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शेख हसीना को फांसी देने की मांग पर विवाद, बांग्लादेश ट्रिब्यूनल ने उनके वकील को हटाया

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शेख हसीना को फांसी देने की मांग पर विवाद.

बांग्लादेश के अंतर्राष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण (ICT-BD) ने एक विवाद के बाद पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना के लिए नियुक्त राज्य बचाव वकील को पद से हटा दिया है. वकील अमीनुल गनी टीटू को हाल ही में शेख हसीना के लिए सरकारी वकील नियुक्त किया गया था, लेकिन उनके एक पुराने फेसबुक पोस्ट के कारण विवाद खड़ा हो गया, जिसमें उन्होंने हसीना के लिए फांसी की मांग की थी.

यह घटनाक्रम उस समय हुआ है जब शेख हसीना, जिनकी अवामी लीग सरकार करीब 16 वर्षों तक सत्ता में रही, पिछले साल हिंसक छात्र आंदोलन के बाद 5 अगस्त 2024 को उन्हें प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देकर देश छोड़ने के लिए बाध्य होना पड़ा था. वर्तमान में शेख हसीना भारत में हैं, जबकि उनके कई सहयोगी, पूर्व मंत्री और अधिकारी या तो देश छोड़ चुके हैं या जेल में बंद हैं.

फेसबुक पोस्ट से विवाद, हसीना को फांसी देने की मांग की थी

न्यायाधिकरण ने टीटू की नियुक्ति के एक दिन बाद ही उन्हें हटा दिया. टीटू ने पत्रकारों से बातचीत में स्वीकार किया कि उन्होंने 5 अगस्त 2024 को, शेख हसीना के सत्ता से हटने से कुछ घंटे पहले, एक फेसबुक पोस्ट में उनके लिए फांसी की मांग की थी. हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि अगर उन्हें अपना कार्य जारी रखने की अनुमति दी जाती, तो वे इसे पेशेवर ढंग से निभाते.

अंतर्राष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण ने अब वकील आमिर हुसैन को शेख हसीना के लिए नया राज्य बचाव वकील नियुक्त किया है. साथ ही, हसीना सरकार में गृह मंत्री रहे असदुज्जमां खान कमाल को भी इसी मामले में राज्य द्वारा नियुक्त वकील दिया गया है.

शेख हसीना पर जुलाई-अगस्त 2024 के दौरान कथित रूप से मानवता के खिलाफ अपराध, सामूहिक हत्या और जबरन गायब किए जाने के आरोप हैं. इन्हीं आरोपों के तहत उनके खिलाफ ट्रायल शुरू किया गया है.

शेख हसीना पर चल रहा है मुकदमा

अंतर्राष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण की स्थापना 2010 में 1971 के बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के दौरान युद्ध अपराधों के लिए की गई थी. उस समय न्यायाधिकरण का उद्देश्य पाकिस्तानी सेना और उनके स्थानीय सहयोगियों के खिलाफ मुकदमा चलाना था. हालांकि, वर्तमान में यह ट्रिब्यूनल अब शेख हसीना और उनकी सरकार के अधिकारियों के खिलाफ नए मामलों की सुनवाई कर रहा है.

न्यायाधिकरण के इस फैसले ने बांग्लादेश की राजनीति में एक बार फिर हलचल पैदा कर दी है. विपक्षी दल जहां इसे “राजनीतिक प्रतिशोध” करार दे रहे हैं, वहीं वर्तमान प्रशासन इस कार्रवाई को “न्याय प्रक्रिया का हिस्सा” बता रहा है.

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