होम नॉलेज क्या बाबर ने अपनी जान देकर बेटे हुमायूं की जिंदगी बचाई? बाबरनामा में मुगल बादशाह ने बताया पूरा किस्सा

क्या बाबर ने अपनी जान देकर बेटे हुमायूं की जिंदगी बचाई? बाबरनामा में मुगल बादशाह ने बताया पूरा किस्सा

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मुगल बादशाह बाबर ने बेटे हुमायूं की जान बचाने के लिए कुरबानी देने की बात कही थी.

दवाइयां बेअसर थीं. हकीम हाथ खड़े कर चुके थे. हुमायूं के बचने की उम्मीद कम होती जा रही थी. अब ऊपर वाले से दुआएं की जा रही थीं. बेटों में बाबर को हुमायूं से सबसे ज्यादा लगाव था. उसने हुमायूं की जान बचाने के लिए कुरबानी की बात चलाई. मौलानाओं ने तज़बीज पेश की कि सबसे कीमती रत्न कोहिनूर को मजहबी मकसदों के लिए भेंट कर दिया जाए. बाबर ने इसे सिरे से खारिज किया. कहा कि वो कौन सा पत्थर है, जो मेरे बेटे की बराबरी पर तुल सके. अच्छा होगा कि ये कीमत मैं खुद की जिंदगी देकर चुकाऊं .

सम्भल में रिहाइश के दौरान हुमायूं बुरी तरह बीमार हो गया. उन दिनों बाबर और बेगमें धौलपुर की सैर पर थे. वहीं मौलाना मुहम्मद फ़र्गरली के खत से हुमायूं की बीमारी की खबर पहुंची. मां माहेम बेगम सुनते ही रवाना हुईं. मथुरा में उनकी बीमार हुमायूं से भेंट हुई. फिर उन्हें आगरा लाया गया.

गुलबदन बेगम ने “हुमायूंनामा” में लिखा कि मथुरा से आगरा पहुंचने तक हुमायूं और कमजोर हो चुके थे. बीच-बीच में होश आने पर गुलबदन बेगम और अन्य बहनों की ओर देख कुछ कहते और फिर आंखें मुंद जातीं. पिता बादशाह बाबर को देख और व्याकुल-परेशान दिखने लगे.

कौन सा है वो पत्थर जो बेटे की बराबरी कर सके?

माहेम बेगम अपने बेटे हुमायूं की जिंदगी की ओर से नाउम्मीद हो चली थी. पति बाबर को चिंतित देख उनसे कहा कि आपके तो और बेगमों से भी बेटे हैं. आप क्यों दुखी होते हैं? बाबर का जवाब था कि बेशक और बेटे हैं लेकिन हुमायूं जैसा न ही कोई प्रिय है और न उन जैसा काबिल. इस वक्त तक हुमायूं की बिगड़ती हालत को संभालने की हकीमों की हर कोशिश नाकाम हो चुकी थी.मौलानाओं ने तज़बीज पेश की कि सबसे कीमती रत्न कोहिनूर को मजहबी मकसदों के लिए भेंट कर दिया जाए. बाबर ने इसे सिरे से खारिज किया. कहा कि वो कौन सा पत्थर है, जो मेरे बेटे की बराबरी पर तुल सके. अच्छा होगा कि ये कीमत मैं खुद की जिंदगी देकर चुकाऊं.

Babur

बाबर ने हिन्दुस्तान में मुगल साम्राज्य की नींव रखी थीं.

हुमायूं हरा होता गया, बाबर छीजता गया

बाबरनामा के ब्यौरे के मुताबिक हुमायूं की जिंदगी के लिए खुद को कुर्बान करने के बाबर के संकल्प को एक संत की देख-रेख में पूरा किया गया. बाबर ने बीमार पड़े हुमायूं के पलंग की तीन परिक्रमा कीं और अल्लाह से दुआ मांगी कि अगर जान का बदला जान है तो मेरी जान लेकर हुमायूं की जान बख्श दे. तभी बाबर को बुखार का अहसास हुआ और वो चिल्ला पड़ा कि दुआ कुबूल हुई. फिर कह पड़ा, “मैंने अपने ऊपर ले लिया. बर्दाशतम! बर्दाशतम!

बाबर की बेटी गुलबदन ने हुमायूंनामा में लिखा है, “उसी दिन बादशाह बीमार हो गए और हुमायूं ने नहाने के बाद बाहर आकर दरबार किया.” बाबर दो-तीन महीने रोग शैय्या पर रहा. कुछ इतिहासकार दो-तीन सप्ताह बताते हैं. गुलबदन के मुताबिक, “ज्यों-ज्यों हुमायूं हरा होता गया, त्यों-त्यों बाबर छीजता गया.

