होम राजनीति क्या मुस्लिम मतदाताओं की नब्ज पकड़ पाए तेजस्वी-राहुल, क्या विरोधियों की नींद उड़ा पाए?

क्या मुस्लिम मतदाताओं की नब्ज पकड़ पाए तेजस्वी-राहुल, क्या विरोधियों की नींद उड़ा पाए?

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पटना. विधानसभा चुनाव से पहले बिहार में राहुल गांधी और तेजस्वी यादव की ‘वोटर अधिकार यात्रा’ ने सियासी माहौल गरमा दिया. 17 अगस्त से शुरू होकर 1 सितंबर को पटना में खत्म हुई इस यात्रा का मुख्य उद्देश्य मतदाता सूची में कथित हेराफेरी के खिलाफ जागरूकता और विपक्षी एकता का प्रदर्शन था. लेकिन जानकारों की नजर में राहुल गांधी और तेजस्वी यादव की वोटर अधिकार यात्रा का बड़ा उद्देश्य प्रशांत किशोर और असदुद्दीन ओवैसी के मुस्लिम समुदाय में बढ़ती पकड़ की काट करना भी रहा है. सासाराम से लेकर जिन जिलों से भी तेजस्वी यादव और राहुल गांधी की वोटर अधिकार यात्रा गुजरी, उनमें मुस्लिम मतदाताओं की प्रभावी संख्या है जो सियासी समीकरण बिगाड़ने और बनाने का माद्दा रखते हैं. ऐसे में इन दोनों नेताओं की यह यात्रा बिहार में मुस्लिम वोटरों को लुभाने और गोलबंद करने की एक बड़ी कोशिश भी कही जा रही है. ऐसे में बड़ा सवाल यह कि राहुल गांधी और तेजस्वी यादव अपने उद्देश्य में कितने सफल हो पाए?

वोटर अधिकार यात्रा का मकसद क्या?

राहुल गांधी और तेजस्वी यादव की ‘वोटर अधिकार यात्रा’ बीते 17 अगस्त 2025 को सासाराम (रोहतास जिला) से शुरू हुई और 1 सितंबर को पटना के गांधी मैदान में समाप्त हुई. 16 दिनों में 1300 किलोमीटर की यह यात्रा जिन 24 जिलों और 50 विधानसभा क्षेत्रों से गुजरी उनमें मुस्लिम मतदाताओं की अच्छी खासी संख्या है. अब जब यात्रा समाप्त हो चुकी है तब मुस्लिम-प्रधान सीटों पर इस यात्रा का असर चर्चा में है. सवाल यह कि- क्या इस यात्रा से राहुल और तेजस्वी मुस्लिम वोटरों को अपने पाले में ला पाए?

बिहार में मुस्लिम मतदाताओं पर प्रभाव

बिहार में सीमांचल के किशनगंज, कटिहार, अररिया और पूर्णिया में मुस्लिम आबादी लगभग 45% से अधिक है और इन क्षेत्रों की सीटों पर निर्णायक भूमिका निभाती है. वोटर अधिकार यात्रा में मुस्लिम समुदाय ने शिरकत कर पूर्णिया, अररिया और किशनगंज जैसे क्षेत्रों में खासा उत्साह दिखाया भी. राहुल गांधी ने बाइक रैली और जनसभाओं के जरिए मुस्लिम समुदाय को संदेश देने की कोशिश की कि महागठबंधन उनकी आवाज उठाएगा. वहीं, तेजस्वी यादव ने ‘MY’ (मुस्लिम-यादव) समीकरण को मजबूत करने के लिए सामाजिक न्याय और संविधान की रक्षा का मुद्दा उठाया. इस यात्रा के दौरान अखिलेश यादव की मौजूदगी ने भी इस समीकरण को ताकत दी, क्योंकि समाजवादी पार्टी उत्तर प्रदेश में मुस्लिम वोटरों के बीच मजबूत आधार रखती है.

मुस्लिम वोटरों की लामबंदी मकसद!

