होम राजनीति तो राघोपुर के रण में होगी बिहार की सबसे बड़ी लड़ाई! पीके बनाम तेजस्वी की सियासी जंग से बदल जाएगा चुनावी रंग

तो राघोपुर के रण में होगी बिहार की सबसे बड़ी लड़ाई! पीके बनाम तेजस्वी की सियासी जंग से बदल जाएगा चुनावी रंग

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पटना. बिहार की राजनीति में तब से हलचल मची हुई है जब से जन सुराज पार्टी के संस्थापक प्रशांत किशोर ने अपनी नई राजनीतिक योजना का खुलासा किया है. प्रशांत किशोर ने कहा कि वो बिहार में आगामी विधानसभा चुनाव या तो करगहर या राघोपुर से लड़ेंगे. पीके के इस दांव से एक साथ कई सियासत साधने की नीति हो सकती है. बता दें कि राघोपुर से राजद नेता तेजस्वी यादव दो बार जीते हैं और इस बार भी वहां से वह फिर किस्मत आजमा सकते हैं. ऐसे में प्रशांत किशोर की यह चुनौती तेजस्वी यादव के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकती है. इतना ही नहीं राघोपुर के जातिगत समीकरण और प्रशांत किशोर की रणनीति बिहार के चुनावी नैरेटिव को बदल सकती है. बिहार की राजनीति के जानकार भी मानते हैं कि अगर यह सियासी जंग हुई तो बिहार की राजनीति में नया मोड़ भी ला सकती है.

प्रशांत किशोर का सियासी दांव

राघोपुर वैशाली जिले में है और हाजीपुर लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा है. लोकसभा सीट का प्रतिनिधित्व वर्तमान में केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान करते हैं और राघोपुर विधानसभा से अभी तेजस्वी यादव विधायक हैं. आरजेडी के नेता तेजस्वी यादव इस सीट से लगातार दो बार चुनाव जीत चुके हैं. वर्ष 2015 और 2020 में उन्होंने राघोपुर विधानसभा सीट से जीत प्राप्त की है. इससे पहले यहां से उनके पिता और आरजेडी अध्यक्ष लालू यादव चुनाव लड़ चुके हैं. अब प्रशांत किशोर ने यह ऐलान करके कि वो राघोपुर से भी चुनाव लड़ सकते हैं, आरजेडी की रणनीतिकारों की टेंशन बढ़ा दी है. बता दें कि यह सीट आरजेडी का गढ़ जरूर है, लेकिन वर्ष 2010 में इसी राघोपुर सीट से जेडीयू उम्मीदवार सतीश कुमार राबड़ी देवी हो हरा चुके हैं.

होगी जबरदस्त राजनीतिक टक्कर!

राघोपुर से एक बार फिर चुनावी लड़ाई की तैयारी कर रहे तेजस्वी यादव के सामने चुनावी मैदान में प्रशांत किशोर के आने की सुगबुगाहट भर से आरजेडी खेमे की टेंशन बढ़ गई है. इसके पीछे की सियासी वजह यह है कि लालू परिवार और आरजेडी का मजबूत किला होने के बावजूद बीते चार चुनावों में यहां मुकाबला कड़ा रहा है और जीत का अंतर कभी ज्यादा नहीं रहा. इसका मतलब यह है कि अगर कोई अच्छा राजनीतिक और सामाजिक कनेक्शन बनाए तो यहां तेजस्वी यादव के लिए चुनौतीपूर्ण स्थिति प्रस्तुत हो सकती है. दअसल, राघोपुर में यादव-मुस्लिम वोटर हावी हैं, लेकिन पीके की दावेदारी से आरजेडी को कड़ी चुनौती मिल सकती है, क्योंकि राजपूत और ईबीसी वोटर भी निर्णायक फैक्टर हैं. राघोपुर में जीत-हार का इतिहास बताता है कि गैर-यादव वोट बंटवारे से बाजी पलट सकती है.

राघोपुर का जातिगत समीकरण

राघोपुर के सामाजिक समीकरण को समझें तो यहां यादव वोटरों की संख्या सबसे ज्यादा है और यह राजद का कोर वोट बैंक है. इसके अतिरिक्त, मुस्लिम, राजपूत और अत्यंत पिछड़ा वर्ग (EBC) के मतदाता भी इस सीट पर प्रभावशाली हैं. जातिगत समीकरण के आधार पर यादव और मुस्लिम वोटर लगभग 40% हैं जो तेजस्वी यादव की जीत के आधार को मजबूती देते हैं. हालांकि, 15-20% राजपूत और 25% ईबीसी मतदाता मिलकर राजद के समीकरण को चुनौती देने का माद्दा रखते हैं. प्रशांत किशोर ब्राह्मण समुदाय से हैं ऐसे में राजपूत और अति पिछड़े वोटरों को लुभाने की कोशिश कर सकते हैं. वर्ष 2010 में नीतीश कुमार की जेडीयू के सतीश कुमार ने राबड़ी देवी को हराकर दिखाया था कि यादव बहुल सीट पर गैर-यादव वोटरों का गठजोड़ राजद को चुनौती दे सकता है.

