होम देश Anticipatory bail under SC/ST Act allowed only if no prima facie case established CJI draws Laxman Rekha in Dalit case SC/ST एक्ट में जमानत तभी, जब… दलितों के केस में CJI ने खींची लक्ष्मण रेखा; HC का फैसला पलटा, India News in Hindi

Anticipatory bail under SC/ST Act allowed only if no prima facie case established CJI draws Laxman Rekha in Dalit case SC/ST एक्ट में जमानत तभी, जब… दलितों के केस में CJI ने खींची लक्ष्मण रेखा; HC का फैसला पलटा, India News in Hindi

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CJI की अध्यक्षता वाली पीठ ने स्पष्ट किया कि SC/AT एक्ट यह सुनिश्चित करता है कि इन वर्गों से संबंधित लोगों को उनके नागरिक अधिकारों से वंचित न किया जाए, उन्हें अपमान का सामना न करना पड़े और उन्हें अपमान और उत्पीड़न से बचाया जाए।

देश के मुख्य न्यायाधीश (CJI) जस्टिस बीआर गवई की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने हाल ही में एक फैसला सुनाते हुए कहा है कि दलितों के खिलाफ उत्पीड़न से जुड़े मामले यानी SC/ST एक्ट 1989 के तहत दर्ज मामलों में किसी भी आरोपी को अग्रिम जमानत तभी दी जा सकती है, जब स्पष्ट रूप से यह साबित हो कि आरोपी के खिलाफ प्रथम द्रष्टया कोई मामला न बनता हो। यानी पहली नजर में ही यह तथ्य साबित हो जाए कि आरोपी ने दलित समुदाय के प्रति कोई हिंसा नहीं की है।

CJI बीआर गवई, जस्टिस के विनोद चंद्रन और जस्टिस एनवी अंजारिया की पीठ ने मंगलवार को इस बात पर जोर दिया कि अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम को कमजोर वर्ग की सामाजिक-आर्थिक स्थिति में सुधार लाने के उद्देश्य से लाया गया था और यह आरोपी को गिरफ्तारी से पूर्व जमानत देने पर रोक लगाता है। इसके साथ ही पीठ ने जातिगत अत्याचार के आरोपों का सामना कर रहे एक आरोपी को अग्रिम जमानत देने संबंधी बॉम्बे हाई कोर्ट के आदेश को खारिज कर दिया।

SC/ST एक्ट की धारा 18 का उल्लेख

पीठ ने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम की धारा 18 का उल्लेख करते हुए कहा कि यह प्रावधान स्पष्ट रूप से दंड प्रक्रिया संहिता (CRPC) की धारा 438 (अग्रिम जमानत देने संबंधी) को लागू नहीं करने के बारे में है और इसे धारा के तहत दायर आवेदनों को सुनवाई से बाहर करने का प्रावधान करता है। कोर्ट ने कहा कि इस प्रावधान के साथ ही SC/ST एक्ट की धारा 18 आरोपी को अग्रिम जमानत देने पर रोक लगाती है।

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हालांकि, पीठ ने ऐसे मामलों में अग्रिम जमानत देने के लिए स्पष्ट रेखा खींचते हुए कहा कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम की धारा 3 के तहत अगर प्रथम द्रष्टया यह साबित होता है कि आरोपी ने इस अधिनियम के प्रावधानों का उल्लंघन नहीं किया है तो अदालत आरोपी को CRPC की धारा 438 के तहत दायर आवेदनों पर विचार करते हुए अग्रिम जमानत देने का विवेकाधिकार रखता है।

…अग्रिम जमानत याचिका खारिज की जानी चाहिए

बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक, अदालत ने कहा, “अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम-1989 की धारा 18 स्पष्ट भाषा के साथ सीआरपीसी की धारा 438 के तहत दायर आवेदनों को खारिज करती है और SC/ST समुदाय के लोगों के प्रति अपराध करने के आरोपियों को अग्रिम जमानत देने पर प्रतिबंध लगाता है।” पीठ ने कहा कि ऐसे आरोपियों की अग्रिम जमानत याचिका खारिज की जानी चाहिए। पीठ ने कहा, ‘‘यह कानून अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति में सुधार लाने के उपायों को लागू करने के उद्देश्य से लागू किया गया था।’’

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क्या है मामला?

पीठ ने शिकायतकर्ता किरण द्वारा बॉम्बे हाई कोर्ट के 29 अप्रैल के आदेश के विरुद्ध दायर अपील को स्वीकार करते हुए आरोपी को दी गई अग्रिम जमानत रद्द कर दिया। यह मामला 2024 में हुए विधानसभा चुनाव से जुड़ा है, जब महाराष्ट्र के धाराशिव जिले में चुनाव के बाद हुई झड़प में एक दलित परिवार पर हमला किया गया था। याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया था कि आरोपी ने हमले के दौरान जातिसूचक गालियां गदी थीं। नवंबर 2024 में दर्ज प्राथमिकी में धाराशिव जिले के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश ने आरोपी को राहत देने से इनकार कर दिया था। इसके बाद आरोपी राजकुमार जीवराज जैन हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था, जहां मामले को राजनीति से प्रेरित बताते हुए आरोपी को अग्रिम जमानत दे दी गई थी।

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हाई कोर्ट का आदेश पलटा

शिकायत के अनुसार, 25 नवंबर 2024 को जैन और अन्य ने कथित तौर पर किरण के घर के बाहर उसके साथ बहस की और उसे और उसके परिवार पर लोहे के रॉड से हमला किया था और इस दौरान जातिसूचक गालियां दीं थीं। दलित परिवार पर आरोप था कि उन लोगों ने जैन के पसंदीदा उम्मीदवारों को वोट नहीं दिए थे। हाई कोर्ट के पैसले के खिलाफ किरण ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी। शीर्ष अदालत ने हाई कोर्ट के फैसले को पलटते हुए कहा कि पीड़ित को अपमानजनक शब्द कहना और जातिसूचक गालियां देना स्पष्ट रूप से SC/ST एक्ट का उल्लंघन है। (एजेंसी इनपुट्स के साथ)

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