पटना. ऑपरेशन सिंदूर के बाद उपजे राजनीतिक हालात के बीच आगामी अक्टूबर-नवंबर में बिहार में विधानसभा चुनाव संभावित है. राज्य की नई सरकार का चुनाव करने वाले इस इलेक्शन को देश की राजनीति के लिए बेहद महत्वपूर्ण माना जा रहा है. कहा जा रहा है कि इसका परिणाम न केवल प्रदेश की बल्कि देश की राजनीति को भी प्रभावित करेगा. बिहार चुनाव परिणाम से ये भी साफ होने की संभावना है कि देश की जनता का मूड ऑपरेशन सिंदूर के बाद क्या है. खास बात है कि बिहार की चुनावी लड़ाई एनडीए और इंडिया गठबंधन के बीच तो है ही, यहां नेतृत्व की भी बेहद अहम भमिका है. दरअसल, एक ओर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और सीएम नीतीश कुमार की जोड़ी होगी तो वहीं, दूसरी तरफ लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी और बिहार विधानसभा में नेता विपक्ष तेजस्वी यादव. राजद नेता तेजस्वी यादवबेहद सक्रिय हो चुके हैं, वहीं राहुल गांधी भी लगातार बिहार दौरे पर पहुंच रहे हैं. बिहार को वह कितनी गंभीरता से ले रहे हैं इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि बीते 5 महीनों में वह अब चौथी बार बिहार पहुंच रहे हैं. जानकार बताते हैं कि संभव है कि उनकी रणनीति बिहार की इस लड़ाई को राहुल बनाम मोदी करने की हो. वहीं, बड़ा तथ्य यह भी है कि राहुल के लिए तेजस्वी जरूरत बने हुए हैं.
दरअसल, ऑपरेशन सिंदूर पर पूरा विपक्ष सरकार के साथ खड़ा है, लेकिन कांग्रेस की तरफ से समय-समय पर ऑपरेशन सिंदूर पर तो नहीं, मगर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कुछ फैसलों पर सवाल खड़ा कर निशाना साधा जा रहा है. इस पर चर्चा के लिए संसद का विशेष सत्र बुलाने की मांग पूरा विपक्ष करने लगा है, जिसके बाद राजनीति गर्मा गई है. इस बीच बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर बिहार में राजनीतिक दलों की सक्रियता बढ़ गई है और प्रधानमंत्री के साथ-साथ राहुल गांधी का बिहार आना बढ़ गया है. एक बार फिर प्रधानमंत्री भोजपुर क्षेत्र में चुनावी सभा करने आ रहे हैं और उनका यह दौरा 15 से 30 मई के बीच किसी दिन प्रस्तावित है. वहीं, राहुल गांधी पांच महीने में चौथी बार बिहार पहुंच रहे हैं और इस बार पटना और दरभंगा में कई कार्यक्रमों में शामिल होंगे. एक तरफ प्रधानमंत्री के दौरे पर पूरा एनडीए एकजुट दिखेगा तो वहीं राहुल गांधी पूरी तरह से कांग्रेस के कार्यक्रम में ही शामिल होंगे, जिसे लेकर सवाल खड़े हो रहे हैं.
फुले फिल्म देखकर साधेंगे दलित राजनीति
राहुल गांधी के दौरे में जो सबसे महत्वपूर्ण बात बतायी जा रही है वो है उनके कार्यक्रम में ‘फूले’ फिल्म को उनके दलित समाज के साथ-साथ कुछ प्रबुद्ध लोगों के साथ ये सिनेमा देखना होगा. राहुल गांधी का 15 मई को सिनेमा हॉल में राहुल गांधी दलित वर्ग के लोगों और सिविल सोसायटी के साथ फिल्म देखेंगे. फिर पटना के बाद दरभंगा के कार्यक्रम में शामिल होंगे. कांग्रेस की तरफ से 15 मई को 50 से ज्यादा नेताओं का एकसाथ बिहार में दौरा होगा और 50 से ज्यादा नेता एकसाथ बिहार में 50 से ज्यादा जगहों पर कार्यक्रम करेंगे. राहुल गांधी दरभंगा के कार्यक्रम मे जुड़कर लोगों को संदेश देंगे.
आरजेडी पर दबाव बढ़ाना भी एक वजह ?
बिहार के वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक संजय कुमार इस पूरी कवायद को लेकर कहते हैं कि राहुल गांधी के इस आयोजन से साफ है कि वह कांग्रेस के पुराने परंपरागत वोटर दलित- मुस्लिम और सवर्ण को साधने की कोशिश में जुट गए हैं. उनकी कोशिश है कि आने वाले समय में एनडीए से लड़ाई सामने-सामने की हो जाए, ताकि इसका फायदा कांग्रेस को मिल सके. हालांकि, संजय कुमार राहुल गांधी की बिहार को लेकर सक्रियता पर यह भी कहते हैं कि इसकी एक और वजह टिकट की हिस्सेदारी को लेकर आरजेडी पर दबाव बढ़ाना भी है. चर्चा है कि कांग्रेस जितनी सीट मांग रहा है उतनी सीट आरजेडी शायद ना दे, जिससे राहुल गांधी के तेवर थोड़े तीखे हैं.
राहुल गांधी की लीडरशिप में कांग्रेस का लंबा प्लान!
सूत्रों से जो जानकारी सामने आई है इसके अनुसार, कांग्रेस पिछली बार की तरह 70 सीटों पर चुनाव लड़ना चाहती है, लेकिन राजद कांग्रेस को 50 से 60 सीटों के बीच समेटना चाहती है. इस खींचतान के बीच संजय कुमार ये भी कहते हैं कि राहुल गांधी की नजर अब आने वाले लोकसभा चुनाव पर भी है जिसे लेकर उनकी नजर हिंदी बेल्ट पर टिक गई है. दबी जुबान पर कई कांग्रेसी कहते हैं कि अगर सम्माजनक सीट बिहार में ना मिला तो क्या कांग्रेस सारी सीटों पर चुनाव भी लड़ सकती है. इसके पक्ष में उनका तर्क यह है कि इसका फायदा ये होगा कि बिहार में कांग्रेस अपने पैर पर खड़े होना तो सीख जाएगी और देर सवेर इसका फायदा कांग्रेस को ही मिलेगा. क्योंकि, बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों को जीते बिना केंद्र में मजबूत नहीं हो सकते हैं.
ऑपरेशन संदूर के बाद सियासी अंजाम पर नजर!
हालांकि, राजनीति के जानकार कहते हैं कि कांग्रेस और राहुल गांधी के लिए ये इतना आसान नहीं होगा, क्योंकि बिहार में जातीय राजनीति के सहारे राजनीति कर रही रीजनल पार्टियां मजबूत हैं. खासकर आरजेडी माय समीकरण के साथ-साथ दलित वोटरों में भी पैठ रखता है, जिसे पार पाना कांग्रेस के लिए आसान नहीं होगा. लेकिन, राहुल गांधी लगातार अपनी कोशिश में लगे हुए हैं और उनके कार्यक्रम में महागठबंधन के दूसरे सहयोगी नजर नहीं आते हैं. वहीं, एनडीए डबल इंजन की सरकार के साथ साथ ऑपरेशन सिंदूर को लेकर खासा उत्साहित है और एनडीए को उम्मीद है कि मोदी-नीतीश की जोड़ी एनडीए का परचम विधानसभा चुनाव में लहराएगी.