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लखीसराय विधानसभा सीट पर विजय सिन्हा का दबदबा, तीन बार लगातार जीत, विपक्ष की चुनौती कितनी मजबूत?

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पटना. बिहार का लखीसराय एक ऐसा विधानसभा क्षेत्र है जो पिछले एक दशक से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का गढ़ रहा है. इस सीट पर डिप्टी सीएम विजय कुमार सिन्हा ने लगातार तीन बार (2010, 2015 और 2020) जीत दर्ज की है. उनकी जीत का आधार न केवल उनकी व्यक्तिगत लोकप्रियता और राजनीतिक रणनीति है, बल्कि क्षेत्र के जातीय समीकरण भी है. यहां के जातीय समीकरण उनके पक्ष में मजबूत भूमिका निभाते रहे हैं. वर्ष 2025 के विधानसभा चुनाव नजदीक आते ही यह सवाल उठने लगा है कि क्या विपक्ष इस बार विजय सिन्हा को चुनौती दे पाएगा? क्या लखीसराय में सियासी समीकरण बदल जाएंगे, या फिर विजय सिन्हा एक बार फिर अपनी जीत का परचम लहराएंगे?

विजय सिन्हा की जीत का सफर

विजय कुमार सिन्हा ने 2010 में पहली बार लखीसराय से विधानसभा चुनाव जीता था. तब से उन्होंने इस सीट पर अपनी पकड़ मजबूत की है. वर्ष 2015 में राष्ट्रीय जनता दल (राजद) और जनता दल यूनाइटेड (जदयू) के गठबंधन के बावजूद उन्होंने जीत हासिल की और 2020 में कांग्रेस के अमरेश कुमार को 10,483 वोटों के अंतर से हराया. उनकी यह जीत बताती है कि लखीसराय में भाजपा का जनाधार लगातार बना हुआ है और विजय सिन्हा का दबदबा भी कायम है.

विकास कार्यों का दिखाया दम

विजय सिन्हा भूमिहार जाति से आते हैं और वह नीतीश सरकार में डिप्टी सीएम हैं. खनन और कृषि मंत्री जैसे महत्वपूर्ण पदों पर रह चुके हैं. इसके अलावा उनकी छवि एक मजबूत और अनुभवी नेता की रही है.उन्होंने क्षेत्र में विकास कार्यों को अपनी ताकत बनाया है. बीते वर्षों में उनके नेतृत्व में बिजली, सड़क, स्वास्थ्य, और कृषि जैसे क्षेत्रों में कई परियोजनाएं शुरू हुई हैं. उन्होंने दावा किया है कि 160 से ज्यादा ग्रामीण सड़कों को मंजूरी दी गई है जिससे क्षेत्र की कनेक्टिविटी में सुधार हुआ है.

जातीय समीकरण का मजबूत आधार

लखीसराय विधानसभा क्षेत्र में जातीय समीकरण चुनावी नतीजों को तय करने में अहम भूमिका निभाते हैं. इस क्षेत्र में भूमिहार, यादव, मुस्लिम और अनुसूचित जाति (एससी) के मतदाता प्रमुख हैं. विजय सिन्हा भूमिहार समुदाय से हैं और इस प्रभावशाली जाति के वोटों का बड़ा हिस्सा हासिल करने में सफल रहे हैं. बता दें कि बिहार की राजनीति में भूमिहार समुदाय का प्रभाव हमेशा से महत्वपूर्ण रहा है, और विजय सिन्हा ने इसे अपने पक्ष में खूब भुनाया भी है.

विजय सिन्हा का दबदबा कायम

विजय कुमार सिन्हा ने 2010 में पहली बार लखीसराय से विधानसभा चुनाव जीता था और तब से उन्होंने इस सीट पर अपनी पकड़ मजबूत रखी है. वर्ष 2020 के चुनाव में विजय सिन्हा को 74,212 वोट मिले थे, जबकि उनके निकटतम प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस के अमरेश कुमार को 63,729 वोट प्राप्त हुए. जीत का यह अंतर बताता है कि विजय सिन्हा ने न केवल अपनी जाति के वोटों को एकजुट किया, बल्कि अन्य समुदायों का भी समर्थन हासिल किया. भाजपा की रणनीति के सहारे विजय सिन्हा गैर-यादव ओबीसी और कुछ अनुसूचित जाति मतदाताओं को भी अपने पक्ष में करने में सफलता पाई है.

जातीय समीकरणों का खेल

बता दें कि लखीसराय में यादव और मुस्लिम मतदाता राजद और कांग्रेस के परंपरागत वोट बैंक माने जाते हैं. हालांकि, विपक्ष इन वोटों को पूरी तरह एकजुट करने में नाकाम रहा है. इसके अलावा क्षेत्र में समाजवादी धड़े की पार्टियों (जैसे जनता दल, संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी, और राजद) का प्रभाव रहा है, लेकिन 2000 के बाद से भाजपा ने इस गढ़ को भेदने में सफलता पाई. ऐसे में इस बार भी विजय सिन्हा अपनी जगह मजबूती से खड़े हैं और उनको लखीसराय सीट से हराना विपक्ष के लिए आसान नहीं है.

विपक्ष की चुनौतियां बरकार

लखीसराय में विजय सिन्हा की मजबूत पकड़, विकास कार्यों की छवि, और भाजपा की संगठनात्मक ताकत उनके पक्ष में हैं। इसके अलावा, नीतीश कुमार और नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में एनडीए की सकारात्मक छवि भी उनके लिए फायदेमंद साबित होती है. महागठबंधन (राजद, कांग्रेस, और अन्य), के लिए जरूरी है कि वह एक मजबूत उम्मीदवार और रणनीति के साथ मैदान में उतरे. 2020 में कांग्रेस के अमरेश कुमार ने सिन्हा को कड़ी टक्कर दी थी, लेकिन जीत का अंतर बताता है कि विपक्ष को अभी और मेहनत करनी होगी.

सियासी जंग और विपक्ष को उम्मीद

हालांकि, विपक्ष के लिए एक उम्मीद की किरण यह है कि विजय सिन्हा की जीत का अंतर पिछले कुछ चुनावों में घटा है. 2010 में जहां वे 59,620 वोटों से जीते थे, वहीं 2015 में यह अंतर घटकर 6,556 और 2020 में 10,483 वोट रह गया. इससे यह जाहिर कर रहा है कि विपक्ष यदि सही रणनीति और उम्मीदवार के साथ उतरे तो सिन्हा को कड़ी चुनौती दे सकता है. ऐसे में 2025 के विधानसभा चुनाव में लखीसराय की सियासत फिर से रोमांचक होने वाली है. विजय सिन्हा एक बार फिर भाजपा के मजबूत उम्मीदवार होंगे और उनकी रणनीति विकास और जातीय समीकरणों के संतुलन पर टिकी होगी.

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