महाराष्ट्र में स्कूलों में पहली कक्षा से हिंदी पढ़ाने के फैसले पर विरोध बढ़ता जा रहा है। इस बीच डिप्टी सीएम अजित पवार का बयान आया है। अजित पवार ने कहाकि राज्य विधानमंडल के मॉनसून सत्र से पहले मंत्रिमंडल की बैठक में इस मुद्दे पर चर्चा की जाएगी।
महाराष्ट्र में स्कूलों में पहली कक्षा से हिंदी पढ़ाने के फैसले पर विरोध बढ़ता जा रहा है। इस बीच डिप्टी सीएम अजित पवार का बयान आया है। अजित पवार ने कहाकि राज्य विधानमंडल के मॉनसून सत्र से पहले मंत्रिमंडल की बैठक में इस मुद्दे पर चर्चा की जाएगी। बारामती में संवाददाताओं से बात करते हुए राकांपा अध्यक्ष ने अपने विचार को दोहराया कि अगर पढ़ानी ही है तो हिंदी पांचवीं कक्षा से पढ़ाई जानी चाहिए। उन्होंने कहाकि हमारा कभी यह मत नहीं रहा कि हिंदी को (स्कूल में) शुरू से ही थोपा जाना चाहिए। हिंदी सीखने की कोई बाध्यता नहीं है। इस बीच, अभिनेता सयाजी शिंदे ने भी पहली कक्षा से हिंदी पढ़ाने का विरोध किया।
विपक्ष कर रहा आलोचना
विपक्षी दलों ने भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार के आदेश की आलोचना की है। इस आदेश के अनुसार मराठी और अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों में कक्षा 1-5 तक हिंदी सामान्य रूप से तीसरी भाषा होगी। उपमुख्यमंत्री पवार ने कहाकि हिंदी की कोई बाध्यता नहीं है। हमारा मानना है कि अपने-अपने राज्य में सभी को अपनी मातृभाषा सीखनी चाहिए। हमने कहा है कि पांचवीं कक्षा से हिंदी पढ़ाने के बारे में सोचना चाहिए। अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों में पढ़ने वालों को मराठी सीखनी चाहिए, क्योंकि यह एक अनिवार्य विषय है। लोगों को पांचवीं कक्षा से (वैकल्पिक भाषा के बारे में) निर्णय लेना चाहिए।
मराठी में पारंगत होना चाहिए
अजित पवार ने कहाकि छात्रों को मराठी सीखने की अनुमति दी जानी चाहिए, जो एक बहुत ही समृद्ध भाषा है। उन्हें कम उम्र में ही मराठी में पारंगत होना चाहिए और उन पर किसी अन्य भाषा का बोझ नहीं डालना चाहिए। अगर इसे अनिवार्य बनाना ही है, तो इसे पांचवीं कक्षा के बाद ही पढ़ाया जाना चाहिए। अजित पवार ने कहाकि विधानसभा सत्र परसों शुरू होगा। हम कल (मंत्रिमंडल बैठक में) इस मुद्दे पर चर्चा करेंगे। हमारा कभी भी यह मत नहीं रहा कि हिंदी को शुरू से ही थोपा जाना चाहिए।
ऐसा है महाराष्ट्र सरकार का आदेश
गौरतलब है कि महाराष्ट्र सरकार ने पिछले हफ्ते एक संशोधित आदेश जारी किया था। इसमें कहा गया था कि मराठी और अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों में पहली से पांचवी कक्षा तक के विद्यार्थियों को हिंदी सामान्यतः तीसरी भाषा के रूप में पढ़ाई जाएगी, जिसके बाद इस पर विवाद पैदा हो गया। सरकार ने कहाकि हिंदी अनिवार्य नहीं होगी तथापि उसने हिंदी के अलावा किसी अन्य भाषा का अध्ययन करने के लिए स्कूल में प्रत्येक कक्षा में कम से कम 20 छात्रों की सहमति अनिवार्य कर दी।