चीन की विक्ट्री परेड में पुतिन के साथ किम जोंग उन भी पहुंचे हैं.
पीएम नरेंद्र मोदी SCO शिखर सम्मेलन में शामिल होने के बाद भारत लौट आए हैं. उधर, चीन ने बुधवार को 26 विदेशी नेताओं के सामने अपनी सैन्य शक्ति का प्रदर्शन किया है. यह सैन्य प्रदर्शन दूसरे विश्व युद्ध में जापानी आक्रमण के खिलाफ चीन की जीत की 80 वीं वर्षगांठ पर किया गया. इस समारोह में शामिल होने को उत्तर कोरिया के तानाशाह किम जोंग उन अपनी बेटी के साथ खास तौर से पहुंचे. रूसी राष्ट्रपति पुतिन, पाकिस्तान के पीएम शरीफ भी इस मौके के गवाह बने. चीन ने पहली बार अपने कई अत्याधुनिक हथियारों का प्रदर्शन किया है.
टैरिफ वार के बाद दुनिया में नए रिश्ते बन एवं बिगड़ भी रहे हैं. रूस से भारत के रिश्ते जगजाहिर हैं. भारत-चीन भी एक-दूसरे के करीब आते हुए दिखाई दे रहे हैं. ऐसे में समय आ गया है कि यह भी जाना जाए कि रूस और चीन के दोस्त किम जोंग उन के भारत के साथ रिश्ते में गर्माहट कितनी है?
दुनिया से कटे रहने के बावजूद चर्चा में रहते हैं किम जोंग उन
उत्तर कोरिया के नेता किम जोंग उन की वैश्विक राजनीति में हमेशा चर्चा होती है. उनके परमाणु कार्यक्रम, सैन्य शक्ति प्रदर्शन और अमेरिका-कोरिया रिश्तों को लेकर तो लिखा जाना आम है, लेकिन भारत और उत्तर कोरिया के संबंधों पर चर्चा अपेक्षाकृत कम होती है. जब हम अंतर्राष्ट्रीय समीकरणों की बात करते हैं, विशेषकर किम जोंग, चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के बीच की समीपता जग-जाहिर है तो यह सवाल उठता है कि भारत का इस त्रिकोणीय धुरी और खासकर किम जोंग के साथ कैसा संबंध है?

नॉर्थ कोरिया के तानाशाह किम जोंग उन. (फोटो क्रेडिट- PTI)
भारत और किम जोंग-उन के उत्तर कोरिया के सम्बंधों का इतिहास
भारत और उत्तर कोरिया के बीच रिश्ते अपेक्षाकृत शांत और सीमित रहे हैं. भारत ने पहली बार साल 1973 में प्योंगयांग के साथ राजनयिक संबंध स्थापित किए. दोनों देशों में कूटनीतिक संबंधों की शुरूआत यहीं से हुई. दोनों देशों के बीच संपर्क सीमित स्तर पर चलता रहा. शीत युद्ध के दौर में उत्तर कोरिया सोवियत संघ और चीन के नजदीक रहा, वहीं भारत ने गुटनिरपेक्ष आंदोलन का हिस्सा होते हुए भी संतुलन बनाए रखा. भारत ने कभी उत्तर कोरिया के खिलाफ सीधे शत्रुतापूर्ण रुख नहीं अपनाया. बल्कि, उसने मानवीय सहयोग और बातचीत पर जोर दिया. यही कारण है कि भले ही राजनीतिक स्तर पर दोनों देशों में दूरी रही हो, लेकिन कूटनीतिक चैनल हमेशा खुले रहे.
कैसा है दोनों देशों के बीच व्यापार?
भारत लंबे समय तक उत्तर कोरिया के प्रमुख व्यापार भागीदारों में से एक रहा. साल 2016-17 तक भारत, उत्तर कोरिया का तीसरा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार था. उस समय व्यापार लगभग 200 मिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुंच गया था. साल 2017 के बाद संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने उत्तर कोरिया पर बड़े पैमाने पर प्रतिबंध लगाए गए तब भारत ने व्यापार पूरी तरह रोक दिया.
अब बहुत सीमित व्यापार हो रहा है. वाणिज्य मंत्रालय, भारत सरकार के आंकड़ों के अनुसार हाल के वर्षों में कुल द्विपक्षीय व्यापार कुछ लाख डॉलर से अधिक नहीं है. जरूरत पड़ने पर भारत राशन, दवाएं भेज रहा है. उत्तर कोरिया से भारत को खनिज, सीसा और अन्य उत्पाद मिलते रहे हैं.
भारत औरउत्तर कोरिया के बीच व्यापार भले कम हुआ हो लेकिन संकट के समय भारत ने आगे बढ़कर उत्तर कोरिया की खूब मदद की है.इससे यह संदेश गया कि भारत किसी भी भू-राजनीतिक दबाव से परे जाकर मानवीय संकट को प्राथमिकता देता है.
