होम देश Governor has no role in law making President is a nominal head What did the states say in SC कानून बनाने में गवर्नर की कोई भूमिका नहीं, राष्ट्रपति नाममात्र के प्रमुख; राज्यों ने SC में क्या-क्या कहा, India News in Hindi

Governor has no role in law making President is a nominal head What did the states say in SC कानून बनाने में गवर्नर की कोई भूमिका नहीं, राष्ट्रपति नाममात्र के प्रमुख; राज्यों ने SC में क्या-क्या कहा, India News in Hindi

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राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु द्वारा भेजे गए संदर्भ पर सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ में चल रही सुनवाई के 7वें दिन वरिष्ठ अधिवक्ता सिब्बल ने कहा कि किसी विधेयक की विधायी क्षमता का परीक्षण अदालतों में किया जाना चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की संविधान पीठ के समक्ष बुधवार को विपक्ष शासित कर्नाटक, हिमाचल प्रदेश और पश्चिम बंगाल ने कहा कि कानून बनाने में राज्यपाल की कोई भूमिका नहीं है। राज्यों ने केंद्र की उस दलील का कड़ा विरोध किया, जिसमें कहा गया कि विधेयकों को मंजूरी देना या नहीं देना, राज्यपाल का विवेकाधिकार है। मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई की अगुवाई वाली संविधान पीठ के समक्ष कर्नाटक की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल सुब्रमण्यम ने कहा कि राज्यपाल के पास कार्यकारी शक्ति है, लेकिन विधायी शक्ति नहीं है।

इस मामले पर केंद्र सरकार का यह कहना कि उच्च संवैधानिक प्राधिकारियों के पास अपार शक्तियां हैं, संविधान के खिलाफ है। पश्चिम बंगाल की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा कि राज्यपाल विधानसभा से पारित विधेयक की विधायी क्षमता की जांच नहीं कर सकते हैं। हिमाचल की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता आनंद शर्मा ने भी पक्ष रखा। संविधान पीठ राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु द्वारा भेजे संदर्भ पर सुनवाई कर रही थी। संविधान पीठ में सीजेआई गवई के अलावा संविधान पीठ में जस्टिस सूर्यकांत, विक्रम नाथ, पीएस नरसिम्हा और एएस चंदुरकर शामिल हैं।

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु द्वारा भेजे गए संदर्भ पर सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ में चल रही सुनवाई के 7वें दिन वरिष्ठ अधिवक्ता सिब्बल ने कहा कि किसी विधेयक की विधायी क्षमता का परीक्षण अदालतों में किया जाना चाहिए।वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा 8 अप्रैल को विधानसभा से पारित विधेयकों को मंजूरी देने के लिए राज्यपाल और राष्ट्रपति के लिए समय-सीमा तय किए जाने के मुद्दे पर सुनवाई में अपना पक्ष रखा। वरिष्ठ अधिवक्ता ने कहा कि किसी कानून को नागरिकों या किसी अन्य व्यक्ति द्वारा अदालत में चुनौती दी जा सकती है।

नाममात्र के प्रमुख हैं राष्ट्रपति और राज्यपाल : कर्नाटक

कर्नाटक सरकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल सुब्रमण्यम ने संविधान पीठ को बताया कि ‘1954 से कानून में यह स्थायी स्थिति रही है कि राष्ट्रपति और राज्यपाल नाममात्र के प्रमुख हैं। यह संदर्भ संविधान के सबसे स्वीकृत, स्थायी और सुसंगत सिद्धांतों में से एक पर गंभीरता से जोर देता है। कर्नाटक सरकार ने पीठ से कहा कि वास्तविक कार्यकारी शक्ति केंद्र /राज्य मंत्रिमंडलों में निहित है।

राज्यपाल उत्तरदायी नहीं

कर्नाटक सरकार ने केंद्र सरकार के उस दलील का कड़ा विरोध किया है, जिसमें कहा गया था कि राष्ट्रपति और राज्यपाल के पास विवेकाधिकार है। राज्य ने कहा कि केंद्र का ऐसा मानना पूरी तरह त्रुटिपूर्ण है। कर्नाटक ने कहा कि राज्यपाल मंत्रिमंडल से बाहर होता है। राज्यपाल किसी भी तरह से विधानमंडल के प्रति उत्तरदायी नहीं हैं।

क्या विचार के लिए विधेयक सुरक्षित नहीं रख सकते?

सुनवाई के दौरान सीजेआई ने सवाल किया कि यदि ‌राज्यपाल यह पाते हैं कि संबंधित विधेयक में केंद्रीय कानून के साथ विरोधाभास है तो क्या राष्ट्रपति के विचार के लिए विधेयक को सुरक्षित नहीं रख सकते? इसके जवाब में वरिष्ठ अधिवक्ता सिब्बल ने कहा कि यह एक दुर्लभ मामला है, लेकिन जब कोई विधेयक विधानसभा द्वारा पारित होता है, तो संवैधानिकता की एक पूर्वधारणा होती है, जिसका परीक्षण अदालत में किया जाना चाहिए।

क्या विधेयक में देरी करने की अनुमति होनी चाहिए?

जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि तब राज्यपाल को यह देखने के लिए अपने विवेक का इस्तेमाल करना होगा कि विधेयक विरोधाभासी है या नहीं, हालांकि कोई भी व्यक्ति रूपरेखा पर तर्क दे सकता है। इस पर पश्चिम बंगाल ने कहा कि राज्य विधानमंडल की संप्रभुता संसद की संप्रभुता जितनी ही महत्वपूर्ण है। ऐसे में क्या राज्यपाल को विधेयक को देरी करने की अनुमति दी जानी चाहिए? यह एक महत्वपूर्ण सवाल है।

नहीं होती है कोई भूमिका

हिमाचल सरकार की ओर से पूर्व केंद्रीय मंत्री व वरिष्ठ अधिवक्ता आनंद शर्मा ने पीठ से कहा कि संसद/राज्य विधानसभा को बुलाने के लिए राष्ट्रपति या राज्यपाल मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह से बंधे होते हैं। उनकी कानून निर्माण में भूमिका नहीं होती। जब वे संसद/राज्य विधानसभा में आते हैं, तब भी वे अध्यक्षता नहीं करते, बल्कि केवल संबोधन करते हैं।

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