पिछले चुनावों में जीत-हार का अंतर

यहां राघोपुर में पिछले चार विधानसभा चुनाव परिणामों पर भी गौर करना आवश्यक हो जाता है. वर्ष 2005, 2010, 2015, 2020 में राघोपुर में जीत-हार का अंतर अलग-अलग रहा है. 2005 में लालू यादव ने जदयू के सतीश कुमार को 22,000 वोटों से हराया था. वहीं, 2010 में सतीश कुमार ने राबड़ी देवी को 12,000 वोटों से हराकर राजद के गढ़ में ही करारा झटका दिया था. इसके बाद वर्ष 2015 में तेजस्वी ने भारतीय जनता पार्टी के सतीश राय को 22,733 वोटों से तब हराया था जब राजद और जदयू का गठजोड़ था. जबकि वर्ष 2020 विधानसभा चुनाव में तेजस्वी यादव ने भाजपा के सतीश कुमार को 38,174 वोटों से शिकस्त दी थी. इन आंकड़ों से पता चलता है कि यादव-मुस्लिम गठजोड़ RJD को मजबूत करता है, लेकिन गैर-यादव वोटों का ध्रुवीकरण खेल बिगाड़ सकता है.

PK की रणनीति और सियासी प्रभाव

स्पष्ट है कि राघोपुर में यादव समुदाय की प्रमुखता है, लेकिन साथ ही अन्य जातियों का भी महत्वपूर्ण प्रभाव है. चुनावी रणनीति के लिए अन्य वर्गों के वोट बैंकों को साधना भी जरूरी होता है. तेजस्वी यादव को हमेशा यादव वोट बैंक का भरोसा रहा है, लेकिन प्रशांत किशोर की रणनीतिक समझ के साथ इस क्षेत्र के गैर यादव वोटर भी प्रभावित हो सकते हैं. प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी बिहार में तीसरे विकल्प के रूप में उभरने की कोशिश कर रही है. प्रशांत किशोर की जन-सुराज पार्टी की नीतियां और विकासवादी एजेंडा उन्हें युवा और गैर परंपरागत वोटरों के बीच लोकप्रिय बना रहा है. इसी बीच प्रशांत किशोर की यह राजनीतिक योजना कि वे राघोपुर से विधानसभा चुनाव लड़ सकते हैं, सीधे तौर पर तेजस्वी यादव की नींद उड़ा देने वाला कदम माना जा रहा है. राजनीति के जानकार कहते हैं कि अगर वह चुनावी मैदान में आते हैं तो इससे राघोपुर का चुनावी समीकरण संतुलित और अप्रत्याशित हो सकता है.

बिहार के चुनावी नैरेटिव पर असर

राजनीति के जानकार कहते हैं कि प्रशांत किशोर की राघोपुर एंट्री बिहार की राजनीति में बड़े बदलाव का संकेत है. पीके अगर राघोपुर से लड़ते हैं तो यह चुनाव सिर्फ जाति आधारित नहीं रहेगा, बल्कि विकास और युवाओं के मुद्दे जैसे विषय भी प्रमुख विमर्श में होंगे. बिहार की राजनीति लंबे समय से जातिगत समीकरणों के इर्द-गिर्द घूमती रही है, लेकिन प्रशांत किशोर जैसे रणनीतिकार की राघोपुर में सियासी एंट्री इस परिदृश्य को और व्यापक बना सकती है.यहां से चुनाव लड़ने से प्रशांत किशोर को बिहार की राजनीति में नई पहचान मिलेगी और तेजस्वी यादव के खिलाफ चुनौती को और मजबूत बनाएगी. इससे अन्य पार्टियों और गठबंधनों की रणनीतियों में भी बदलाव आ सकता है. दरअसल, राघोपुर विधानसभा सीट हमेशा से बिहार की राजनीति में अहम रही है. राजनीतिक जानकार मानते हैं कि यदि प्रशांत किशोर यहां से चुनाव लड़ते हैं तो यह मुकाबला बिहार में नई राजनीतिक लड़ाई की शुरुआत होगी.

तेजस्वी के लिए कितनी बड़ी चुनौती?

दरअसल, तेजस्वी यादव महागठबंधन की ओर से सीएम का चेहरा कहे जाते हैं, वहीं, प्रशांत किशोर बिहार में तीसरे विकल्प के रूप में स्थापित होने की कोशिश में हैं. उनकी रणनीति जातिगत समीकरणों को तोड़कर विकास और रोजगार पर आधारित वोटबैंक बनाने की है. हालांकि, बिहार में जाति की गहरी जड़ें और राजद का मजबूत संगठन पीके के लिए बड़ी चुनौती हैं. अगर वह करगहर से लड़ते हैं तो स्थानीय कनेक्शन उनकी ताकत होगा, लेकिन राघोपुर में तेजस्वी के खिलाफ जीत आसान नहीं होगी. बावजूद इसके तेजस्वी और पीके की यह सियासी जंग बिहार के सियासी भविष्य को नया आकार दे सकती है. राघोपुर में प्रशांत किशोर बनाम तेजस्वी की जंग बिहार के चुनावी नैरेटिव को बदल सकती है. तेजस्वी यादव के लिए यह अपनी पार्टी के लिए और खुद के लिए भी बड़ी परीक्षा होगी.

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