होम देश Controversy Over Banke Bihari Corridor Project in Vrindavan Supreme Court Approval Sparks Local Protests विकास और विरासत के बीच फंसा वृंदावन का बांके बिहारी मंदिर, India News in Hindi

Controversy Over Banke Bihari Corridor Project in Vrindavan Supreme Court Approval Sparks Local Protests विकास और विरासत के बीच फंसा वृंदावन का बांके बिहारी मंदिर, India News in Hindi

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वृंदावन में बांके बिहारी मंदिर के विकास के लिए कॉरिडोर बनाने की योजना पर विवाद खड़ा हो गया है। स्थानीय लोग सरकार के इस कदम का विरोध कर रहे हैं, क्योंकि यह उनकी सांस्कृतिक और आध्यात्मिक धरोहर को खतरे…

डॉयचे वेले दिल्लीSun, 29 June 2025 05:47 PM

यूपी में वृंदावन के बांके बिहारी मंदिर का विकास करने और भीड़ नियंत्रित करने के उद्देश्य से सरकार कॉरिडोर बना रही है जिसे सुप्रीम कोर्ट ने भी हरी झंडी दे दी है.लेकिन स्थानीय लोग इसका विरोध कर रहे हैं.उत्तर प्रदेश के मथुरा जिला मुख्यालय से करीब 20 किलोमीटर की दूरी पर है वृंदावन.यहां बांके बिहारी मंदिर समेत हजारों की संख्या में मंदिर हैं जहां बड़ी संख्या में हर दिन श्रद्धालु आते हैं.बांके बिहारी मंदिर तक जाने के लिए कई रास्ते हैं जो छोटी और संकरी गलियों से होकर जाते हैं.गलियां संकरी होने और श्रद्धालुओं की संख्या बहुत ज्यादा होने के कारण सुबह-शाम यहां काफी भीड़ हो जाती है.इस भीड़ को नियंत्रित करने के मकसद से राज्य सरकार ने कुछ गलियों को तोड़कर चौड़ी सड़क बनाने की योजना बनाई.लेकिन सरकार जिन गलियों को तोड़ने का फैसला कर चुकी है, वे सामान्य गलियां नहीं बल्कि वृंदावन की “कुंज कलियां” हैं.इनका उतना ही आध्यात्मिक और सांस्कृतिक महत्व है जितना बिहारी मंदिर का और वृंदावन का.ये गलियां वास्तव में वृंदावन की पहचान हैं.इसीलिए वृंदावन के लोग इन गलियों को तोड़े जाने का विरोध कर रहे हैं.साल 2020 की जन्माष्टमी पर मंगला आरती के दौरान बांके बिहारी मंदिर में भीड़ की वजह से भगदड़ मच गई थी जिसमें दो श्रद्धालुओं की मौत हो गई और कई लोग घायल हो गए थे.उसके बाद से ही भीड़ को नियंत्रित करने और एक साथ ज्यादा भीड़ को रोकने के लिए योजना बनाने की शुरुआत हुई और यहीं से जन्म हुआ बांके बिहारी कॉरिडोर प्रोजेक्ट का.यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 2022 में इसे काशी विश्वनाथ कॉरिडोर की तर्ज पर विकसित करने की घोषणा की.क्या है योजना?योजना के मुताबिक करीब 5 एकड़ में फैले इस कॉरिडोर में एक साथ दस हजार श्रद्धालु आ सकते हैं.इसके लिए चौड़ा रास्ता, नौ सौ मीटर लंबा परिक्रमा पथ, पार्किंग, शौचालय, केयर यूनिट जैसी व्यवस्थाएं भी रहेंगी.वीआईपी कमरे और प्रतीक्षालय भी बनाए जाएंगे.इस प्रोजेक्ट की लागत करीब नौ सौ करोड़ रुपये है.परियोजना के लिए ना सिर्फ वृंदावन की मशहूर कुंज गलियों को तोड़ा जाना है बल्कि सैकड़ों दुकानें और सेवादारों के मकान भी तोड़े जाएंगे जो सदियों से और पीढ़ियों से बांके बिहारी मंदिर और आस-पास के मंदिरों की सेवा करते आए हैं.लेकिन बांके बिहारी कॉरिडोर का मंदिर में पूजा-पाठ करने वाला गोस्वामी समाज विरोध कर रहा है.