होम राजनीति Opinion : मंच से साउंड सिस्टम तक… कांग्रेस की पिच पर पप्पू यादव का ‘फॉल’ और ‘फील्ड आउट’! क्या खो रहे वजूद?

Opinion : मंच से साउंड सिस्टम तक… कांग्रेस की पिच पर पप्पू यादव का ‘फॉल’ और ‘फील्ड आउट’! क्या खो रहे वजूद?

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पटना. पप्पू यादव बिहार के सबसे चर्चित राजनेताओं में से एक हैं. कई विवाद उनसे जुड़े रहते हैं तो कई बार अपने मानवीय आचरण के लिए वह प्रशंसा भी पाते रहे हैं. पूर्णिया से सांसद हैं और अपने क्षेत्र में उनकी राजनीतिक पकड़ बेहद मजबूत मानी जाती है. महागठबंधन की वोटर अधिकार यात्रा के समापन पर पटना के गांधी मैदान में राहुल गांधी, तेजस्वी यादव, मुकेश सहनी और दीपंकर भट्टाचार्य जैसे इंडिया गठबंधन के दिग्गज मंच पर थे, लेकिन पूर्णिया सांसद और कांग्रेस नेता पप्पू यादव मंच के नीचे साउंड सिस्टम के पास कुर्सी पर बैठे कोल्ड ड्रिंक पीते दिखे. सियासी कोहराम मच गया कि पूर्णिया सांसद पप्पू यादव मंच पर नहीं, बल्कि साउंड सिस्टम के पास बैठे दिखे. इससे पहले मार्च के दौरान उनको गाड़ी पर भी नहीं चढ़ने दिया गया जिससे उनकी भारी फजीहत हो गई. पप्पू यादव की ‘बेइज्जती’ के ये दोनों दृश्य सोशल मीडिया में वायरल हो गए और सवाल उठने लगे कि बिहार की सियासत में पप्पू यादव की हैसियत क्यों सिमट रही है?

पप्पू यादव पर कांग्रेस में असमंजस!

दरअसल, राजनीति में मंच की अहमियत सिर्फ शारीरिक स्थान नहीं बल्कि सियासी हैसियत का भी संकेत होती है. जब कोई नेता किसी बड़े सार्वजनिक आयोजन में मंच पर नहीं होता या उसे मुख्य मंच से दूर रखा जाता है, तो उस नेता की स्थिति को लेकर कई तरह की बातें सामने आती हैं. 1 सितंबर को पटना के गांधी मैदान में वोटर अधिकार यात्रा के समापन पर पूर्णिया सांसद पप्पू यादव को मंच से दूर रखा गया, वह साउंड सिस्टम के पास बैठे दिखे तो चर्चा लाजिमी है. जानकारों की नजर में पप्पू यादव का मंच से हटकर साउंड सिस्टम के पास बैठना उनके राजनीतिक प्रभाव में कमी और कांग्रेस के भीतर बढ़ती पप्पू यादव के प्रति असमंजस की तरफ इशारा करता है.

वोटर अधिकार यात्रा समापन में पप्पू यादव साउंड सिस्टम वालों के पास बैठे देखे गए, उनकी अनदेखी बिहार में सियासी चर्चा के केंद्र में.

बार-बार अनदेखी से उठे सवाल

तेजस्वी यादव को ‘जननायक’ कहने वाले पप्पू की यह स्थिति सियासी हलकों में चर्चा का विषय बन गई. सवाल उठ रहे हैं कि क्या कांग्रेस के प्रति उनकी निष्ठा उन्हें कमजोर कर रही है? क्या तेजस्वी के सामने वह अपनी सियासी पहचान खो रहे हैं? दरअसल, ऐसे सवालों का उठना एक हद तक सही भी है, क्योंकि पप्पू यादव ने 2024 में जन अधिकार पार्टी को कांग्रेस में विलय कर अपनी निष्ठा दिखाई थी. पूर्णिया से निर्दलीय सांसद बनने के बाद उन्होंने राहुल गांधी को अपना नेता माना, लेकिन वोटर अधिकार यात्रा में बार-बार उनकी अनदेखी सवाल उठाती है. बीते 9 जुलाई को पटना में बिहार बंद के दौरान भी उन्हें राहुल-तेजस्वी की गाड़ी से उतार दिया गया था. हालांकि, पप्पू यादव ने इसे बेइज्जती नहीं माना, लेकिन उनकी यह स्थिति उनकी सियासी ताकत पर सवाल जरूर खड़ा कर गया.

तेजस्वी के सामने नतमस्तक?

पूर्णिया में वोटर अधिकार यात्रा के दौरान पप्पू ने तेजस्वी को ‘जननायक’ और ‘बिहार का भविष्य’ कहकर तारीफों के पुल बांधे. यह 2024 के लोकसभा चुनाव के बाद बदला रुख था, जब पप्पू ने तेजस्वी पर अहंकार और परिवारवाद का आरोप लगाया था. जानकारों का मानना है कि तेजस्वी यादव के साथ रिश्ते सुधारने की कोशिश में पप्पू अपनी सियासी स्वायत्तता गंवा रहे हैं. राजद के दबदबे और तेजस्वी की युवा छवि के सामने पप्पू की क्षेत्रीय ताकत कमजोर पड़ रही है. वोटर अधिकार यात्रा के समापन पर जिस तरह से पप्पू यादव को मंच से दूर रखा गया और वह साउंड सिस्टम के पास बैठे. जाहिर है यह घटना उनकी सियासी हैसियत पर सवाल उठाती है. तेजस्वी यादव को ‘जननायक’ कहने के बाद भी राजद के दबदबे और कांग्रेस की रणनीति में उनकी अनदेखी हुई.

