भारन ने खाने के सामान और दवाओं के साथ कुल 21 टन राहत सामग्री अफगानिस्तान भेजी है.
अफगानिस्तान में भूकंप ने भीषण तबाही मचाई है. इसने 1411 से ज्यादा लोगों की जान ले ली है. 3250 से अधिक लोग घायल बताए जा रहे हैं. मलबों में तमाम लोगों के फंसे होने की आशंका है. ऐसे में अफगानिस्तान की सत्ता पर काबिज तालिबान ने पूरी दुनिया से मदद मांगी है. भारत ने मदद के कदम बढ़ा भी दिए हैं. यहां से 1000 टेंट काबुल भेजे गए हैं. साथ ही खाने का 15 टन सामान भी भेजा गया है. दवाओं आदि के साथ कुल 21 टन राहत सामग्री भेजी गई है. भारत ने आगे और मदद का भरोसा अफगानिस्तान को दिलाया है. आइए जान लेते हैं कि भारत ने अफगानिस्तान की कब-कब और कैसे मदद की?
भारत और अफगानिस्तान के संबंध प्राचीन काल से चले आ रहे हैं. आधुनिक काल की बात करें तो अपनी आजादी के साथ ही भारत ने अफगानिस्तान के साथ दोस्ताना रिश्तों की शुरुआत कर दी थी. चार जनवरी 1950 को भारत सरकार और अफगानिस्तान की रॉयल गवर्नमेंट के बीच एक मैत्री संधि पर समझौता हुआ था. साल 1973 में अफगानिस्तान जब एक गणराज्य बना, तब भी भारत ने अपनी दोस्ती निभाते हुए तुरंत उसको मान्यता दे दी थी.
यहां तक कि साल 1979 में जब तत्कालीन सोवियत संघ ने अफगानिस्तान पर हमला किया तो उसके बाद 198090 के दशक में अफगानिस्तान के लोगों की भारत ने मानवीय आधार पर मदद की. शरणार्थियों की सहायता की और अफगानिस्तान के छात्रों को भारत में पढ़ाई का मौका दिया गया.
तालिबान के पतन के बाद दूतावास का विस्तार
साल 1996 में अफगानिस्तान में तालिबान का उदय हुआ तो भारत के साथ उसके रिश्ते तल्ख होते गए. फिर भी भारत ने मानवीय मदद करने में कोई कसर नहीं छोड़ी. अमेरिकी हस्तक्षेप से साल 2001 में अफगानिस्तान में तालिबान का पतन होने के बाद नए सिरे से अफगानिस्तान के पुनर्निर्माण की भारत की ओर से शुरुआत की गई.
बीबीसी की एक रिपोर्ट में काबुल में मौजूद भारतीय दूतावास के हवाले से बताया गया है कि मार्च 2002 में अफगानिस्तान में भारत ने अपने दूतावास का विस्तार किया. फिर हेरात, मजार-ए-शरीफ, कंधार और जलालाबाद में भारत ने वाणिज्य दूतावास खोले. साल 2011 में अफगानिस्तान में भयंकर सूखा पड़ा था. तब भारत ने अफगानिस्तान को ढाई लाख टन गेहूं मुहैया कराया था.

भारत ने अफगानिस्तान को 21 टन राहत सामग्री भेजी है.
देश के पुनर्निर्माण में झोंकी ताकत
अफगानिस्तान की संसद का निर्माण भारत की मदद से हुआ है. इसके एक ब्लॉक का नाम भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के नाम पर रखा गया था. दिसंबर 2015 में इसका उद्घाटन भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया था. वहां हेरात में सलमा बांध के पुनर्निर्माण में भारत ने मदद की और इसे लगभग 2040 करोड़ रुपए की लागत से निर्मित किया गया. दोनों देशों के लगभग 1500 इंजीनियर इसके निर्माण में लगे रहे, जिसकी उत्पादन क्षमता 42 मेगावाट बिजली उत्पादन है.
साल 2016 में शुरू किए गए इस बांध को भारत-अफगानिस्तान मैत्री बांध नाम दिया गया था. इसे सलमा बांध कहते हैं. काबुल से फूल-ए-खुमरी तक भारत की मदद से ही ट्रांसमिशन लाइन बिछाई गई. भारत ने अफगानिस्तान के स्टोर पैलेस, हबीबिया हाईस्कूल, काबुल में इंदिरा गांधी इंस्टीट्यूट फॉर चाइल्ड हेल्थ का पुनरुद्धार कराने में मदद की.

