पटना. बिहार की राजनीति में राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के राष्ट्रीय अध्यक्ष के तौर पर लालू प्रसाद यादव की 13वीं बार निर्विरोध वापसी ने एक बार फिर सियासी गलियारों में चर्चा छेड़ दी है. RJD के राष्ट्रीय महासचिव अब्दुल बारी सिद्दीकी ने 22 जून 2025 को घोषणा की कि लालू ही पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने रहेंगे और सभी औपचारिकताएं पूरी हो चुकी हैं. 23 जून को लालू यादव ने नॉमिनेशन भी किया. इसको लेकर बीजेपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता अजय आलोक ने तंज कसते हुए कहा, पार्टी की कमांड अभी भी छोटे नवीं के सितारे को नहीं देना चाहते, क्योंकि डर है कि दारा शिकोह और औरंगजेब वाला किस्सा घर में न हो जाए. अजय आलोक का यह बयान तेजस्वी यादव को RJD की कमान न सौंपने और लालू के नेतृत्व में बने रहने की स्थिति पर सवाल उठाता है. क्या यह लालू की मजबूरी है, रणनीति का हिस्सा या परिवार और पार्टी में बगावत का डर? क्या तेजस्वी को कमान सौंपने में कोई और राजनीतिक कारण है? यह सवाल बिहार की सियासत में 2025 के विधानसभा चुनाव से पहले अहम हो गया है.
रणनीति का हिस्सा
मजबूरी का सवाल
परिवार में बगावत का डर?
अजय आलोक का “दारा शिकोह और औरंगजेब” वाला तंज लालू परिवार में आंतरिक कलह की ओर इशारा करता है. तेज प्रताप यादव को 25 मई 2025 को लालू ने पार्टी और परिवार से छह साल के लिए निष्कासित कर दिया था, जब तेज प्रताप ने अनुष्का यादव के साथ अपने रिश्ते की सार्वजनिक घोषणा की. इस घटना ने परिवार में तनाव को उजागर कर दिया. दरअसल, तेज प्रताप और तेजस्वी के बीच पहले भी मतभेद सामने आए हैं, और तेजस्वी को कमान सौंपने से तेज प्रताप के समर्थकों में असंतोष बढ़ सकता है. इसके अलावा लालू की बेटी मीसा भारती और पत्नी राबड़ी देवी भी पार्टी में सक्रिय हैं.
लालू परिवार की एकता पर सतर्क
बीजेपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता अजय आलोक के ट्वीट का स्क्रीन शॉट
आरजेडी में बगावत का खतरा
वरिष्ठ पत्रकार अशोक कुमार शर्मा कहते हैं कि RJD में लालू के अलावा अन्य वरिष्ठ नेताओं-जैसे अब्दुल बारी सिद्दीकी और जगदानंद सिंह-का प्रभाव रहा है. तेजस्वी को कमान सौंपने से इन नेताओं के बीच असंतोष पैदा हो सकता है. खासकर अगर उन्हें लगे कि युवा नेतृत्व उनकी अनदेखी कर रहा है. सिद्दीकी का बयान कि “लालू की लोकप्रियता बेजोड़ है” यह संकेत देता है कि पार्टी के पुराने नेता अभी तेजस्वी को पूर्ण नेतृत्व के लिए तैयार नहीं मानते.
महागठबंधन की एकता
RJD महागठबंधन का नेतृत्व करती है जिसमें कांग्रेस और वाम दल शामिल हैं. लालू का अनुभव गठबंधन को एकजुट रखने में मदद करता है. खासकर जब सीट-बंटवारे जैसे जटिल मुद्दों पर बातचीत हो तो तेजस्वी को कमान देने से गठबंधन में विश्वास की कमी हो सकती है, क्योंकि उनकी तुलना में लालू का कद बड़ा है.
NDA के हमले
बीजेपी और जदयू लगातार RJD पर “जंगलराज” और “वंशवाद” का आरोप लगाते हैं. लालू का नेतृत्व इन हमलों का जवाब देने में कारगर है क्योंकि उनकी छवि एक अनुभवी और जुझारू नेता की है. तेजस्वी को कमान देने से NDA को नया हमला बोलने का मौका मिलेगा.
2025 का चुनावी जोखिम
लालू के अनुभव को सियासी कमान
वरिष्ठ पत्रकार अशोक कुमार शर्मा कहते हैं कि लालू प्रसाद यादव का RJD की कमान अपने पास रखना मजबूरी और रणनीति , दोनों है. उनकी खराब सेहत और परिवार में तनाव मजबूरी हैं, लेकिन कोर वोट बैंक को एकजुट रखने, NDA के हमलों का जवाब देने और महागठबंधन को मजबूत करने की रणनीति भी साफ दिखती है. तेजस्वी को कमान सौंपने से परिवार और पार्टी में बगावत का खतरा है, खासकर तेज प्रताप और वरिष्ठ नेताओं के असंतोष के कारण. लालू शायद 2025 के चुनाव तक तेजस्वी को तैयार करना चाहते हैं, ताकि सत्ता में वापसी के बाद नेतृत्व हस्तांतरण सुगम हो. लेकिन यह रणनीति तब तक जोखिम भरी रहेगी, जब तक लालू की छवि और तेजस्वी की स्वीकार्यता के बीच संतुलन नहीं बनता.