पप्पू यादव पर कांग्रेस में असमंजस!
दरअसल, राजनीति में मंच की अहमियत सिर्फ शारीरिक स्थान नहीं बल्कि सियासी हैसियत का भी संकेत होती है. जब कोई नेता किसी बड़े सार्वजनिक आयोजन में मंच पर नहीं होता या उसे मुख्य मंच से दूर रखा जाता है, तो उस नेता की स्थिति को लेकर कई तरह की बातें सामने आती हैं. 1 सितंबर को पटना के गांधी मैदान में वोटर अधिकार यात्रा के समापन पर पूर्णिया सांसद पप्पू यादव को मंच से दूर रखा गया, वह साउंड सिस्टम के पास बैठे दिखे तो चर्चा लाजिमी है. जानकारों की नजर में पप्पू यादव का मंच से हटकर साउंड सिस्टम के पास बैठना उनके राजनीतिक प्रभाव में कमी और कांग्रेस के भीतर बढ़ती पप्पू यादव के प्रति असमंजस की तरफ इशारा करता है.
वोटर अधिकार यात्रा समापन में पप्पू यादव साउंड सिस्टम वालों के पास बैठे देखे गए, उनकी अनदेखी बिहार में सियासी चर्चा के केंद्र में.
बार-बार अनदेखी से उठे सवाल
तेजस्वी के सामने नतमस्तक?
पूर्णिया में वोटर अधिकार यात्रा के दौरान पप्पू ने तेजस्वी को ‘जननायक’ और ‘बिहार का भविष्य’ कहकर तारीफों के पुल बांधे. यह 2024 के लोकसभा चुनाव के बाद बदला रुख था, जब पप्पू ने तेजस्वी पर अहंकार और परिवारवाद का आरोप लगाया था. जानकारों का मानना है कि तेजस्वी यादव के साथ रिश्ते सुधारने की कोशिश में पप्पू अपनी सियासी स्वायत्तता गंवा रहे हैं. राजद के दबदबे और तेजस्वी की युवा छवि के सामने पप्पू की क्षेत्रीय ताकत कमजोर पड़ रही है. वोटर अधिकार यात्रा के समापन पर जिस तरह से पप्पू यादव को मंच से दूर रखा गया और वह साउंड सिस्टम के पास बैठे. जाहिर है यह घटना उनकी सियासी हैसियत पर सवाल उठाती है. तेजस्वी यादव को ‘जननायक’ कहने के बाद भी राजद के दबदबे और कांग्रेस की रणनीति में उनकी अनदेखी हुई.

पप्पू यादव ने सियासी बदलते हुए तेजस्वी यादव को बिहार का ‘जननायक’ बता दिया. लेकिन, तेजस्वी के सामने उनकी अपनी पहचान कमजोर पड़ती दिख रही.
मंच से दूर रखने का क्या मतलब?
कांग्रेस प्रेम में पप्पू का वजूद कमजोर?
जानकारों की नजर में पप्पू यादव की यह स्थिति शायद इस बात को भी उजागर करती है कि कांग्रेस बिहार में अपने पुराने सहयोगी और नेताओं की तुलना में अलग नेतृत्व को बढ़ाने की कोशिश कर रही है. वही, तेजस्वी यादव बिहार के युवा और लोकप्रिय नेता हैं जो अपनी सक्रिय राजनीति और जनसमर्थन के लिए जाने जाते हैं. उनके सामने पप्पू यादव जैसे राजनेता अपनी जगह बनाए रखने के लिए संघर्ष कर रहे हैं. यह भी देखा जा रहा है कि तेजस्वी के प्रभाव के सामने पप्पू यादव न केवल सियासी दबाव में हैं, बल्कि अपने राजनीतिक वजूद को भी बचाने की कोशिश कर रहे हैं. यह भी संभव है कि पप्पू यादव की कांग्रेस में मजबूती तेजस्वी यादव के समक्ष कमजोर पड़ रही हो.

पप्पू यादव की बार-बार हो रही अनदेखी से कांग्रेस में उनकी हैसियत को लेकर सवाल खड़े हो रहे हैं.
क्या पप्पू यादव अपना वजूद खो रहे हैं?
अब क्या करेंगे पप्पू यादव, क्या है राह?
वोटर अधिकार यात्रा के समापन समारोह में पप्पू यादव का मंच से हटकर साउंड सिस्टम के पास बैठना बिहार की राजनीति में बड़ा सवाल बन गया है. कांग्रेस के दबाव और तेजस्वी यादव के प्रभाव के सामने पप्पू की राजनीतिक स्थिति कमजोर होती दिख रही है. पप्पू यादव को चाहिए कि वे अपनी राजनीतिक भूमिका को फिर से मजबूत करें और खुद को केवल कांग्रेस का सहयोगी न बल्कि एक निर्णायक नेता के रूप में स्थापित करें. वहीं कांग्रेस को भी अपने सहयोगियों के साथ तालमेल बैठाना होगा, ताकि गठबंधन मजबूत रहे. वहीं, पप्पू यादव को भी अपनी सियासी पहचान को पुनः स्थापित करने की जरूरत है. ऐसे में बिहार विधानसभा चुनाव के मद्देनजर यह देखना दिलचस्प होगा कि पप्पू यादव अपनी राजनीतिक स्थिति को कैसे संभालते हैं.