फिल्म द बंगाल फाइल्स की कहानी कलकत्ता हत्याकांड और नोआखली दंगों पर आधारित है.
विवेक अग्निहोत्री की फिल्म द बंगाल फाइल्स की देश में इन दिनों खूब चर्चा हो रही है. पांच सितंबर को यह फिल्म भारत के दर्शकों के लिए रिलीज हो रही है लेकिन विदेशों में इसके प्रसारण पर कई जगह रोक लग गया है. विवेक ने इससे पहले द कश्मीर फाइल्स और द ताशकंद फाइल्स भी बनाई थी. क्या आप जानते हैं कि फिल्म का ताना-बाना किस असली घटना के इर्द-गिर्द बुना गया है?
भारत के स्वतंत्रता संघर्ष के अंतिम सालों में देश की राजनीति एक खास मोड़ से गुज़री. एक ओर अंग्रेजी शासन की पकड़ कमजोर हो रही थी तो दूसरी ओर स्वतंत्र भारत का स्वरूप कैसा होगा, इसे लेकर हिंदू-मुस्लिम राजनीति में गहरा विभाजन सामने आने लगा था.
इसी पृष्ठभूमि में 1946 के कलकत्ता हत्याकांड (Great Calcutta Killing) और इसके बाद नोआखली दंगों की वीभत्स घटनाएं घटीं. इन्हीं दोनों घटनाओं पर फिल्म द बंगाल फाइल्स का आधार टिका हुआ है. ये घटनाएं केवल बंगाल ही नहीं, बल्कि पूरे भारत के विभाजन और सांप्रदायिक राजनीति के लिए निर्णायक मोड़ साबित हुईं.
ग्रेट कलकत्ता किलिंग की कहानी
1940 के दशक तक आते-आते मुस्लिम लीग ने दो-राष्ट्र सिद्धांत को खुलकर समर्थन देना शुरू कर दिया था. मोहम्मद अली जिन्ना के नेतृत्व में पाकिस्तान की मांग तेज हो चली थी. दूसरी ओर कांग्रेस स्वतंत्र भारत को एक धर्मनिरपेक्ष, एकीकृत राष्ट्र के रूप में देखना चाहती थी. 1940 का लाहौर प्रस्ताव मुस्लिम लीग की इस नीति का आधार बना. बंगाल में, जहां हिंदू और मुस्लिम आबादी में भारी असंतुलन था, यह राजनीति और अधिक तीखी हो गई.
इतिहासकार बिपन चंद्र ने अपनी पुस्तक “Indias Struggle for Independence” में लिखा है कि बंगाल उस समय सांप्रदायिक तनाव का केंद्र-बिंदु बन गया था. यहां शासन भी एक मुस्लिम लीग सरकार के हाथ में था, जिसके मुख्यमंत्री सुहरावर्दी (Huseyn Shaheed Suhrawardy) थे.

कलकत्ता की गलियों में फैली लाशें और नोआखली में उजड़े गांव इसकी कहानी बयां करते हैं. फोटो: Getty Images
क्या था डायरेक्ट एक्शन डे?
16 अगस्त 1946 को मुस्लिम लीग ने डायरेक्ट एक्शन डे का आह्वान किया. इसका उद्देश्य ब्रिटिशर्स और कांग्रेस पर दबाव बनाकर पाकिस्तान की मांग को स्पष्ट और निर्णायक रूप से सामने रखना था. उस दिन कोलकाता (तब का कलकत्ता) में मुस्लिम लीग की एक बड़ी रैली बुलाई गई. सरकारी प्रशासन ने इस रैली को रोकने के लिए ठोस कदम नहीं उठाए. नतीजा यह हुआ कि कलकत्ता में व्यापक हिंसा भड़क गई. ग्रेट कलकत्ता किलिंग (Great Calcutta Killing) नाम से पहचानी जाने वाली इस घटना में चार दिन तक हिंदू-मुस्लिम दंगे जारी रहे.
हिंसा इतनी तीव्र थी कि आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार लगभग पांच हजार से अधिक लोग मारे गए, जबकि 15 हजार से अधिक घायल हुए. इस घटना में लगभग एक लाख लोग बेघर हो गए. इतिहासकार सुगाता बोस की किताब Modern South Asia: History, Culture, Political Economy के अनुसार, यह हत्या-कांड ब्रिटिश सरकार की Divide and Rule नीति और स्थानीय सरकार की पक्षपातपूर्ण भूमिका का परिणाम था.

