कई इतिहासकार मानते हैं कि औरंगज़ेब को सबसे शिक्षित मुगल बादशाह कहा जा सकता है.
भारत के मध्यकालीन इतिहास में मुगल साम्राज्य का अध्याय न केवल राजनीतिक और सांस्कृतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है बल्कि शिक्षा, ज्ञान एवं साहित्यिक परंपरा के लिए भी उतना ही अहम माना जाता है. अक्सर प्रश्न उठता है कि क्या मुगल शहजादे यूरोप या अन्य देशों में पढ़ने जाते थे और इनमें सबसे अधिक पढ़ा-लिखा शासक कौन था?
इनमें से कई सवालों का सीधा जवाब इतिहास में दर्ज नहीं है लेकिन जितनी भी किताबें उपलब्ध हैं, वे इतना जरूर बताती हैं कि मुगल शासक शिक्षा के महत्व को समझते थे. उनकी साहित्यिक समझ बहुत मजबूत थी. इसीलिए जहां एक ओर मुगल शासक शहजादों की शिक्षा का समुचित प्रबंध दुनिया भर के विद्वानों के जरिए करते थे तो अपने दरबार में भी गुणी जन को भजपूर जगह और सम्मान देते थे.
मुगल दरबार और संस्कृति के लेखक अली एम अजीज, मुगल भारत: संरचना और कृषि के लेखक इरफान हबीब, किताब औरंगजेब के लेखक जेएन सरकार और द मुगल एम्परर ऑफ इंडिया के लेखक एबी पोट्टर इस मामले में एकमत हैं. आइए, इसे विस्तार से समझते हैं.
मुगल काल में शिक्षा की परंपरा
मुगल साम्राज्य के संस्थापक बाबर (1526 ई.) और उनके उत्तराधिकारियों ने शिक्षा को शक्ति और वैचारिक विकास का आधार माना. हालांकि आधुनिक दृष्टि से देखा जाए तो उस समय विदेश में पढ़ाई का अर्थ वैसा नहीं था जैसा आज है. शहजादे आम तौर पर राज्य से बाहर जाकर शिक्षा प्राप्त नहीं करते थे, बल्कि दरबार में ही श्रेष्ठ विद्वानों, उलेमाओं और शिक्षकों से शिक्षा ग्रहण करते थे. उनके लिए एक खास मदरसा-ए-खास यानी निजी विद्यालय जैसी व्यवस्था की जाती थी, जहां अरबी, फ़ारसी, तुर्की, कुरआन, हदीस, इतिहास, गणित, खगोल व दर्शन तक का अध्ययन कराया जाता था.

बाबर ने हिन्दुस्तान में मुगल साम्राज्य की नींव रखी थीं.
क्या मुगल शहजादे विदेश में पढ़ने जाते थे?
यूरोपीय राजकुमारों की तरह मुगल शहजादों को विदेश जाकर शिक्षा प्राप्त करने की आवश्यकता नहीं थी. इसके कुछ प्रमुख कारण ये रहे.
- मुगल साम्राज्य का विशाल दायरा: साम्राज्य इतना बड़ा और संपन्न था कि विद्वानों का जमावड़ा खुद दिल्ली, आगरा, लाहौर और फ़तेहपुर सीकरी में हो चुका था. फारसी ज्ञान और मध्य एशियाई विद्वान नियमित रूप से दरबार का हिस्सा बनते थे.
- भाषा और संस्कृति की प्राथमिकता: शहजादों की शिक्षा मुख्यतः अरबी व फारसी में होती थी. इन भाषाओं के विद्वान मुगल दरबार में ही उपलब्ध रहते थे. यूरोप की शिक्षा परंपरा उनके लिए उतनी उपयोगी या आवश्यक नहीं समझी जाती थी.
- धार्मिक और राजनीतिक कारण: इस्लामी सत्ता-संरचना के भीतर शिक्षा को धर्म, शासन और प्रशासन से जोड़ा गया था. इस कारण उनकी शिक्षा-दीक्षा दरबार और विशाल पुस्तकालयों तक ही केंद्रित रही.
