पटना. क्या रेणु कुशवाहा की आरजेडी में एंट्री तेजस्वी यादव के ‘बड़े सामाजिक गठबंधन’ की योजना में एक और ईंट जोड़ दी है? क्या मंडल की विरासत, सामाजिक न्याय की राजनीति और जातीय गणित इन तीनों को साथ लेकर तेजस्वी बिहार की सत्ता की ओर कदम बढ़ा रहे हैं? क्या नीतीश का किला गिराने के लिए सिर्फ एक ‘रेणु’ काफी नहीं होगी इसलिए अगला कदम और बड़ा होना वाला है? क्या आरजेडी में अगला नंबर उपेंद्र कुशवाहा का होगा? या फिर कोई और ‘वोट-बेस आइकन’ आरजेडी में आने के लिए बेताब हैं? बिहार की राजनीति एक बार फिर करवट लेती नजर आ रही है. जैसे-जैसे 2025 का विधानसभा चुनाव नजदीक आ रहा है, सियासी हलचलें तेज होती जा रही हैं. तेजस्वी यादव की मौजूदगी में आरजेडी में शामिल होकर रेणु कुशवाहा ने न केवल राजनीतिक समीकरणों को उलझाया है, बल्कि नीतीश कुमार के ‘लव-कुश’ समीकरण पर भी चोट की है.
मंडल के बाद अब कुशवाहा निशाने पर
तेजस्वी यादव की रणनीति अब और साफ हो गई है, जातीय समीकरणों की बिसात पर वे एक-एक चाल बेहद सधे अंदाज में चल रहे हैं. पहले उन्होंने मंडल आयोग की राजनीति को पुनर्जीवित कर सामाजिक न्याय का झंडा बुलंद किया, अब उनकी नजर ईबीसी और खासकर कुशवाहा समुदाय पर है. रेणु कुशवाहा का आरजेडी में आना इसी दिशा में एक बड़ा कदम माना जा रहा है.
कोइरी समुदाय का क्या है बिहार आधार
‘लव-कुश’ समीकरण पर सीधी चोट?
हालांकि यह तेजस्वी यादव के लिए एक अहम रणनीतिक जीत जरूर है, लेकिन बिहार की चुनावी जंग जीतने के लिए उन्हें और भी कई मोर्चों पर ध्यान देना होगा. यादव और मुस्लिम मतदाताओं के साथ-साथ ईबीसी, कुशवाहा और महादलित वोटों को एकसाथ जोड़ना कठिन लेकिन जरूरी चुनौती है. वहीं नीतीश कुमार और एनडीए की मजबूत संगठनात्मक पकड़, और बीजेपी का संसाधनों व चुनावी रणनीतियों में अनुभव, आरजेडी के लिए चुनौती बना रहेगा.