महात्मा गांधी ने उस हिस्से का दौरा किया था जहां हजारों हिन्दुओं का कत्लेआम हुआ था. फोटो: Getty Images
नोआखली दंगे
कलकत्ता हत्याकांड के दो महीने बाद हिंसा की आग बंगाल के नोआखली ज़िले (आज बांग्लादेश में) में भड़क उठी. अक्टूबर 1946 में यहां हिंदुओं पर बड़े पैमाने पर हमले हुए. घर जलाए गए, धार्मिक स्थलों को नुकसान पहुंचाया गया और बड़ी संख्या में हिंदुओं को धर्म परिवर्तन के लिए बाध्य किया गया.
सरकारी रिकॉर्ड्स के मुताबिक, हजारों हिंदुओं की हत्या हुई और लाखों विस्थापित हो गए. महात्मा गांधी ने व्यक्तिगत पहल कर इस क्षेत्र का दौरा किया और वहां अहिंसा और शांति का संदेश फैलाने की कोशिश की. नोआखली दंगे स्वतंत्रता से ठीक पहले हिंदू समाज के मन में गहरी असुरक्षा और पीड़ा छोड़ गए.
दंगों का क्या हुआ असर?
इन घटनाओं का महत्व केवल तत्कालीन सांप्रदायिक तनाव तक सीमित नहीं रहा, बल्कि इन्होंने भारत के भविष्य की दिशा तय करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की.
- विभाजन की ओर निर्णायक कदम: कलकत्ता और नोआखली की हिंसा ने यह स्पष्ट कर दिया कि हिंदू और मुसलमानों के लिए साथ रहना कठिन हो रहा है. पाकिस्तान की मांग को और वैधता मिल गई.
- राजनीतिक समझौतों की पृष्ठभूमि: इन घटनाओं ने कांग्रेस को भी यह मानने के लिए मजबूर किया कि विभाजन टालना लगभग असंभव है.
- सामाजिक असर: लाखों लोगों का विस्थापन हुआ. बंगाल का साम्प्रदायिक ताना-बाना बुरी तरह बिखर गया.

महात्मा गांधी ने किया घटनास्थल था दौरा. फोटो: Getty Images
गलियों में लाशें, उजड़े गांव
बिपन चंद्र अपनी किताब Indias Struggle for Independence में इस हत्याकांड को ब्रिटिशlर्स और मुस्लिम लीग की साझा असफलता मानते हैं. सुगाता बोस ने अपनी किताब Modern South Asia में स्पष्ट दर्ज किया है कि वे इसे ब्रिटिश उपनिवेशवाद की नीतियों का अनिवार्य परिणाम
बताते हैं. ब्रिटिश-भारतीय दस्तावेज़ों में भी यह स्वीकार किया गया है कि प्रशासन इन दोनों वीभत्स वारदातों को रोकने में पूरी तरह से असफल रहा. इस तरह हम कह सकते हैं कि 1946 का कलकत्ता हत्याकांड और नोआखली दंगे भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के बेहद दुखद अध्याय हैं.
कलकत्ता की गलियों में फैली लाशें और नोआखली में उजड़े गांव केवल सांप्रदायिक हिंसा का किस्सा नहीं थे, बल्कि भारत के विभाजन की प्रस्तावना भी थे. इन घटनाओं ने यह सिखाया कि धार्मिक आधार पर राजनीति और सत्ता संघर्ष समाज को किस कदर तोड़ सकता है.
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