होम विदेश ये जीत का मैसेज है…ट्रंप ने क्यों बदला रक्षा विभाग का नाम? डिपार्टमेंट ऑफ वॉर रखने का जानिए मकसद

ये जीत का मैसेज है…ट्रंप ने क्यों बदला रक्षा विभाग का नाम? डिपार्टमेंट ऑफ वॉर रखने का जानिए मकसद

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डोनाल्ड ट्रंप

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने रक्षा विभाग (डिपार्टमेंट ऑफ डिफेंस) का नाम बदलकर युद्ध विभाग (डिपार्टमेंट ऑफ वॉर) रखने के आदेश पर शुक्रवार को दस्तखत किए. ट्रंप ने ओवल ऑफिस में रीब्रांडिंग की जानकारी दी. उन्होंने कहा, ‘मुझे लगता है कि नया नाम जीत का संदेश देता है. दुनिया की मौजूदा स्थिति को देखते हुए यह नाम कहीं ज्यादा सही है.’

ट्रंप कांग्रेस की मंजूरी के बिना पेंटागन का नाम औपचारिक तौर पर नहीं बदल सकते. हालांकि उनके आदेश में युद्ध विभाग को वैकल्पिक नाम के तौर पर इस्तेमाल करने की अनुमति दी गई है. अमेरिका में डिपार्टमेंट ऑफ वॉर नाम का इस्तेमाल 150 से ज्यादा साल तक हो चुका है.

द्वितीय विश्व युद्ध तक युद्ध विभाग था

1789 में ब्रिटिशों से स्वतंत्रता मिलने के बाद से लेकर द्वितीय विश्व युद्ध तक अमेरिका में युद्ध विभाग था. तत्कालीन राष्ट्रपति जॉर्ज वाशिंगटन के दस्तखत के बाद युद्ध विभाग अस्तित्व में आया था. पेंटागन के ऑफशियल डेटा के मुताबिक, युद्ध विभाग अमेरिकी सेना, नौसेना और मरीन कॉर्प्स की देखरेख करता था. हालांकि एक दशक बाद नौसेना और मरीन अलग हो गए.

फिलहाल रक्षा विभाग में सेना, नौसेना, मरीन कोर, वायु सेना और स्पेश फोर्स शामिल हैं. इनमें से सभी का इतिहास युद्ध विभाग से अलग है. युद्ध विभाग सिर्फ सेना की देखरेख करता था, जबकि नौसेना के लिए भी एक अलग विभाग बना.

पूर्व राष्ट्रपति हैरी ट्रूमैन ने नाम बदला था

विभागों के इस बंटवारे को पूर्व राष्ट्रपति हैरी ट्रूमैन और अन्य सैन्य नेताओं ने एक रुकावट के तौर पर देखा. उन्हें लगा कि इसने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान अमेरिकी अभियानों में बाधा डाली. ट्रूमैन ने तर्क दिया कि 1941 में पर्ल हार्बर पर बमबारी को रोकने में विफलता में भी इसी का हाथ था.

साल 1947 में राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम पेश किया गया. इसके तहत सेना, नौसेना और वायु सेना को एक विभाग और एक कैबिनेट सचिव के अधीन कर दिया गया. उस समय इसे नेशनल मिलिट्री एस्टेब्लिशमेंट कहा जाता था, लेकिन जल्द ही इसका नाम बदलकर डिपार्टमेंट ऑफ वॉर कर दिया गया.

भविष्य के युद्ध को रोकने के लिए रक्षा विभाग बना

वर्जीनिया यूनिवर्सिटी की इतिहासकार मेल्विन लेफलर कहती हैं, सेना, नौसेना और वायु सेना के बीच वित्तीय संसाधनों के बंटवारे को लेकर नौकरशाही विवाद थे. ट्रूमैन और उनके राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों का मानना था कि नेशनल सिक्योरिटी और वॉर प्लान की तैयारी को एक साथ करना जरूरी है.

लेफलर के मुताबिक युद्ध की जगह रक्षा शब्द का चुनाव सोच-समझकर किया गया था, क्योंकि यह ऐसे समय में आया जब अमेरिका-सोवियत कोल्ड वॉर शुरू हो रहा था. दोनों पक्षों के पास परमाणु हथियार थे, इसलिए दांव काफी ऊंचे थे. राष्ट्रपति ट्रूमैन और उनके सलाहकारों का मुख्य फोकस युद्ध छेड़ने के बजाय भविष्य के युद्धों को रोकना था.

ट्रंप रीब्रांडिंग क्यों कर रहे

ट्रंप ने अमेरिका की पहली और दूसरे विश्वयुद्ध की जीत के बाद सैन्य असफलताओं को लेकर टिप्पणी की. उन्होंने कहा कि इन असफलताओं की वजह रक्षा विभाग का नाम था. ट्रंप ने कहा, हम हर युद्ध जीत सकते थे, लेकिन हमने राजनीतिक रूप से सही या जागरूक रहना चुना.

ट्रंप इस रीब्रांडिंग के जरिए अपने दूसरे कार्यकाल में दुनियाभर मे अपनी शक्ति का प्रदर्शन करने कर रहे हैं. उनका यह फैसला मेक अमेरिका ग्रेट अगेन” पॉलिसी का हिस्सा है. ट्रंप की शिकायत थी कि मौजूदा नाम बहुत डिफेंसिव है. उन्होंने कहा था, मैं सिर्फ रक्षा नहीं करना चाहता, मैं रक्षा चाहता हूँ, लेकिन आक्रामक भी बनना चाहता हूं.

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