ऐसे में कहा जा सकता है कि मुगल शहजादे विदेश नहीं जाते थे. उनकी विदेश यात्रा मुख्यतः राजनीतिक कारणों (सैन्य अभियान, मध्य एशिया के साथ संबंध) के लिए होती थी, शिक्षा के लिए नहीं.
कौन था सबसे पढ़ा-लिखा मुगल बादशाह?
- बाबर: मुगल साम्राज्य के संस्थापक बाबर स्वयं एक विद्वान शासक थे. उन्होंने तुर्की भाषा में आत्मकथा तुज़ुक-ए-बाबरी (Baburnama) की रचना की. इसमें उनकी साहित्यिक प्रतिभा, प्रकृति-प्रेम और गहरी सांस्कृतिक समझ स्पष्ट दिखाई देती है.
- हुमायूं: हुमायूं विद्या और ज्योतिष में रुचि रखते थे. उनके दरबार के विद्वानों ने उन्हें “रुहानियत और ज्योतिष का प्रेमी” शासक कहा है. परंतु राजनीतिक दृष्टि से वे अपेक्षाकृत कमजोर सिद्ध हुए.
बादशाह अकबर.
- अकबर: अकबर स्वयं निरक्षर थे लेकिन वे ज्ञान-प्रेमी और विद्वानों के संरक्षक थे. उन्होंने इबादतख़ाना की स्थापना की, जहां विभिन्न धर्मों व विचार धाराओं पर बहस होती थी. उन्होंने शिक्षा को प्रसार दिया, लेकिन अक्षर ज्ञान के स्तर पर वे सबसे विद्वान शासक नहीं कहे जा सकते. हां, वे शिक्षा के महत्वों को समझते थे, इस संदर्भ में अनेक साक्ष्य इतिहास में उपलब्ध हैं.
- जहांगीर: जहांगीर काफी शिक्षित शासक थे. उन्होंने अपनी आत्मकथा तुज़ुक-ए-जहांगीरी लिखवाई. वे फ़ारसी के अच्छे जानकार थे और वनस्पति एवं प्रकृति विज्ञान में भी उनकी गहरी रुचि थी.
- शाहजहां: शाहजहां वास्तुकला के महान संरक्षक थे. साहित्य में वे पिता और दादा जितने सक्रिय नहीं थे, लेकिन वे कई भाषाओं के जानकार और कलाओं के शौकीन थे.
मुगल बादशाह शाहजहां.
- औरंगज़ेब: शिक्षा की दृष्टि से औरंगज़ेब विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं. वे कुरआन और हदीस के गहरे जानकार थे. फ़िक़्ह (इस्लामी न्यायशास्त्र) में उनकी पैठ थी. उन्होंने फ़तावा-ए-आलमगीरी नामक विशाल ग्रंथ का संकलन करवाया, जो इस्लामी कानून का मान्य ग्रंथ माना जाता है. उनकी धार्मिक शिक्षा और अरबी-फ़ारसी ज्ञान उन्हें अपने पूर्ववर्तियों से अलग खड़ा करता है.

औरंगजेब.
हालांकि, बाबर और जहांगीर साहित्यिक दृष्टि से रचनात्मक थे, लेकिन अगर हम शैक्षणिक गहराई और धार्मिक-वैधानिक ज्ञान को देखें तो औरंगज़ेब को सबसे शिक्षित मुगल बादशाह कहा जा सकता है. यह और बात है कि किसी भी बादशाह के बारे में आज की तरह की औपचारिक डिग्री की जानकारी नहीं पाई जाती.
मुगल शहजादों की शिक्षा-दीक्षा मुख्यतः उनके दरबार, मदरसों और निजी शिक्षण व्यवस्थाओं तक सीमित थी. वे विदेश जाकर पढ़ाई नहीं करते थे, बल्कि दुनिया के श्रेष्ठ विद्वान उन्हीं के दरबार में आकर उन्हें शिक्षा प्रदान करते थे. सबसे पढ़ा-लिखा बादशाह औरंगज़ेब था, जबकि साहित्यिक दृष्टि से बाबर और जहांगीर का योगदान भी स्मरणीय है.
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