आरएसएस के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले ने गुरुवार को एक कार्यक्रम के दौरान कहा है कि समाजवादी और धर्मनिरपेक्ष शब्द मूल संविधान की प्रस्तावना का हिस्सा नहीं थीं और इन्हें हटाने पर विचार किया जाना चाहिए।
संविधान से समाजवादी और सेक्युलर शब्दों को हटाए जाने की राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की मांगों पर कांग्रेस ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है। कांग्रेस ने कहा है कि यह आरएसएस और भाजपा की बड़ी साजिश का हिस्सा है और वे संविधान को खत्म करना चाहते हैं। कांग्रेस ने कहा है कि RSS ने कभी बाबासाहेब आंबेडकर के संविधान को स्वीकार ही नहीं किया। इससे पहले RSS ने गुरुवार को इन शब्दों को मूल संविधान का हिस्सा ना बताते हुए इन्हें हटाए जाने की मांग की थी।
कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर एक पर लिखा कि RSS ने बाबासाहेब और नेहरू का अपमान किया है। उन्होंने पोस्ट में लिखा, “आरएसएस ने कभी भी भारत के संविधान को स्वीकार नहीं किया है। उन्होंने 30 नवंबर 1949 के बाद से डॉ. आंबेडकर, नेहरू और इसके निर्माण में शामिल महापुरुषों पर हमला किया है। आरएसएस के अपने शब्दों में, संविधान मनुस्मृति से प्रेरित नहीं था।”
संविधान के मूल ढांचे से खिलवाड़
जयराम रमेश ने आगे कहा कि भाजपा ने बार-बार न्याय संविधान बदलने की बात कही है। उन्होंने लिखा, “आरएसएस और भाजपा ने बार-बार नए संविधान की बात कही है। 2024 के लोकसभा चुनावों के दौरान यह मोदी जी का चुनावी नारा भी था। लेकिन भारत के लोगों ने इसे सिरे से खारिज कर दिया। फिर भी आरएसएस संविधान के मूल ढांचे को बदलने की मांग कर रहा है।”
सुप्रीम कोर्ट का हवाला
कांग्रेस महासचिव ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट भी इस संबंध में फैसला सुना चुका है। उन्होंने लिखा, “भारत के मुख्य न्यायाधीश ने खुद 25 नवंबर, 2024 को इस मुद्दे पर फैसला सुनाया था। अब एक प्रमुख आरएसएस नेता यह मुद्दा क्यों छेड़ रहे हैं? यह फैसला ही पढ़ लीजिए।” उन्होंने पोस्ट के साथ कोर्ट के फैसले की प्रतिलिपि भी साझा की है।
दत्तात्रेय होसबोले ने क्या कहा था?
इससे पहले RSS के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले ने गुरुवार को आपातकाल पर आयोजित एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा था कि ये शब्द बाबासाहेब आंबेडकर के बनाए गए संविधान का हिस्सा नहीं थे। होसबोले ने कार्यक्रम के दौरान कहा था, “बाबासाहेब अंबेडकर ने जो संविधान बनाया, उसकी प्रस्तावना में यह शब्द कभी नहीं थे। आपातकाल के दौरान जब मौलिक अधिकार निलंबित कर दिए गए, संसद काम नहीं कर रही थी, न्यायपालिका पंगु हो गई थी, तब यह शब्द जोड़े गए थे।” उन्होंने कहा कि इन शब्दों को प्रस्तावना में रहना चाहिए या नहीं इस पर विचार किया जाना चाहिए। होसबोले ने कहा, “प्रस्तावना शाश्वत है। क्या समाजवाद के विचार भारत के लिए एक विचारधारा के रूप में शाश्वत हैं?”