होम देश SC raps Allahabad HC for cyclostyled orders on bail cancellation pleas इलाहाबाद हाई कोर्ट के आदेश पर सुप्रीम कोर्ट नाराज, किस फैसले के ऊपर भड़का, India News in Hindi

SC raps Allahabad HC for cyclostyled orders on bail cancellation pleas इलाहाबाद हाई कोर्ट के आदेश पर सुप्रीम कोर्ट नाराज, किस फैसले के ऊपर भड़का, India News in Hindi

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सुप्रीम कोर्ट ने एक कड़े आदेश में इलाहाबाद हाई कोर्ट को फटकार लगाई है। मामला पिछले दो साल से जमानत रद्द करने के लिए 40 याचिकाओं में पूर्व निर्धारित आदेश (साइक्लोस्टाइल्ड टेम्पलेट ऑर्डर) पारित होने का है।

सुप्रीम कोर्ट ने एक कड़े आदेश में इलाहाबाद हाई कोर्ट को फटकार लगाई है। मामला पिछले दो साल से जमानत रद्द करने के लिए 40 याचिकाओं में पूर्व निर्धारित आदेश (साइक्लोस्टाइल्ड टेम्पलेट ऑर्डर) पारित होने का है। इसमें शिकायतकर्ताओं को गवाह संरक्षण योजना, 2018 के तहत उपाय तलाशने के लिए कहा गया है। जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस संदीप मेहता की बेंच ने कहा कि हमें इलाहाबाद हाई कोर्ट के कई आदेश मिले हैं, जो कानून की गलत धारणा पर आधारित हैं। खासकर यह कि गवाह संरक्षण योजना जमानत रद्द करने का एक विकल्प है। हाई कोर्ट के अनुसार, यह एक वैकल्पिक उपाय है।

बेंच ने कहा कि हमें यह जानकर दुख हो रहा है कि इलाहाबाद हाई कोर्ट की आधिकारिक वेबसाइट पर उपलब्ध रिकॉर्ड के अनुसार, हमें कम से कम 40 हाल के आदेश मिले हैं, जो पिछले एक साल में ही पारित किए गए हैं। दिलचस्प बात यह है कि जस्टिस पारदीवाला के नेतृत्व वाली बेंच ने ही इलाहाबाद हाई कोर्ट के न्यायाधीश प्रशांत कुमार की एक दीवानी विवाद मामले में आपराधिक कार्यवाही की अनुमति देने के लिए आलोचना की थी तथा रिटायरमेंट तक उनसे आपराधिक मामलों को वापस ले लिया गया था। इस विवादास्पद आदेश को बाद में प्रधान न्यायाधीश बी आर गवई के आदेश पर संशोधित किया गया था।

इस मामले में, जस्टिस पारदीवाला ने कड़े शब्दों में फैसला सुनाया और हाई कोर्ट के उस आदेश को खारिज कर दिया, जिसमें हत्या के मुकदमे का सामना कर रहे एक आरोपी की जमानत रद्द करने से इनकार कर दिया गया था। इसके बजाय शिकायतकर्ता को गवाह संरक्षण योजना के तहत सहायता लेने के लिए कहा गया था। मूल शिकायतकर्ता फिरेराम ने आरोपी की जमानत रद्द करने का अनुरोध किया। इसके मुताबिक आरोपी ने हत्या के एक मामले के गवाहों को धमकी देकर जमानत की शर्तों का उल्लंघन किया है। हाई कोर्ट ने जमानत रद्द करने से इनकार कर दिया और इसके बजाय शिकायतकर्ता को गवाह संरक्षण योजना के तहत आवेदन करने का निर्देश दिया।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम इस तथ्य पर गौर करते हैं कि हाई कोर्ट ने एक बहुत ही अजीब आदेश पारित किया है। हाई कोर्ट का कहना है कि अपीलकर्ता के मामले में पीड़ित व्यक्ति के रूप में मूल प्रथम सूचनाकर्ता होने के नाते उपाय गवाह संरक्षण योजना के तहत है। दूसरे शब्दों में, इस आदेश को पढ़कर हम यही समझ पाए हैं कि हाई कोर्ट चाहता है कि अपीलकर्ता इस योजना के प्रावधानों का लाभ उठाए। ऐसा कहते हुए, हाई कोर्ट ने जमानत रद्द करने से इनकार कर दिया। बेंच ने कहा कि हाई कोर्ट को ‘कानून के सुस्थापित सिद्धांतों को लागू करते हुए’ गुण-दोष के आधार पर जमानत रद्द करने की याचिका पर निर्णय लेना चाहिए था।

शीर्ष अदालत ने आरोपी को जमानत देने संबंधी हाई कोर्ट के पिछले आदेश का हवाला दिया। साथ ही कहा कि हाई कोर्ट ने स्वयं कहा था कि किसी भी शर्त के उल्लंघन की स्थिति में, निचली अदालत आरोपी की जमानत रद्द करने के लिए स्वतंत्र होगी। बेंच ने कहा कि जब यह जमानत आदेश की शर्तों के उल्लंघन का स्पष्ट मामला हो और जब मूल प्रथम सूचनाकर्ता प्रथमदृष्टया यह प्रदर्शित करने में सक्षम हो कि आरोपी व्यक्ति किस प्रकार उसे दी गई छूट का दुरुपयोग कर रहा है, तो ऐसी परिस्थितियों में गवाह संरक्षण योजना के प्रावधानों की शायद ही कोई भूमिका रह जाती है।

हाई कोर्ट की प्रचलित प्रथा की कड़ी आलोचना करते हुए, बेंच ने कहा कि आदेश एक-दूसरे की हूबहू नकल हैं। हमें यह जानकर निराशा हुई है कि पूर्व निर्धारित (साइक्लोस्टाइल्ड टेम्पलेट) आदेश पारित करने की उपरोक्त प्रथा पिछले दो वर्षों से भी अधिक समय से प्रचलन में है। इसके परिणामस्वरूप, आदेश को रद्द कर दिया गया और हाई कोर्ट को निर्देश दिया गया कि वह चार सप्ताह में जमानत रद्द करने की याचिका पर पुनः सुनवाई करे, तथा धमकी के संबंध में दर्ज दो प्राथमिकी पर जांच अधिकारी से रिपोर्ट मांगे। बेंच ने रजिस्ट्री को प्रत्येक आदेश की एक प्रति सभी उच्च न्यायालयों को प्रसारित करने का निर्देश दिया।

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