गोस्वामी समाज के अलावा आस-पास के लोग और यहां तक कि नियमित तौर पर आने वाले तमाम श्रद्धालु भी विरोध कर रहे हैं.गोस्वामी समाज का कहना है कि वे सैकड़ों साल से नियमित रूप से मंदिर की पूजा करते आ रहे हैं और कॉरिडोर बनने से मंदिर के धार्मिक और सांस्कृतिक परिवेश के अलावा यहां का पारिस्थितिकी तंत्र भी बदल जाएगा.कॉरिडोर के विरोध में सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका भी दायर की गई लेकिन इसी साल 15 मई को सुप्रीम कोर्ट ने कॉरिडोर के पक्ष में फैसला दिया और फिर सरकार ने तत्काल अध्यादेश जारी कर ट्रस्ट बनाने की घोषणा कर दी.क्यों हो रहा है विरोध?सरकार की तरफ से जहां सैकड़ों संपत्तियों को पहचान कर उन्हें तोड़ने की तैयारी हो रही है वहीं पिछले करीब एक महीने से वृंदावन और बांके बिहारी मंदिर परिसर में कॉरिडोर का विरोध जारी है.विरोध में नारेबाजी और प्रदर्शन तो लगातार हो ही रहे हैं, महिलाओं ने सरकार को अपने खून से पत्र भी लिख भेजा है.बांके बिहारी मंदिर के सेवायत प्रहलाद वल्लभ गोस्वामी कहते हैं कि सरकार इस क्षेत्र का विकास करना चाहती है और भीड़ नियंत्रित करना चाहती है तो मंदिर किसी और जगह भी बनाया जा सकता है और बांके बिहारी भगवान को उस मंदिर में प्रतिष्ठित किया जा सकता है. प्रहलाद वल्लभ खुद को स्वामी हरिदास का वंशज बताते हैं और उनका दावा है कि वो स्वामी हरिदास के भाई स्वामी जगन्नाथ जी की सत्रहवीं पीढ़ी के हैं.स्वामी हरिदास के तीन भाई थे लेकिन स्वामी जगन्नाथ के अलावा अन्य दोनों के कोई संतान नहीं थी.डीडब्ल्यू से बातचीत में प्रहलाद वल्लभ गोस्वामी कहते हैं, “हम तो चाहते हैं कि कॉरिडोर की बजाय नया मंदिर बना दिया जाए.मंदिर पहले भी सात बार बन चुका है और अलग-अलग जगहों पर बन चुका है.बांके बिहारी भगवान को गोदी में लेकर कहीं भी जाया सकता है.इसे चल सेवा कहते हैं.इस मंदिर को पुरातात्विक धरोहर के रूप में संरक्षित कर दिया जाए क्योंकि ये 161 साल पुराना मंदिर है.मंदिर भी जीर्ण-शीर्ण हो चुका है इसलिए इसी मंदिर के चारों ओर इतना पैसा खर्च करने का कोई मतलब नहीं है.बांके बिहारी मंदिर के साथ ही दूसरे मंदिर और कुंज गलियां भी संरक्षित हो जाएंगी”प्रहलाद वल्लभ गोस्वामी इन खबरों पर आपत्ति जताते हैं कि गोस्वामी समाज मंदिर को अपनी संपत्ति समझ रहा है.वह कहते हैं कि हम मंदिर के मालिक नहीं हैं बल्कि सेवक और गार्जियन हैं.उनके मुताबिक, “मंदिर हमारे पूर्वजों ने बनाया था अपने पैसे से.इसलिए हम इस पर दावा करते हैं.इसके लिए हमारे पूर्वजों ने कई लड़ाइयां लड़ी थीं.हम मंदिर के मालिक नहीं हैं, बल्कि गार्जियन हैं.बिहारी जी महराज पूरी दुनिया के मालिक हैं.हां, हम उनकी सेवा करते हैं जिसका अधिकार हमें है”सम्राट अकबर से दान में मिली थी जमीनसरकार यहां अयोध्या और बनारस की तर्ज पर विकास करना चाह रही है लेकिन स्थानीय लोगों के मुताबिक यहां की स्थिति बनारस से अलग है.प्रहलाद वल्लभ कहते हैं, “बनारस की स्थिति अलग है.वृंदावन के पांच हजार मंदिर हैं जिनका अपना-अपना स्वतंत्र अस्तित्व और भूगोल है.सबकी अपनी संपत्तियां हैं.वृंदावन का पूरा क्षेत्र इन्हें सम्राट अकबर की ओर से दान में मिला हुआ है.इन्हीं के नाम से नगले बने हुए हैं.