Humayun

बाबर की नजर में बेटे हुमायूं से ज्यादा कोई काबिल नहीं था.

वो जहर जो बाबर के अंत की वजह बना

सेहत सुधरने के साथ हुमायूं कालिंजर चला गया. लेकिन बीमार बाबर की हालत दिनों-दिन बिगड़ती है. खबर पाने पर हुमायूं की वापसी हुई. तमाम हकीमों की कोशिशें नाकाम रहीं. पिता की तकलीफों से परेशान हुमायूं ने हकीमों से कहा जैसे भी मुमकिन हो कुछ कीजिए. हकीमों का कहना था कि यह रोग उस जहर की देन है, जो सुल्तान इब्राहिम लोदी की मां ने बावर्ची से साजिश करके बाबर को खिलवाया था. बाबर ने पानीपत की लड़ाई में लोदी को शिकस्त देकर हिंदुस्तान की बादशाहत हासिल की थी. इस जंग में लोदी मारा गया था. उसकी मां और परिवार के अन्य सदस्य बाबर की सरपरस्ती में थे.

इसी दौरान लोदी की मां ने बाबर के हिन्दुस्तानी बाबर्ची और चाशनीगीर को अपनी ओर मिला उस तश्तरी में जहर रखवा दिया था, जिसमें घी से चुपड़े फुल्के बाबर को पेश किए गए. इन फुलकों को खाने से बाबर की हालत खराब हो गई थी. तब बाबर बच गया था. लेकिन हकीमों के मुताबिक उस जहर के असर से शरीर मुक्त नहीं हो पाया.

बादशाहत किसे सौंपना चाहता था बाबर?

क्या बाबर हिंदुस्तान की बादशाहत हुमायूं को सौंपना चाहता था? बाबरनामा में 936 हिजरी (1530) की घटनाएं मुगल वंशजों और उनके करीबियों के हवाले के हवाले से दर्ज हैं. उनके मुताबिक बाबर हिंदुस्तान अपने इकलौते दामाद मुहम्मद जमान मीरजा को देना चाहता था जो कि मासूमा का पति था.

अप्रैल 1529 में बाबर ने उसे राजछत्र उपहार में दिया था. यह उपहार उसके अलावा अन्य किसी को नहीं दिया था. दूसरी ओर हुमायूं की मां माहेम बेगम अपने बेटे के लिए हिंदुस्तान की बादशाहत की चाहत रखती थी. जमान को राजछत्र उपहार में दिए जाने के बाद उसे हुमायूं के प्रति बाबर की बेरुखी का अहसास हुआ था. माहेम ने हुमायूं को हिंदुस्तान बुला कर एक बार फिर बाबर का भरोसा हासिल करने का उसे मौका मुहैय्या कराया.

1527 में बाबर की इजाजत के बिना हुमायूं दिल्ली का खजाना हथिया काबुल रवाना हो गया. लेकिन सितारे हुमायूं के हक में थे. उसकी बीमारी ने पिता बाबर के सारे गिले-शिकवे दूर कर सिर पर ताज सजने का रास्ता साफ कर दिया.

आखिरी वसीयत हुमायूं के हक में

गुलबदन बेगम के मुताबिक उसके पिता बाबर को भी अपने आखिरी वक्त का अंदाज लग चुका था. कोई दवा-कोशिश काम नहीं आ रही थी. कमजोरी बढ़ती जा रही थी. सभी अमीरों को बुला बाबर ने कहा कि बहुत दिनों से मेरी ख्वाहिश थी कि हिंदुस्तान की बादशाहत हुमायूं मिर्जा को सौंप जरअफशां बाग में तनहा आराम करूं.

खुदा ने वो मौका नहीं दिया. अब अपनी बीमारियों से दुखी होकर वसीयत कर रहा हूं कि हुमायूं को हमारे स्थान पर समझें. उनका भला करने में कमी न करें और उनके एक राय रहें. हुमायूं, तुम्हारे भाइयों, सब संबंधियों और सभी रियाया को तुम्हें और खुद को अल्लाह को सौंपता हूं. बाबर की इन बातों को सुनकर वहां से हरम तक लोगों ने रोना शुरू कर दिया. तीन दिन के अंतराल पर 26 दिसंबर 1930 को बाबर का निधन हो गया.

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