सुपौल, मधुबनी और दरभंगा में यात्रा के दौरान भारी भीड़ और स्थानीय नेताओं की सक्रियता ने मुस्लिम मतदाताओं में उत्साह जगाया. कांग्रेस का दावा है कि यह यात्रा उनके कैडर में नया जोश भरने में सफल रही जो मुस्लिम वोटरों को लामबंद करने में मददगार हो सकता है. बिहार में 18 प्रतिशत मुस्लिम आबादी है और खासकर सीमांचल, मिथिलांचल और चंपारण में कई सीटों पर मुस्लिम मतदाता निर्णायक हैं. ऐसे में इस यात्रा का प्रभाव महत्वपूर्ण माना जा रहा है.

बिखराव का किसको मिला फायदा?

दरअसल, भारत की राजनीति में मुस्लिम वोटरों की भूमिका हमेशा निर्णायक रही है. खासकर बिहार, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में यह आबादी बहुत असरकारी है. परंपरागत रूप से ये वोटर भाजपा-विरोधी माने जाते रहे हैं और कांग्रेस, राजद, टीएमसी और सपा जैसी पार्टियों के साथ खड़े रहे हैं. लेकिन बीते कुछ वर्षों में यह वोट बैंक धीरे-धीरे बिखरता नजर आया है. AIMIM जैसी पार्टियों ने सीमांचल जैसे इलाकों में सेंध लगाई है तो वहीं जदयू ने भी खुद को मुस्लिम-समर्थक दिखाकर लाभ उठाया है. इस बिखराव से विपक्ष को नुकसान और भाजपा को अप्रत्यक्ष लाभ मिला है.

विपक्षी एकता और MY समीकरण

बिहार में मुस्लिम आबादी करीब 18 प्रतिशत है. सीमांचल जैसे इलाकों में यह आंकड़ा 40 प्रतिशत के पार पहुंच जाता है. सीमांचल, मिथिलांचल और चंपारण में अगर मुस्लिम वोट एकजुट हो जाएं तो 50 से अधिक सीटों पर नतीजे प्रभावित हो सकते हैं. लेकिन वर्ष 2020 में असदुद्ददीन ओवैसी की AIMIM को पांच सीटें मिली थीं जिसने महागठबंधन को नुकसान पहुंचाया. अगर तेजस्वी यादव और राहुल गांधी मुस्लिम वोट को फिर से एकजुट कर पाए तो यह भाजपा के लिए बड़ा झटका हो सकता है. लेकिन इसके लिए उन्हें असदुद्दीन ओवैसी की AIMIM, प्रशांत किशोर की जनसुराज और नीतीश कुमार की जदयू की काट भी तैयार करनी होगी.

वोटर अधिकार यात्रा का मकसद पूरा हुआ?

बहरहाल, अब यह यात्रा समाप्त हो चुकी है, लेकिन सवाल यही है कि क्या मुस्लिम मतदाताओं में राहुल गांधी और तेजस्वी यादव भरोसा जगा पाए? जानकार कहते हैं कि अगर यह यात्रा मुस्लिमों में भरोसा जगा पाई तो इसका असर सिर्फ बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में नहीं, बल्कि अन्य राज्यों के विधानसभा चुनाव में भी दिखाई देगा. ऐसे में बिहार में वोटर अधिकार यात्रा सिर्फ वोट की नहीं, बल्कि विपक्षी दलों की विश्वसनीयता की भी परीक्षा है.

क्या भरोसा जीत पाए तेजस्वी और राहुल?

राजनीति के जानकार कहते हैं कि जिस तरह से वोटर अधिकार यात्रा में मुस्लिम इलाकों में लोगों की भीड़ उमड़ी इससे लगता है कि राहुल गांधी की छवि अब मुस्लिम युवाओं के बीच सकारात्मक हुई है. दूसरी ओर, तेजस्वी यादव की ‘सामाजिक न्याय’ की बात में मुस्लिम यादव समीकरण की सियासत पर अब भी प्रभावी है. लेकिन, इसको लेकर यह भी एक हकीकत है कि चुनावी नतीजों से पहले कुछ कहा नहीं जा सकता.

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