होम बिज़नेस why does the government want to save this telecom company looking for a 1 billion dollar investor इस टेलीकॉम कंपनी को क्यों बचाना चाहती है सरकार, 1 अरब डॉलर के निवेशक की तलाश, Business Hindi News

why does the government want to save this telecom company looking for a 1 billion dollar investor इस टेलीकॉम कंपनी को क्यों बचाना चाहती है सरकार, 1 अरब डॉलर के निवेशक की तलाश, Business Hindi News

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वोडाफोन-आइडिया (Vi) इस समय भारी आर्थिक संकट से गुजर रही है। सरकार चाहती है कि कंपनी डूबे नहीं। अब केंद्र सरकार एक ऐसे रणनीतिक निवेशक की तलाश कर रही है, जो करीब 1 अरब डॉलर (लगभग 8,800 करोड़ रुपये) का निवेश करने को तैयार हो।

देश की बड़ी टेलीकॉम कंपनी वोडाफोन-आइडिया (Vi) इस समय भारी आर्थिक संकट से गुजर रही है। सरकार चाहती है कि कंपनी डूबे नहीं, क्योंकि उसका सीधा असर टेलीकॉम सेक्टर और सरकारी खजाने पर भी पड़ेगा। इसी वजह से अब केंद्र सरकार एक ऐसे रणनीतिक निवेशक की तलाश कर रही है, जो करीब 1 अरब डॉलर (लगभग 8,800 करोड़ रुपये) का निवेश करने को तैयार हो और कंपनी में 12-13% की हिस्सेदारी भी ले।

प्रमोटरों का रोल और सरकार की रणनीति

ईटी की खबर के मुताबिक इस संभावित सौदे का मतलब यह होगा कि कंपनी के मौजूदा प्रमोटर आदित्य बिड़ला ग्रुप और ब्रिटेन की वोडाफोन, चाहें तो अपनी हिस्सेदारी घटा सकते हैं। फिलहाल सरकार खुद कंपनी से बाहर निकलने के मूड में नहीं है। बल्कि उसकी कोशिश है कि नया निवेशक न केवल पैसे लगाए बल्कि कंपनी के संचालन में भी भागीदारी करे और वोडाफोन-आइडिया को नए रास्तों से आगे बढ़ाए।

क्यों जरूरी है सहारा?

कंपनी पर एडजस्टेड ग्रॉस रेवेन्यू (AGR) का भारी बोझ है। मार्च 2025 तक इसके ऊपर लगभग 83,400 करोड़ रुपये के बकाए थे। अगले वित्त वर्ष में 16,000 करोड़ रुपये से ज्यादा का AGR भुगतान और करीब 2,600 करोड़ रुपये का स्पेक्ट्रम का बकाया देना होगा। इसके साथ ही कंपनी पर बैंकों का कर्ज और लंबी अवधि की देनदारियां मिलाकर कुल बोझ लगभग 2 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच चुका है।

दूसरी तरफ, जून 2025 तक कंपनी के पास नकद और बैंक बैलेंस सिर्फ 6,830 करोड़ रुपये ही था। साफ है कि इतने बोझ में कंपनी अपनी राह अकेले नहीं निकाल सकती।

राहत देने पर भी विचार

सरकार यह भी सोच रही है कि कंपनी को उसकी बकाया AGR देनदारियों में कैसे राहत दी जाए। दूरसंचार विभाग (DoT) ने सुझाव दिया है कि भुगतान की अवधि 6 साल से बढ़ाकर 20 साल कर दी जाए, और ब्याज की गणना भी आसान तरीके यानी “सिंपल इंटरेस्ट” से की जाए।

एक और विकल्प है कि फिलहाल हर साल सिर्फ 1,000-1,500 करोड़ रुपये की किस्त कंपनी से ली जाए, जब तक कि AGR पर कोई अंतिम फैसला न हो।

क्यों मायने रखती है वोडाफोन-आइडिया?

सरकार आज वोडाफोन-आइडिया की 48.99% हिस्सेदारी रखती है और अगर कंपनी खत्म हो गई तो सबसे बड़ा घाटा भी सरकार को ही उठाना पड़ेगा। यही वजह है कि केंद्र की कोशिश है कि किसी भी तरह से यह टेलीकॉम खिलाड़ी बचा रहे।

मार्केट और उम्मीदें

मार्केट में भी निवेशकों की नजर इस पर है। हाल ही में वोडाफोन-आइडिया का शेयर हल्की बढ़त के साथ 6.58 रुपये पर बंद हुआ, जिससे कंपनी का मार्केट कैप करीब 71,290 करोड़ रुपये हो गया। लेकिन असली सवाल यह है कि क्या नया निवेशक कंपनी में पैसा लगाने और उसके संचालन में हाथ बंटाने के लिए आगे आएगा या नहीं।

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