जुलाई में ट्रंप ने भारत पर 25 प्रतिशत टैरिफ का ऐलान किया और साथ ही जुर्माना भी लगा दिया। जुर्माने की वजह रूसी तेल की खरीद बताई गई। खास बात है कि इससे पहले ट्रंप दावा करते रहे कि भारत के साथ ही जल्द बड़ी डील होने वाली है।
‘मेरे प्यारे दोस्त डोनाल्ड ट्रंप को 47वें अमेरिकी राष्ट्रपति बनने पर बधाई…।’ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्रंप के नाम जनवरी में यह संदेश दिया था। हालांकि, यह पहली बार नहीं है जब दोनों नेता एक-दूसरे को दोस्त बता रहे थे। बाद में ट्रंप ने फरवरी में कहा कि मोदी महान नेता हैं, हर कोई उनके काम के बारे में बात कर रहा है। मार्च में ट्रंप ने कहा कि नेगोशिएशन या वार्ता के मामले में मोदी के साथ उनका कोई कॉम्पिटिशन नहीं है। हालांकि, अगस्त में नौबत यहां तक आ गई कि खबरें आने लगी थीं कि पीएम मोदी ने ट्रंप से फोन पर बात करने तक से मना कर दिया। आखिर क्या है केमिस्ट्री घटने की वजह?
अमेरिका के पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार और ट्रंप के करीबी रहे जॉन बोल्टन ने कहा, ‘ट्रंप के मोदी के साथ व्यक्तिगत रूप से बहुत अच्छे संबंध थे। मुझे लगता है कि अब वह रिश्ता खत्म हो गया है, और यह सभी के लिए एक सबक है। उदाहरण के लिए, (ब्रिटेन के प्रधानमंत्री) किएर स्टॉमर के लिए, कि एक अच्छा व्यक्तिगत संबंध कभी-कभी मददगार हो सकता है, लेकिन यह आपको सबसे बुरे हालात से नहीं बचाएगा।’
तल्ख रिश्तों के ताजा सबूत
जर्मन अखबार Frankfurter Allegemeine Zeitung ने अपनी एक रिपोर्ट में दावा किया था कि ट्रंप ने कुछ हफ्तों के अंतराल में पीएम मोदी को चार बार कॉल किया, लेकिन उन्होंने बात करने से इनकार कर दिया। अमेरिकी राष्ट्रपति ने हाल ही में कहा, ‘भारत अपने सबसे बड़े ग्राहक अमेरिका को भारी मात्रा में सामान बेचता है, लेकिन हम उन्हें बहुत कम बेचते हैं। अब तक यह पूरी तरह से एकतरफा रिश्ता रहा है, और यह कई दशकों से चला आ रहा है।’ यहां तक कि उन्होंने भारत और रूस की अर्थव्यवस्था को ‘मरी हुई’ करार दे दिया था।
भारतीयों का डिपोर्टेशन
फरवरी में पीएम मोदी ने ट्रंप से अमेरिका में मुलाकात की। इसके कुछ समय बाद ही तस्वीरें सामने आईं, जिसमें अमेरिका से डिपोर्ट किए गए अवैध भारतीय प्रवासी बेड़ियों में नजर आ रहे थे। भारत में विपक्ष ने इस मुद्दे को जमकर उठाया था।
खुद बन गए शांतिदूत
अप्रैल में अमेरिका के उपराष्ट्रपति जेडी वेंस भारत आए थे। उस दौरान कहा जा रहा था कि दोनों पक्षों के बीच व्यापारिक मुद्दे पर बातचीत भी हुई थी, लेकिन उनके भारत में रहने के दौरान ही जम्मू और कश्मीर के पहलगाम में आतंकवादियों ने हमला कर दिया। इसमें 26 आम सैलानियों की हत्या कर दी गई थी।
इसके बाद 7 मई को भारत ने जवाबी ऑपरेशन सिंदूर की शुरुआत की, जिसमें भारतीय सेना ने पाकिस्तान में घुसकर आतंकवादी ठिकानों को तबाह किया। ऑपरेशन के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच संघर्ष शुरू हुआ, जो करीब 4 दिनों तक चला। हालांकि, पाकिस्तानी अधिकारी के अनुरोध पर सीजफायर हो गया था, लेकिन भारत और पाकिस्तान के कुछ भी कहने से पहले ही ट्रंप ने खुद को शांतिदूत घोषित कर दिया।
उन्होंने सोशल मीडिया पर पोस्ट किया कि दोनों पक्षों के बीच डील हो गई है। अगले ही दिन दावा किया कि वह भारत और पाकिस्तान उनके साथ बैठेंगे और कश्मीर मुद्दे का समाधान खोजेंगे।
भारत का रुख
एक ओर जहां पाकिस्तान ट्रंप के संघर्ष विराम कराने के दावे पर सहमति जताता नजर आया। वहीं, पीएम मोदी ने भारतीय संसद में साफ किया कि भारत और पाकिस्तान के सीजफायर में किसी तीसरे देश की भूमिका नहीं थी। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह, विदेश मंत्री एस जयशंकर भी स्थिति साफ कर चुके थे।
फिर नहीं हो सकी पीएम मोदी और ट्रंप की बात
कहा जाता है कि पाकिस्तान ट्रंप की नोबेल की इच्छा के बारे में जानता था और उसने मौके का इस्तेमाल भारत पर बढ़त हासिल करने के लिए कहा। पाक ने अमेरिकी राष्ट्रपति को नोबेल के लिए नॉमिनेट करने की बात कह दी।
द कन्वर्जेशन की एक रिपोर्ट के अनुसार, ट्रंप ने 17 जून को पीएम मोदी को फोन किया और ऐसा ही करने के लिए कहा। इसके अलावा अमेरिकी राष्ट्रपति ने भारतीय पीएम से कनाडा से G7 शिखर सम्मेलन से लौटते समय वॉशिंगटन रुकने और पाकिस्तानी सेना प्रमुख आसिम मुनीर से मिलने का अनुरोध किया। रिपोर्ट्स के अनुसार, पीएम मोदी ने दोनों ही अनुरोधों को मना कर दिया। कहा जाता है कि तब से ही दोनों के बीच कोई बात नहीं हुई है।
टैरिफ की कहानी
जुलाई में ट्रंप ने भारत पर 25 प्रतिशत टैरिफ का ऐलान किया और साथ ही जुर्माना भी लगा दिया। जुर्माने की वजह रूसी तेल की खरीद बताई गई। खास बात है कि इससे पहले ट्रंप दावा करते रहे कि भारत के साथ ही जल्द बड़ी डील होने वाली है। लेकिन इसके बाद उन्होंने दोबारा भारत पर टैरिफ अटैक किया और 25 फीसदी अतिरिक्त शुल्क लगाया। इस लिहाज से भारत पर कुल 50 फीसदी टैरिफ लागू हुआ।