हर मंदिर के साथ सेवादार हैं”गोस्वामी कहते हैं कि आजादी के पहले से ही एक समुचित व्यवस्था के तहत मंदिर का संचालन हो रहा था लेकिन पिछले दस साल से इसमें दिक्कतें आनी शुरू हुईं और अब वो दिक्कतें इस कदर बढ़ गई हैं कि सरकार इसका नियंत्रण ही अपने हाथ में लेना चाह रही है.उनके मुताबिक, “1939 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मंदिर के संचालन और व्यवस्था के लिए प्रबंध कमेटी का गठन किया था.सात सदस्यीय कमेटी में गोस्वामी समुदाय के चार लोग होते हैं जबकि तीन सदस्य बाहर के होते हैं.2016 में ये व्यवस्था बदल गई. अगला चुनाव नहीं हुआ जबकि तीन साल पर चुनाव होता रहता है.उसके बाद से ही यहां रिसीवर बैठा दिए गए”गोस्वामी कहते हैं कि पिछले दस साल से मंदिर में निर्वाचित कमेटी नहीं है.उसके आधार पर मुंसिफ मजिस्ट्रेट पदेन रिसीवर हो जाते हैं.उनके पास वैसे ही इतने काम होते हैं.उन्होंने मैनेजर रखे हैं जिन्हें यहां की कोई जानकारी नहीं है.उनकी मांग है कि कमेटी बनाकर हमें दे दी जाए और हम व्यवस्था खुद बना लेंगे.हालांकि मथुरा और वृंदावन के तमाम लोग कॉरिडोर का समर्थन भी कर रहे हैं लेकिन ज्यादातर लोगों को ये पसंद नहीं आ रहा है कि विकास के नाम पर वृंदावन की धार्मिक और सांस्कृतिक विरासत को नुकसान पहुंचाया जाए.मथुरा के वरिष्ठ पत्रकार और परियोजना पर लगातार नजर रख रहे विजय कुमार आर्य “विद्यार्थी” कहते हैं, “समर्थन तो वो लोग कर रहे हैं जो सरकार के समर्थक लोग हैं, इनका मंदिर से कोई लेना-देना नहीं है”विस्थापन से रोजी-रोटी का संकटडीडब्ल्यू से बातचीत में विद्यार्थी कहते हैं, “मथुरा के 197 मंदिरों पर रिसीवर बैठाए गए हैं जिनमें अधिकांश वकील हैं या फिर सेवायत.सुप्रीम कोर्ट तक ने सवाल किया है कि मंदिरों में वकीलों को बैठाने का क्या मतलब है.ये देखना चाहिए कि समर्थन करने वाले लोग हैं कौन.वास्तव में सरकार यह सब इसलिए कर रही है क्योंकि सुप्रीम कोर्ट में जवाब देना है.सरकार ज्यादा से ज्यादा समर्थन पत्र जमा कर रही है ताकि विरोधियों की आवाज दब जाए.जबकि कॉरिडोर बनने से व्यावहारिक रूप से बहुत सी परेशानियां खड़ी होंगी.जिन्हें उजाड़ रहे हैं उनकी बात सुन नहीं रहे हैं.मुआवजे वाली बात भी कुछ स्पष्ट नहीं है”दरअसल, जिन दुकानों और मकानों को यहां से उजाड़ा जाना है वो कई पीढ़ियों से यहां बसे हुए हैं यहीं से उनकी रोजी-रोटी चल रही है.ज्यादातर लोगों के पास कोई दस्तावेज नहीं हैं.यानी यहां कब्जा तो है उनका लेकिन उनके पास इसके समर्थन में कोई कागज नहीं है.जाहिर है, उन्हें यहां से हटा तो दिया जाएगा लेकिन मुआवजे के नाम पर कुछ नहीं मिलेगा.लोगों का कहना है कि सरकार लाख-दो लाख मुआवजा पकड़ाने की तैयारी कर रही है लेकिन वह भी कुछ स्पष्ट नहीं है.लेकिन वरिष्ठ पत्रकार विजय कुमार आर्य “विद्यार्थी” कहते हैं कि साल 1916 में यहां नगर पालिका बनी है.उसके बाद से ही यहां के लोग टैक्स दे रहे हैं.वह पूछते हैं कि अगर जगह कानूनी नहीं है तो टैक्स क्यों लिया जा रहा है.उनके मुताबिक, करीब 275 घर उजड़ने हैं और दो सौ से ज्यादा पक्की दुकानें और बड़ी संख्या में रेहड़ी-पटरी वाले भी यहां से विस्थापित होंगे.भीड़ अचानक क्यों होने लगी?वृंदावन करीब दस किमी के बीच बसा हुआ है.