विजय सिन्हा की जीत का सफर
विजय कुमार सिन्हा ने 2010 में पहली बार लखीसराय से विधानसभा चुनाव जीता था. तब से उन्होंने इस सीट पर अपनी पकड़ मजबूत की है. वर्ष 2015 में राष्ट्रीय जनता दल (राजद) और जनता दल यूनाइटेड (जदयू) के गठबंधन के बावजूद उन्होंने जीत हासिल की और 2020 में कांग्रेस के अमरेश कुमार को 10,483 वोटों के अंतर से हराया. उनकी यह जीत बताती है कि लखीसराय में भाजपा का जनाधार लगातार बना हुआ है और विजय सिन्हा का दबदबा भी कायम है.
विकास कार्यों का दिखाया दम
जातीय समीकरण का मजबूत आधार
लखीसराय विधानसभा क्षेत्र में जातीय समीकरण चुनावी नतीजों को तय करने में अहम भूमिका निभाते हैं. इस क्षेत्र में भूमिहार, यादव, मुस्लिम और अनुसूचित जाति (एससी) के मतदाता प्रमुख हैं. विजय सिन्हा भूमिहार समुदाय से हैं और इस प्रभावशाली जाति के वोटों का बड़ा हिस्सा हासिल करने में सफल रहे हैं. बता दें कि बिहार की राजनीति में भूमिहार समुदाय का प्रभाव हमेशा से महत्वपूर्ण रहा है, और विजय सिन्हा ने इसे अपने पक्ष में खूब भुनाया भी है.
विजय सिन्हा का दबदबा कायम
विजय कुमार सिन्हा ने 2010 में पहली बार लखीसराय से विधानसभा चुनाव जीता था और तब से उन्होंने इस सीट पर अपनी पकड़ मजबूत रखी है. वर्ष 2020 के चुनाव में विजय सिन्हा को 74,212 वोट मिले थे, जबकि उनके निकटतम प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस के अमरेश कुमार को 63,729 वोट प्राप्त हुए. जीत का यह अंतर बताता है कि विजय सिन्हा ने न केवल अपनी जाति के वोटों को एकजुट किया, बल्कि अन्य समुदायों का भी समर्थन हासिल किया. भाजपा की रणनीति के सहारे विजय सिन्हा गैर-यादव ओबीसी और कुछ अनुसूचित जाति मतदाताओं को भी अपने पक्ष में करने में सफलता पाई है.
जातीय समीकरणों का खेल
विपक्ष की चुनौतियां बरकार
लखीसराय में विजय सिन्हा की मजबूत पकड़, विकास कार्यों की छवि, और भाजपा की संगठनात्मक ताकत उनके पक्ष में हैं। इसके अलावा, नीतीश कुमार और नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में एनडीए की सकारात्मक छवि भी उनके लिए फायदेमंद साबित होती है. महागठबंधन (राजद, कांग्रेस, और अन्य), के लिए जरूरी है कि वह एक मजबूत उम्मीदवार और रणनीति के साथ मैदान में उतरे. 2020 में कांग्रेस के अमरेश कुमार ने सिन्हा को कड़ी टक्कर दी थी, लेकिन जीत का अंतर बताता है कि विपक्ष को अभी और मेहनत करनी होगी.
सियासी जंग और विपक्ष को उम्मीद
हालांकि, विपक्ष के लिए एक उम्मीद की किरण यह है कि विजय सिन्हा की जीत का अंतर पिछले कुछ चुनावों में घटा है. 2010 में जहां वे 59,620 वोटों से जीते थे, वहीं 2015 में यह अंतर घटकर 6,556 और 2020 में 10,483 वोट रह गया. इससे यह जाहिर कर रहा है कि विपक्ष यदि सही रणनीति और उम्मीदवार के साथ उतरे तो सिन्हा को कड़ी चुनौती दे सकता है. ऐसे में 2025 के विधानसभा चुनाव में लखीसराय की सियासत फिर से रोमांचक होने वाली है. विजय सिन्हा एक बार फिर भाजपा के मजबूत उम्मीदवार होंगे और उनकी रणनीति विकास और जातीय समीकरणों के संतुलन पर टिकी होगी.