमिहार उम्मीदवार हार गए.
राजनीतिक जानकारों की मानें तो भूमिहार अब एनडीए में निर्णायक समुदाय बन चुके हैं. 2023 की जनगणना की चर्चा और जातीय समीकरणों की बदलती तस्वीर से यह स्पष्ट है कि सभी पार्टियां उन्हें साधने में लगी हैं. यही कारण है कि भूमिहार नेतृत्व अब मिलकर आने वाली रणनीति तय करना चाहता है. ऐसे में आगामी चुनाव में भूमिहार नेता अब सामूहिक रूप से टिकट मांगने, क्षेत्रीय समझौतों और उम्मीदवार चयन पर असर डालने हेतु भूमिहार नेताओं की बैठकों की शुरुआत हुई है.
भूमिहार बहुल सीटों पर इस बार किस जाति का होगा जलवा?
मुजफ्फरपुर, मोकामा, सारण, पटना पश्चिम, मुंगेर, जमुई, शेखपुरा, पश्चिम चंपारण, भागलपुर, खगड़िया, बेगुसराय, बछवाड़ा, तेघड़ा, संदेश, आरा, जहानाबाद, छपरा, तरैया, हरनौत, इस्लामपुर, जमालपुर, दरभंगा ग्रामीण, बेनीपट्टी और हायाघाट जैसी सीटें भूमिहार बहुल सीट हैं,जहां इनकी आबादी 20 प्रतिशत के करीब है. ऐसे में अब भूमिहार नेता आपस में एकजुट होकर एनडीए और महागठबंधन में ज्यादा से ज्यादा सीटों की मांग कर रहे हैं.