अफगानिस्तान की संसद में एक ब्लॉक का नाम भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के नाम पर रखा गया है.
शिक्षा, परिवहन से लेकर सुरक्षा तक में मदद
कंधार में स्थित अफगान नेशनल एग्रीकल्चर साइंसेंज एंड टेक्नोलॉजी यूनिवर्सिटी को भारत ने आर्थिक मदद देने के साथ अन्य तमाम तरीकों से सहायता करता रहा है. इनके अलावा काबुल में चिमतला पावर सबस्टेशन, कांधार में क्रिकेट स्टेडियम से लेकर कोल्ड स्टोरेज वेयर हाउस के निर्माण और टेलीफोन एक्सचेंज, टीवी नेटवर्क को अपग्रेड करने तक में भारत की अहम भूमिका रही है.
भारत ने काबुल को सैकड़ों बसें, अफगान नेशनल आर्मी के लिए 285 से ज्यादा मिलिटरी व्हीकल, वहां की एयरफोर्स के लिए एमआई-25 और एमआई-35 हेलीकॉप्टर, अलग-अलग शहरों के अस्पतालों के लिए एंबुलेंस, एयरलाइंस के लिए एयरक्राफ्ट तक मुहैया कराए हैं.

सलमा बांध, जिसे साल 2016 में भारत-अफगानिस्तान मैत्री बांध नाम दिया गया था.
तीन बिलियन डॉलर का निवेश
दरअसल, साल 2014 में अफगानिस्तान और रूस के साथ भारत ने एक समझौता किया था. इसके तहत अफगानिस्तान को रूस जरूरी सैन्य उपकरण प्रदान करेगा और भुगतान भारत करेगा. इसके अलावा अफगानिस्तान के लोकसेवकों, पुलिस कर्मियों और सैनिकों को भी भारत प्रशिक्षित करता रहा है. यहां तक कि भारत अपनी सैन्य अकादमियों में अफगान सैन्य अफसरों को प्रशिक्षित करता रहा है.
अफगानिस्तान के खनिजों सोना, लोहा, तांबा आदि के खनन के लिए भारतीय कंपनियों ने निवेश किया था. अलग-अलग क्षेत्रों की सौ से अधिक कंपनियों में भारत ने निवेश किया था, जिनमें संचार, कृषि, सूचना प्रौद्योगिकी आदि थीं. बीबीसी की रिपोर्ट में भारतीय दूतावास के हवाले से बताया गया है कि साल 2019 तक अफगानिस्तान में भारत 2 बिलियन अमेरिकी डॉलर (139 अरब रुपये) का निवेश कर चुका था. वैसे भारत ने वहां कुल 3 बिलियन अमेरिकी डॉलर के निवेश के प्रतिबद्धता जताई थी.
साल 2021 में अफगानिस्तान में तालिबान की वापसी हुई तो दोनों देशों में एक बार फिर तल्खी आ गई. भारत ने दूतावास के जरिए अपनी कूटनीतिक गतिविधियों को कुछ समय के लिए रोक दिया. तालिबान सरकार को मान्यता भी नहीं दी. इसके बावजूद मानवीय आधार पर अफगानिस्तान की मदद जारी रखी. कोरोना महामारी के दौरान भारत ने अफगानिस्तान को वैक्सीन और दवाइयों के साथ राहत सामग्री मुहैया कराई. केवल साल 2022-23 में भारत अफगानिस्तान को 50 हजार मीट्रिक टन गेहूं और दवाइयां दे चुका था.
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