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पप्पू यादव ने सियासी बदलते हुए तेजस्वी यादव को बिहार का ‘जननायक’ बता दिया. लेकिन, तेजस्वी के सामने उनकी अपनी पहचान कमजोर पड़ती दिख रही.

मंच से दूर रखने का क्या मतलब?

दरअसल, एक बड़ी हकीकत यह भी है कि बिहार में राष्ट्रीय जनता दल गठबंधन का नेतृत्व करता है और तेजस्वी यादव 2025 के चुनाव में मुख्यमंत्री चेहरा बनना चाहते हैं. जानकारों का कहना है कि इस स्थिति में राजद, पप्पू यादव और कन्हैया कुमार जैसे नेताओं को मंच पर जगह देकर संभावित प्रतिद्वंद्वियों को बढ़ावा नहीं देना चाहता. वहीं, राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस की यह कोशिश है कि वह बिहार में खुद को अधिक सशक्त और नेतृत्वकारी दिखाए. इस प्रक्रिया में पुराने दौर नेताओं को किनारे कर दिया जा रहा है. संभव है कि पप्पू यादव का साउंड सिस्टम के पास बैठना इसी बात का संकेत हो सकता है कि कांग्रेस के भीतर वह अपनी जगह खोते जा रहे हैं.

कांग्रेस प्रेम में पप्पू का वजूद कमजोर?

जानकारों की नजर में पप्पू यादव की यह स्थिति शायद इस बात को भी उजागर करती है कि कांग्रेस बिहार में अपने पुराने सहयोगी और नेताओं की तुलना में अलग नेतृत्व को बढ़ाने की कोशिश कर रही है. वही, तेजस्वी यादव बिहार के युवा और लोकप्रिय नेता हैं जो अपनी सक्रिय राजनीति और जनसमर्थन के लिए जाने जाते हैं. उनके सामने पप्पू यादव जैसे राजनेता अपनी जगह बनाए रखने के लिए संघर्ष कर रहे हैं. यह भी देखा जा रहा है कि तेजस्वी के प्रभाव के सामने पप्पू यादव न केवल सियासी दबाव में हैं, बल्कि अपने राजनीतिक वजूद को भी बचाने की कोशिश कर रहे हैं. यह भी संभव है कि पप्पू यादव की कांग्रेस में मजबूती तेजस्वी यादव के समक्ष कमजोर पड़ रही हो.

पप्पू यादव की बार-बार हो रही अनदेखी से कांग्रेस में उनकी हैसियत को लेकर सवाल खड़े हो रहे हैं.

क्या पप्पू यादव अपना वजूद खो रहे हैं?

राजनीति के जानकारों का मानना है कि पप्पू यादव की यह स्थिति अस्थायी नहीं है, बल्कि आगे भी यथावत रहने वाली है. अगर उन्होंने कांग्रेस के भीतर अपने हितों के लिए सही रणनीति नहीं बनाई तो उनकी सियासी पहचान और प्रभाव धीरे-धीरे कम हो सकता है. बिहार की राजनीति में युवा और नए चेहरे जोर पकड़ रहे हैं और कांग्रेस भी अपनी अलग रणनीति पर चल रही है. हाल के दिनों में पप्पू यादव को जब राहुल गांधी और तेजस्वी यादव के मंच पर नहीं चढ़ने दिया गया तो वह बेहद आहत दिखे थे. हालांकि, बाद में राहुल गांधी और प्रियंका गांधी से मिलने के बाद उनको कुछ वजूद की ताकत का अनुभव हुआ भी. लेकिन अब फिर गांधी मैदान में उनका साउंड सिस्टम के पास बैठना यह तो जरूर जाहिर कर रहा है कि पप्पू यादव को राहुल-तेजस्वी के बीच अपनी जगह बनाना और भी कठिन होता जा रहा है.

अब क्या करेंगे पप्पू यादव, क्या है राह?

वोटर अधिकार यात्रा के समापन समारोह में पप्पू यादव का मंच से हटकर साउंड सिस्टम के पास बैठना बिहार की राजनीति में बड़ा सवाल बन गया है. कांग्रेस के दबाव और तेजस्वी यादव के प्रभाव के सामने पप्पू की राजनीतिक स्थिति कमजोर होती दिख रही है. पप्पू यादव को चाहिए कि वे अपनी राजनीतिक भूमिका को फिर से मजबूत करें और खुद को केवल कांग्रेस का सहयोगी न बल्कि एक निर्णायक नेता के रूप में स्थापित करें. वहीं कांग्रेस को भी अपने सहयोगियों के साथ तालमेल बैठाना होगा, ताकि गठबंधन मजबूत रहे. वहीं, पप्पू यादव को भी अपनी सियासी पहचान को पुनः स्थापित करने की जरूरत है. ऐसे में बिहार विधानसभा चुनाव के मद्देनजर यह देखना दिलचस्प होगा कि पप्पू यादव अपनी राजनीतिक स्थिति को कैसे संभालते हैं.

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