स्थानीय लोगों के मुताबिक, पहले इस कदर भीड़ नहीं होती थी कि भगदड़ होने लगे. भीड़ का प्रबंधन और नियंत्रण सेवायतों के भरोसे ही था और सब कुछ सामान्य होता रहा क्योंकि भीड़ को मंदिर से थोड़ा पहले ही कवर कर लिया जाता था.मंदिर के पास ही फूल-माला की दुकान चलाने वाले लक्ष्मण कुमार बताते हैं कि पिछले कुछ समय से जानबूझकर भीड़ बढ़ाई जाने लगी और यह भीड़ सिर्फ एक-डेढ़ घंटे की ही होती है.उनके मुताबिक, ऐसा इसलिए है ताकि कॉरिडोर और सरकारी नियंत्रण के लिए माहौल बनाया जा सके.गोस्वामी समाज के ही एक अन्य सेवायत नाम न बताने की शर्त पर कहते हैं कि सरकार की मंशा व्रजतीर्थ विकास परिषद के नाम पर बांके बिहारी मंदिर के आस-पास के तमाम मंदिरों को भी हथियाने की है.उनके मुताबिक, “यहां छोटे-बड़े करीब पांच हजार मंदिर हैं लेकिन कई मंदिर बड़े हैं और उनका आध्यात्मिक महत्व भी है.ऐसे करीब दो सौ मंदिरों को इस परिषद को देने की योजना है.और फिर परिषद अपनी मर्जी से पुजारी और सेवादार नियुक्त करेगी.हमारा विरोध ये है कि बाहर के किसी भी व्यक्ति को यूं ही पुजारी नियुक्त कर देंगे तो क्या लोग उसे स्वीकार करेंगे.यहां सरकार पूरी परंपरा और संस्कृति बदल देने पर ही उतारू है.एक-एक मंदिर में सैकड़ों सेवायत हैं.तो ये सब कहां जाएंगे? सच्चाई ये है कि कॉरिडोर के नाम पर सरकार इन मंदिरों को अपने नियंत्रण में लेकर अपने लोगों को बैठाना चाहती है.सेवायतों को भी धमकी दी जा रही है और विरोध करने वालों को धमकाकर तोड़ा भी जा रहा है और कॉरिडोर के समर्थन में बोलने का दबाव बनाया जा रहा है”कॉरिडोर जनता की मांगलेकिन सरकार का कहना है कि वो श्रद्धालुओं की सुविधा और सुरक्षा को देखते हुए ब्रज क्षेत्र का विकास करना चाहती है.उत्तर प्रदेश के कैबिनेट मंत्री चौधरी लक्ष्मी नारायण का कहना है कि बांके बिहारी कॉरिडोर का कुछ लोग भ्रमवश विरोध कर रहे हैं.डीडब्ल्यू से बातचीत में उन्होंने कहा, “कॉरिडोर का निर्माण जनता की मांग पर किया जा रहा है.सेवा की परंपरागत प्रथा जारी रहेगी, इसमें सरकार का कोई हस्तक्षेप नहीं होगा.जमीन की खरीद बांके बिहारी ट्रस्ट द्वारा ही की जाएगी, सरकार केवल विकास कार्य करेगी”वृंदावन आने वाले श्रद्धालु उन दर्जनों कुंज गलियों को भी देखते हैं और वहां चलने का आनंद लेते हैं जो अलग-अलग जगहों से होते हुए बांके बिहारी मंदिर की और जाती हैं.इन गलियों की बनावट भी बड़ी दिलचस्प है और लोगों की आस्था भी जुड़ी हुई है.प्रहलाद वल्लभ गोस्वामी बताते हैं, “कुंज गलियों का धार्मिक महत्व है.ये गलियां तीन फुट से लेकर 15 फुट तक चौड़ी हैं.22 मुख्य गलियां हैं जबकि सौ से ज्यादा छोटी गलियां हैं.ये चक्रव्यूह प्रणाली से बनी हुई हैं यानी एक-दूसरे से जुड़ी तो हैं लेकिन कहीं भी बंद नहीं हैं.यही वजह है कि भीड़ का दबाव कभी बढ़ने नहीं पाता और न ही भीड़ अनियंत्रित होने पाती है.मान्यता है कि आज भी भगवान मंदिर से निधि वन में रास रचाने जाते हैं तो इन्हीं कुंज गलियों में ही होकर जाते हैं.इसीलिए लोग वहां दंडवत होते हैं.यहां की रज यानी धूल अपने माथे पर चढ़ाते हैं”स्थानीय लोग बताते हैं कि कुछ साल पहले तक इन गलियों से किसी को दिक्कत नहीं थी लेकिन अब होने लगी है क्योंकि अब यहां पुलिस तैनात कर दी गई है और पुलिस भीड़ बढ़ने पर सड़क और गलियां बंद कर देती है.

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