तकनीक-हथियारों का आदान-प्रदान लेकिन भारत अलर्ट
भारत और उत्तर कोरिया के बीच एक बड़ी चिंता तकनीकी और हथियारों के आदान-प्रदान को लेकर रही है. अतीत में आशंका जताई जाती रही है कि उत्तर कोरिया ने पाकिस्तान के साथ मिलकर परमाणु तकनीक साझा की. पाकिस्तान के साथ इस सहयोग से भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा प्रभावित होती है.
यही कारण है कि भारत, उत्तर कोरिया के परमाणु और मिसाइल कार्यक्रम को लेकर सतर्क दृष्टि रखता है. भारत लगातार संयुक्त राष्ट्र में उत्तर कोरिया से संयम बरतने और अंतर्राष्ट्रीय दायित्वों का पालन करने की मांग करता रहा है.
जिनपिंग-पुतिन-किम धुरी और भारत का रुख
आज के समय में चीन, रूस और उत्तर कोरिया के बीच सहयोग गहरा होता दिखाई दे रहा है. चीन, उत्तर कोरिया का सबसे बड़ा आर्थिक और राजनीतिक समर्थक है. रूस भी हाल के वर्षों में अमेरिका और पश्चिमी गठजोड़ के खिलाफ किम जोंग को समर्थन देता दिखा है. इस परिदृश्य में भारत एक संतुलित नीति अपनाता है.
- चीन से संबंध भले ही सीमा विवाद रहे हों, लेकिन चीन भारत का महत्त्वपूर्ण पड़ोसी और आर्थिक प्रतिस्पर्धी भी है.
- रूस से संबंध रूस भारत का दशकों पुराना रणनीतिक साझेदार है. रक्षा क्षेत्र में अभी भी रूस पर भारत की निर्भरता काफी है.
- उत्तर कोरिया से संबंध भारत इसे चीन और रूस के नजरिए से नहीं, बल्कि स्वतंत्र दृष्टिकोण से देखता है. भारत का रुख यही है कि उत्तर कोरिया क्षेत्रीय और वैश्विक शांति में योगदान करे.

चीन की विक्ट्री डे परेड
भारत की राजनयिक रणनीति
भारत हमेशा संवाद और कूटनीति का समर्थक रहा है. भारत ने अमेरिका-उत्तर कोरिया वार्ता का स्वागत किया. भारत का मानना है कि कोरियाई प्रायद्वीप में स्थायित्व और परमाणु हथियारों से परहेज, वैश्विक शांति के लिए जरूरी है. भारत न तो उत्तर कोरिया पर अत्यधिक दबाव बनाता है और न ही किम जोंग की नीतियों का समर्थन करता है. बल्कि, वह संतुलित भूमिका निभाता आ रहा है.
भारत और कोरियाई प्रायद्वीप में संतुलन
भारत के दक्षिण कोरिया के साथ बेहद मजबूत आर्थिक, तकनीकी और राजनीतिक रिश्ते हैं. दक्षिण कोरिया भारत का साझेदार है Act East Policy और Indo-Pacific Vision में। इस कारण भारत को उत्तर कोरिया के साथ संबंध साधने में अतिरिक्त सावधानी रखनी पड़ती है. भारत यह सुनिश्चित करता है कि उत्तर कोरिया से व्यवहार करते समय दक्षिण कोरिया के साथ रिश्तों पर कोई नकारात्मक असर न पड़े.
भविष्य की संभावनाएं
भारत-उत्तर कोरिया संबंध आगे किन बिंदुओं पर टिक सकते हैं?
- मानवीय सहयोग: भविष्य में भारत खाद्य, दवा और शिक्षा क्षेत्र में मदद जारी रख सकता है.
- वैज्ञानिक और तकनीकी क्षेत्र: प्रतिबंध हटने के बाद सीमित सहयोग की संभावना बन सकती है.
- संवाद मंच: भारत गुटनिरपेक्ष आंदोलन और बहुपक्षीय मंचों पर शांति-समाधान को बढ़ावा देकर मध्यस्थ जैसी भूमिका निभा सकता है.
हालांकि, निकट भविष्य में भारत और उत्तर कोरिया के बीच गहरे आर्थिक या सामरिक रिश्तों की संभावना कम है.
किम जोंग उन के नेतृत्व वाला उत्तर कोरिया भारत के लिए कोई सीधी चुनौती नहीं है, लेकिन पाकिस्तान से उसकी निकटता और परमाणु सहयोग भारत की रणनीतिक चिंता का विषय रहा है. भारत ने हमेशा संतुलन बनाए रखते हुए उत्तर कोरिया से बातचीत की है और मानवीय सहयोग को प्राथमिकता दी है.
जहां जिनपिंग और पुतिन अंतर्राष्ट्रीय मंच पर किम जोंग को सहयोग दे रहे हैं, वहीं भारत अपनी स्वतंत्र नीति पर चलता है. भारत का दृष्टिकोण यही है कि कोरियाई प्रायद्वीप में शांति कायम रहे, परमाणु हथियारों का प्रसार रोका जाए और मानवीय संकट का समाधान किया जाए. इस समझदारी भरे संतुलन ने भारत-उत्तर कोरिया संबंधों को भले ही गर्मजोशी से दूर रखा हो, पर स्थायित्व और संयम की राह पर आगे बढ़ाया है.
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